अमृत कलश

Thursday, January 25, 2024

  

एक दिन की बात है सुबह बहुत ठण्ड थी |मैंने अपनी बाई से

पूंछा इतनी देर कैसे हुई |वह  हंस कर बोली मुझे घर का सारा काम

कर के आना पड़ता है |आज नीद नहीं खुली इसी से देर हुई |उसदिन

मुझे गुस्सा आगया मैंने उससे कहा तुम मुझे जबाब देती हो जब काम

 करने आई हो तब समय का ध्यान तो रखना ही पड़ेगा |वह  इस बात

से नाराज हो गई |बोली सम्हालो अपना घर मुझे क्या खरीद लिया है

और न जाने क्या बकने लगी और अपना सामान उठा कर चल दी |

उस समय तो मैंने काम कर लिया पर ठण्ड का प्रभाव दिखने लगा

मुझ पर दिखने लगा सरदी ने अपना रंग दिखाया और मैं बीमार पड़ गई|

तब  उसका कटु भाषण मेरे कानों में गूंजने लगा क्या हमारी जान नहीं है

हमको सरदी नहीं लगती | उसका मन न था काम पर आने का 

पर यह जानते हुए कि मेरी तबियत ठीक नहीं रहती उसने कहा था 

क्या कुछ छुट्टीनहीं मिल सकती मैंने उसेचिल्लातेyदिया पर दया नहीं आई उस पर 

आशा सक्सेना 


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