अमृत कलश

Friday, August 30, 2019

सब से भली चुप

10 सितंबर, 2010


कुछ दिन पहले ही इस मोहल्ले में किराए पर मकान लिया था |तीन चार दिन सामान खोल कर जमाने में लग गए |
मकान बहुत बड़ा था इसलिए बहुत अच्छा लगा |एक दिन जब सो कर उठे बड़ा कोलाहल मच रहा था |बड़ा आश्चर्य हुआ मैने कारण जानना चाहा |पडोसन टीना जी ने बताया कि११० नंबर में रहने वाली आंटी को सब से झगडने में बहुत आनंद आता है |
रोज किसी न किसी के घर जाती हैं और झगडा करती हैं जब तक आधा घंटे तक लड़ नहीं लेती उन्हें मजा नही आता |आज जहां वे खडी हैं आज उनका नम्बर है |
तीन दिन बाद हमारे यहाँ भी आएंगी |और इसके बाद आपका अवसर आएगा |आप अभी से सारे दावपेच सोच कर रखना |मैने सोचा मजाक कर रहीं हैं |पर दो दिन बाद जब टीना जी का घर गुलजार नजर आया ११० नंबर वाली के आने से ,सच मैं मैं तो बहुत घबरा गई |मेरी बहू यह सुन कर बोली," मम्मी आप बिल्कुल चिंता न कीजिए ,बस आप बाहर ना आना मैं सब सम्हाल लूंगी "|
दुसरे दिन नाश्ता कर के उठे ही थे कि जोर जोर से दरवाजे पर प्रहार हुआ |शायद मुसीबत आ गई थी |मैं तो अपने कमरे मैं दुबक कर बैठ गई |११० नम्बर वाली ही आई थी|आते ही शुरू हो गईं |"अरी कहाँ हो क्या यह भी नही मालूम कि कोई
मिलने आया है "|
सीमा ने कहा ,आपको किससे काम है ,मम्मी तो मंदिर गई हैं "|
उन्हों ने तुनक कर कहा "यह भी नहीं कि बैठने को कहो |चाय पानी पूंछो |क्या तुम्हारी माँ ने यही तमीज सिखाया है "
सीमा ने कुर्सी ला कर आँगन में डाल दी |वह पहले तो बैठ गई फिर बोली ,"क्या तुम नहीं बैठोगी ? मैं अकेले ही बैठूं |यह कौनसा तरीका है मेहमान के स्वागत का ?'बिना विराम दिए फिर बोलीं "मैं कोई ऐसी वैसी हूं जो यहाँ बैठूं " |थोड़ी देर बाद
कहने लगी,"क्या तुम्हारी सास ने कुछ भी नहीं सिखाया है ?" लगभग पन्द्रह मिनिट इसी प्रकार बीत गए |
वह एकाएक तुनक कर बोली,"यहाँ तो किसी से बात करना ही फिजूल है ,
मैं कुछ भी कहूँ यह कोई जबाव ही नहीं देती |मेरा तो आज का दिन ही बर्बाद हो गया |अजीब लोग हैं ऐसा पहले कभी नहीं देखा "|
फिर दो चार गालियाँ दीं और दरवाजा खोल कर बाहर को चल दी |सीमा ने चट से दरवाजा बंद किया और चैन की सांस ली |मुझे आवाज लगाई ,"मम्मी जी आप बाहर आ जाइए |अब मुसीबत टल गई है |"
खैर आज सीमा की सूझ बूझ से लड़ने से जान छूटी |किसी ने सच ही कहा है ,"सो बात की एक बात ,सब से भली चुप "|

