अमृत कलश

Thursday, June 5, 2014




Webdunia
FILE


वट सावित्री अमावस्या के पूजन की प्रचलित कहानी के अनुसार सावित्री अश्वपति की कन्या थी, उसने सत्यवान को पति रूप में स्वीकार किया था। सत्यवान लकड़ियां काटने के लिए जंगल में जाया करता था। सावित्री अपने अंधे सास-ससुर की सेवा करके सत्यवान के पीछे जंगल में चली जाती थी।

एक दिन सत्यवान को लकड़ियां काटते समय चक्कर आ गया और वह पेड़ से उतरकर नीचे बैठ गया। उसी समय भैंसे पर सवार होकर यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए। सावित्री ने उन्हें पहचाना और सावित्री ने कहा कि आप मेरे सत्यवान के प्राण न लें।

यम ने मना किया, मगर वह वापस नहीं लौटी। सावित्री के पतिव्रत धर्म से प्रसन्न होकर यमराज ने वरदान के रूप में अंधे सास-ससुर की सेवा में आंखें दीं और सावित्री को सौ पुत्र होने का आशीर्वाद दिया और सत्यवान को छोड़ दिया।

इसी वट वृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पतिव्रत धर्म से मृत पति को पुन: जीवित कराया था. तभी से यह व्रत ‘वट सावित्री व्रत’ के नाम से जाना जाता हैवट पूजा से जुड़ी धार्मिक मान्यता के अनुसार तभी से महिलाएं इस दिन को वट अमावस्या के रूप में पूजती हैं।