जब भी कोई आयोजन
होता है |तैयारी बहुत जोर शोर से होती है |
यह भी नहीं सोचा
जाता कि दिखावे में व्यय कितना हो जाएगा |
बस ध्यान में रहता
है तो एक बात कोई कमी नहीं होनी चाहिए |
लोग क्या कहेंगे ?
अपनी जेब की कोई
फिक्र नहीं कहीं से भी उधार लेलेंगे | इस प्रकार की
मानसिकता यदि हो व्यक्ति कभी भी कर्जे से मुक्त नहीं हो पाता|सदा उदासी बनी रहती
कभी भी खुश नहीं रह पाता|पर मेरे ख़याल से तो जितनी चादर हो उतने ही पाँव पसारने
चाहिए |लोगों का क्या वे तो खाएंगे भी और कमिया भी गिनाएंगे |मन के संताप से कैसे
छुटकारा मिलेगा ?आप अपनी राय से मुझे अवगत कराएं |
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