Sunday, August 25, 2019

महाकाल बाबा की अंतिम सवारी |

महाकाल मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है |
प्रत्येक वर्ष सावन के महीने में व् आधे भादों में हर सोमवार को भगवान महाकाल अपने भक्तों के हालचाल जानने के लिए नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं |इस हेतु वे विभिद रूप धारण करते हैं |
उनकी सवारी पालकी में निकाली जाती है |सबसे पहले गार्ड ऑफ़ ऑनर पुलिस गार्ड देते हैं प्रशासन प्रमुख पूजन करते हैं |पूजन स्थल पर भी अपार भीड़ हो जाती है |भजन मंडलियाँ साथ गाती बजाती चलती हैं |
विभिन्न अखाड़े अपने करतब दिखाते चलते हैं |
बड़े धूमधाम से सवारी प्रमुख मार्गों से गुजराती है और शिप्रा तट तक जाती है |कहा जाता है कि इस समय भगवान महाकाल मंदिर में नहीं होते |जब सवारी बापिस आजाती है तब पुन: प्राणप्रतिष्ठा की जाती है |
बचपन से ही मैंने सवारी देखी है |पर तब के सवारी के रूप में बहुत परिवर्तन हुए हैं |तब इतनी भीड़ नहीं होती थी सरलता से दर्शन सुलभ थे |पर अब इतनी भीड़ होती है कि बेचारे वृद्ध और बच्चे तो बहुत परेशान हो जाते हैं |तब भी आस्थावान लोग दर्शनार्थ जाते अवश्य हैं |
अंतिम सवारी पर स्थानीय अवकाश रहता है | चाहे कितनी भी कठिनाई आये इस दर्शन का आनंद ही कुछ और होता है |अपार शान्ति का अनुभव होता है |
दूर दूर से लोग सवारी देखने आते हैं |
बच्चे खिलौनों ,पीपड़ी गुब्बारों का आनंद उठाते हैं |पर फर्क आज देखने को मिलता है |पहले खिलोने मिट्टी के बिकते थी अब नहीं |
आशा

Wednesday, April 24, 2019

एक कहानी तुलसी की




एक कहानी तुलसी की

एक गाँव में तुलसी नाम की एक महिला रहती थी | वह रोज अपने आँगन में लगी तुलसी पर जल चढ़ाती थी |
जब वह पूजन करती थी तब वह भगवान से प्रार्थना करती थी कि यदि वह मरे तब उसे भगवान विष्णु का
कन्धा मिले |

एक रात वह अचानक चल बसी | आसपास के सभी लोग एकत्र हो कर उसे चक्रतीर्थ ले जाने की तैयारी
करने लगे | जब उसकी अर्थी तैयार की जा रही थी लागों ने पाया कि उसे उठाना असम्भव है | वह पत्थर
की  तरह भारी हो गई थी |
उधर विष्णु लोक में जोर जोर से घंटे बजने लगे | उस समय विष्णु जी शेष शैया पर विश्राम कर रहे थे |
लक्ष्मीजी उनके पैर दबा रहीं थीं | घंटों की आवाज से विष्णु जी विचलित हो उठे | लक्ष्मी जी ने परेशानी का
कारण जानना चाहा | भगवान ने कहा मुझे मेरा कोई भक्त बुला रहा है |मुझे अभी वहाँ जाना होगा |
हरी ने एक बालक का रूप धरा व वहाँ जा पहुँचे | वहाँ जा कर उसे अपना कन्धा दिया |जैसे ही भगबान आशा का स्पर्श हुआ अर्थी एकदम हल्की हो गयी और महिला की मुक्ति हो गई |

Friday, April 19, 2019

एक घटना जो याद आई




आज अचानक बहुत पुरानी याद ताजा हो गयी है |सोचा आप लोगों से शेअर कर लिया जाए |मेरे पिता जी का ऑपरेशन होना था |वे बहुत बीमार थे |मामा जी भी आये हुए थे |सब ने निश्चय किया कि गुना में सर्जन अच्छे हैं वहीं पर ऑपरेशन करवाना ठीक रहेगा |गुना में सिविल अस्पताल में भरती करवाया और स्पेशल वार्ड में भरती करवा दिया |
          पास के वार्ड में एक गाँव वाले भरती थे |वहां तो आनेजाने वालों का मेला लगा हुआ था |कुछ लोग बाहर बैठ कर ताश खेल रहे थे |
                एका एक जोर जोर से रोने की आवाज आई | कोतुहल वश अम्मा और मामा जी बाहर आये |वहाँ का दृश्य अवर्णनीय था |अपने कक्ष में आ कर दोनो जोर जोर से हंसने लगे |हंसत हुए कह रहे थे "जेई अच्छी हुई बिन के कारण अपन मिल तो लये ,न जाने कब मिलना होता "|
बाबूजी को गुस्सा आया बोले "मेरी तो तबियत खराब है और तुम लोगों को मजाक सूझ रहा है |धीरे से मामा जी ने कहा चलिए ज़रा बाहर तो देखिये |
            बाहर अभीतक वही माहोल थी महिलाएं आपस में गले मिल कर पूरी ताकत लगा कर रो रहीं थीं और कहती जा रहीं थीं जेई बहाने हम मिल तो लये |बाबूजी भी बिना हँसे न रह सके |

आशा