घेवर फेनी की ऋतुआई
रिमझिम बरस रहे है बादल
चमक चमक बिजली करती छल
रंग बिरंगे फूल खिले हैं
पेड़ों को नव पात मिले हैं
बन में मोर पपीहा बोले
कुहुक कुहुक कोमल रस घोले
माता ने रस्सी मंगवाई
भैया ने पटली बनवाई
बाबूजी ले आए लहरिया
और रेशमी जम्पर बढ़िया
पड़ा आम पर झूलाप्यारा
जिस पर झूल रहा घर सारा
सखी सहेली सब जुड़ आईं
हिल मिल खूब मल्हारें गईं
सूत कात राखी बनवाई
नारियल और मिठाई लाई
पान बताशे रोली चावल
जलता दीपक रखा झिलमिल
दादा भैया सब मिल आए
बहनों को सौगातें लाए
टीका करके राखी बांधी
किया आरता साधें साधी
भाइयों से आशीषें पाईं
झोली भर मोहरें ले आईं
खुश खुश बहनें झूल रही हैं
खिली कली सी फूल रही हैं
जुग जुग जीवे प्यारे भैया
हम लें उनकी सदा बलइयां |
डा.ज्ञानवती सक्सेना "किरण"