शिव प्रसन्न हो प्रगटे बोले
राजन तुम कृत कृत्य हुए
तुम जा गंगा को ले आओ
मैं उसका भार सम्हालूँगा
अवतरित स्वर्ग से जब होगी
मैं निज केशों में बांधूंगा
भागीरथ ने सावधान हो
गंगा का आव्हान किया
उतरी स्वर्ग लोक से
शिव के केशों में स्थान लिया
ध्रीरे धीरे फिर वह
भागीरथ राजा के पीछे आई
इसी लिए इस भू पर आकार
भागीरथी कहलाई
कपिल मुनी के आश्रम भेजा
सगरों का उद्धार किया
और जीव जो पड़े मार्ग में
उनको भी था तार दिया
इस प्रकार कर पितृ तृप्त
भागीरथ बडभागी आए
छाया सुयश तीनों लोकों में
कुल्तारक वे कहलाए
हों सहस्त्र सूत किन्तु मूर्ख हों
तो कुल का उद्धार नहीं
एक सुकर्मी पुत्र मिला
माता को होगा भार नहीं
जैसे एक सूर्य ही
सारे जग को है प्रकाश देता
अनगिनत तारों को भी
वह आँखों से ओझिल कर देता
यदि त्यागी भागीरत से
दो चार पुत्र हों भारत में
तो होवे सब पुन्य उदय
फैले सुकृत्य इस भारत में
देव हमारा देश साहसी
युवकों का भण्डार रहे
भागीरथ से सभी वीर हों
देश धर्म का प्यार रहे |
किरण