अमृत कलश

Saturday, July 30, 2011

आज्ञा कारी आरुणि


आयोधोम ऋषीके आश्रम में दूर दूर से राज कुमार शिक्षा प्राप्त करने आते थे |आरुणि भी उनमें से एक था |
सारे शिष्य बहुत आज्ञाकारीऔर विनम्र थे |ऋषि नें उनकी परिक्षा लेने का मन बनाया |एक दिन बहुत जोर से पानी बरस रहा था |उपयुक्त अवसर जान ऋषिवर ने कहा ,"खेतों में पानी भर रहा है उसे जा कर ठीक कर दो "|
जब अरुणि वहाँ पहुचा और पानी न रोक पाया तब वह खुद मेढ़ की जगह लेट गया और पानी रोकने की कोशिश करने लगा |इस कहानी का यही सार है |

बहुत पुरानी कथा तुम्हें मैं ,बच्चों आज सुनाऊंगी ,
कैसे थे गुरु के आज्ञाकारी ,बालक यह बतलाऊंगी |
आयोधोम के आश्रम में दो बालक रहते थे सुकुमार
गुरुसेवा और विद्या पढ़ना था उनके जीवन का सार |
आरुणि था पांचाल देश का उपमन्यु था उसका मित्र
दोनो विनयी नम्र ह्रदय के गंगा जल से महा पवित्र |
एक दिवस गुरु ने उनकी गुरु भक्ति का अनुमान किया
कठिन परीक्षा के द्वारा उनकी शिक्षा का मान किया |
पावस ऋतु थी सभी और सुन्दर हरियाली छाई थी
लता वृक्ष फल फूलों से शोभा आश्रम में आई थी |
इक दिवस रख रूप भयंकर काले मेघा आ बरसे
जब आश्रम के खेतों में थे धानों के पौधे सरसे |
मेढ़ खेत की टूट गयी जल भरने लगा खेत के बीच
आरुणि गुरु आज्ञा पा उसको लगा बाँधने ले कर कींच |
जल न रुका तब स्वयं मेढ़ की जगह लेट वह गया वहीं
गए खोजने जब गुरु उसको पता न उसका लगा कहीं |
तब उपमन्यु गुरु से बोले "मेंढ़ बाँधने जा कर वह
अभी न आया" "चलो खोजने" बढे गुरूजी कह कर यह |
खेतों में जा की पुकार तब आरुणि उठ कर के आया
सारा तन था उसका गीला पर न मैल मुख पर लाया |
हुए प्रसन्न गुरू जी उसकी इस भक्ति को देख महां
"वेद शास्त्र का ज्ञाता होवो" गुरु ने यह आशीष कहा |
गुरु की सेवा ही से बच्चों सब संकट कट जाते हैं
आज्ञा पालन करके जग में उत्तम नाम कमाते हैं |
इसी लिए तुम प्रण करलो आरुणि से बन जाओगे
गुरु वाक्य को वेद वाक्य जानोगे सब सुख पाओगे |


किरण


Thursday, July 28, 2011

पहेलियाँ -उत्तर

पोस्ट नम्बर २ के सही उत्तर
१-डमरू
२-कलम

Wednesday, July 27, 2011

मुझे बतादे जीजी रानी

नन्हे बच्चे की बाल सुलभ जिज्ञासा जनित प्रश्न और उसकी विदुषी जीजी के तर्कसंगत प्रत्युत्तर में उन प्रश्नों के समाधानों का कितना सुन्दर चित्रण इस कविता में किया गया है ! इसका आनंद आप सब भी उठाइये !


"मुझे बता दे जीजी रानी
उगता चन्दा लाल क्यूँ ?
और देवता होने पर भी
पड़ा काल के गाल क्यूँ ?"
"इस चन्दा ने चकवी की
आशा का रक्त पिया बहना ,
इस चन्दा ने कमल पुष्प की
सुषमा को छीना बहना |
इस चन्दा ने विकल चकोरी की
अग्नि का दान किया ,
इस चन्दा ने निज सुंदरता
पर भी था अभिमान किया |
इसी पाप से इसी शाप से
यह चन्दा है लाल री
और इसी कारण पड़ना भी
पड़ा काल के गाल री |"
"मुझे बता दे जीजी रानी
है काला काला क्या इसमें ?
पूरा कभी, कभी है आधा
यह होता है क्या इसमें ?"
"निज वैभव पर इतरा इसने
संध्या का अपमान किया ,
वह मुस्काई इसे देख तो
नयन बिंदु ही चुरा लिया |
और उषा संग आँख मिचौली
खेल खेलने को आया
आधा कपड़ा बाँध आँख से
उसने थोड़ा उकसाया |
संध्या की वह पुतली इस पर
काला धब्बा लाई थी
आधा पूरा इसे बनाती
इसी खेल की दाईं री |"

किरण

Tuesday, July 26, 2011

पहेलियाँ

बूझो तो जाने :-

(१)
शीश कटे तो मैं मर जाऊं ,
पेट कटे तो मैं डर जाऊं ,
पैर कटे तो ढोल बजाऊँ ,
शिव जी का प्रिय वाद्य कहऊँ |
(२)
हाड मॉस का नाम नहीं है ,
पर डरने का काम नहीं है ,
पल भर में मैं प्रलय मचा दूं ,
एक शब्द नें शान्ति करा दूं |
किरण

Saturday, July 23, 2011

एक कहानी

आज मैं अपनी माता जी श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना 'किरण' द्वारा बाल साहित्य पर रचित कविता संग्रह "अमृत कलश " की पहली रचना इस ब्लॉग के माध्यम से आप सब पाठकों तक पहुँचाने का प्रयास कर रही हूँ | आशा है आप को ये रचनाएँ पसंद आयेंगी | आपकी अनमोल प्रतिक्रिया, सुझाव एवं प्रोत्साहन का हृदय से स्वागत है !

एक कहानी

मेरी नानी प्यारी नानी
मुझे सुना दो एक कहानी |
जिसमें चन्दा तारे ना हों
पतझड़ और बहारें ना हों |
परी देव की ना हो कहानी
राजा रानी की न सुहानी |
ना फूलों की, पशु पक्षी की
ना भौरे की, मधुमक्खी की |
ना देवों की, ना दानव की
ना पशुओं की, ना मानव की |
हो वह देश भक्ति की बाँकी
किसने किसकी कीमत आँकी |
किसने उस पर तनमन वारा
कौन देश पर गया उबारा |
किसने गाली गोली खाई
किसने फाँसी सूली पाई |
कौन शत्रु पर टूट पड़ा था
कौन युद्ध में अजय खड़ा था |
कैसे यह स्वतंत्रता पाई
फिर भारत में हलचल छाई |
कैसे आशा छाई सुहानी
मुझे सुना दो वही कहानी |


किरण