१-सारी दुनिया
रंगा रंग हुई है
कितनी प्यारी
२-रगों की रात
सज रही है कहीं
देखो तो ज़रा
३-रंग ही रंग
बिखरे यहाँ वहां
उसने देखा
४- पांच रंग हैं
आसमान में सजे
दो गौण रहे
५-होली के रंग
सजाए हैं थाली में
कान्हां को रंगा
आशा सक्सेना
१-सारी दुनिया
रंगा रंग हुई है
कितनी प्यारी
२-रगों की रात
सज रही है कहीं
देखो तो ज़रा
३-रंग ही रंग
बिखरे यहाँ वहां
उसने देखा
४- पांच रंग हैं
आसमान में सजे
दो गौण रहे
५-होली के रंग
सजाए हैं थाली में
कान्हां को रंगा
आशा सक्सेना
कितने रंग जीवन में बिखरे
कहाँ से आए जिन्दगी के रंग
देखने को
मिले इस जहां मे |
कोई रंग कैसा कहाँ ठहरा
या लहराया जाने कहाँ |
जो रंग मन को भाया
पहले पास नजर आया
जब पास जाना चाहा
और दूर होता गया |
मन को ठेस लगी दूरी देख
पर मन को समझाया
हर वह वस्तु जरूरी नहीं कि मिले
यदि बिना कष्ट मिल जाएगी
कितना आनंद आएगा यह भी मालूम नहीं|
यही रंग जीवन में जब दिखाई देगा
अदभुद नजारा होगा जब
रंग दिखाई देगा चारो ओर
लोग जानना चाहेगे यह प्राप्ति कैसे हुई
बताने का आनन्द कुछ और ही होगा |
आशा सक्सेना
मेरी शुभकामना
मन आनंद विभोर है कि मेरी दीदी आदरणीया आशालता सक्सेना जी का एक और नवीन कविता संग्रह, ‘साँझ की बेला’ शीघ्र ही प्रकाशित होने जा रहा है ! यह उनका अठारहवाँ कविता संग्रह है ! एक साहित्यकार के जीवन में यह निश्चित रूप से एक बहुत बड़ी उपलब्धि है ! ‘साँझ की बेला’ से पूर्व उनके 17 कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं ! और हमें गर्व है कि यह उपलब्धि मेरी दीदी श्रीमती आशा लता सक्सेना जी ने अपने अथक एवं अनवरत प्रयासों से हासिल की है !
दीदी में लेखन की गज़ब की क्षमता है और वे जो भी लिखती हैं वह पाठकों के हृदय पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाता है ! कई वर्षों से स्वास्थ्य समस्याओं से निरंतर ग्रस्त रहने के उपरान्त भी उनके लेखन की गति तनिक भी शिथिल नहीं हुई बल्कि बढ़ी ही है !
समय के साथ-साथ दीदी के लेखन में दिन ब दिन निखार आया है ! रचनाओं में संवेदना का स्तर सूक्ष्म से सूक्ष्मतर हुआ है और उनके विषयों का फलक तो जैसे आकाश से भी विस्तृत है ! उन्होंने हर विषय पर अपनी कलम चलाई है ! उनके भावों में अतुलनीय गहराई है और वैचारिक स्तर पर भी रचनाएं चिंतनीय, गंभीर एवं भावप्रवण हैं ! उनकी रचनाओं की भाषा सरल, सहज एवं सम्प्रेषणीय है और पाठकों के हृदय पर सीधे दस्तक देती है ! मुझे बहुत गर्व है कि दीदी साहित्य के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं और उनका लेखन नवोदित साहित्यकारों के लिए प्रेरणा का अद्भुत स्रोत है ! मेरी अनंत शुभकामनाएं उनके साथ हैं ! ‘साँझ की बेला’की मुझे अधीरता से प्रतीक्षा है ! आशा है यह जल्दी ही पाठकों के हाथ में होगी और अन्य पुस्तकों की भाँति ही इसे भी पाठकों का प्यार व प्रतिसाद अवश्य मिलेगा !
अनंत शुभकामनाओं के साथ,
साधना वैद
33/23, आदर्श नगर, रकाब गंज
आगरा, उत्तर प्रदेश
पिन – 2
एक दिन बाजार से कुछ सबजी लाने को कहा इनका कोई मूड न था|
इन्होंने कहा तुम ही क्यों नहीं लातीं
या किसी से मंगवालो |
पहले तो बहुत गुस्सा आया फिर खुद ही चल दी सब्जी लेने |
पर जल्दी में थैली लाना तो भूल ही गई थी |जब सब सब्जियां खरीद लीं पेमेंट कर
दिया तब सब्जी वाले ने पूछा किस में सब्जी डालूँ |तब मुझे याद आया कि थैली तो घर पर ही रह गई मुझे बड़ी कोफ्त हुई सोचा
क्यूँ न यहीं से एक थैली खरीदली जाए यदि
घर थैली लेने गई तो बहुत देर हो जाएगी |तभी एक बहिन जी मेरी ओर आती दिखाई
दीं |उन्हों ने आवाज दी अरे आपका झोला तो राह में ही गिर गया था|
मुझे अपनी लापरवाही पर बहुत शर्मिंदगी नजर आई खैर उनसे थैली ली और धन्यवाद
दिया |जैसे तैसे सब्जी ली और घर की ओर चल दी |मन ही मन सोचती जा रही थी मैं भी
कितनी लापरवाह हूँ दूसरों की गलतिया खोजती रहती हूँ पर मैं भी उतनी ही लापरवाह हूँ
|
आशा