मैरे विचार से
मैं आशा लता सक्सेना सभी पाठकों के लिए अपना नया काव्य संग्रह “विभावरी” लाई हूँ |पढ़ कर अपना अभिमत दे कर मुझे प्रोत्साहित करें |लिखने के लिए इतनी सामग्री है कि कभी समाप्त नहीं होती |मन खोज में भटक कर रह जाता है |कभी संतुष्टि नहीं मिलाती |हर बार सोचती हूँ बस अब पर्याप्त लिख लिया अब नहीं लिखूंगी पर ऐसा होता नहीं है |मुझे किसी विधा विशेष में लिखना नहीं आता |आसपास की धटनाएं अपनी ओर आकृष्ट करती हैं |प्रकृति मुझे अपनी ओर खींचती है उससे सम्बन्ध स्थापित कर कुछ लिखने को बाध्य करती है कुछ उदाहरण देखिये :-
“तब शूल लगते पुष्प जैसे
रंगीन समा होता मन में
सुबह शाम डूबा रहता
वह अपने ही ख्यालों में” (यौवन)
सात आश्वों के रथ पर सवार
प्रातः काल चला आदित्य देशाटन को
रह के नज़ारे मन को ऐसे भाए
वहीं रहने को मन बनाया |(चला आदित्य भ्रमण को)
“बरसा मेह
तरबतर किया
नहला दिया
उसको व धरा को
खिली गुलाब जैसी” (गाँव की गोरी )
सध्य स्नाना सी
प्यार हुआ जब से उसे
कभी दूर न हुई तुमसे
हर पल तुममें खोई रही
कोई और चाह न रही |(एहसास प्यार का)
हाइकु लेखन का अपना ही आनंद है |तीन लाइनों और निश्चित शब्दों में सिमटा एक विचार बहुत अच्छा लगता है | हाइकु के कुछ उदाहरण देखिये :-
कब कहना
कितना है कहना
सार्थक यहाँ
कहाँ हो राम
कहीं नहीं विश्राम
इस जग में
तुम्हारे बिना
सूनी लगे दुनिया
मैं क्या करती |
,समाज में रह कर सामाजिक नियमों से दूरी नहीं रखी जा सकती |आत्म मंथन बहुत आवश्यक होता सही या गलत सोचने के लिए |मन की बदलती भावनाएं दिखाई देंगी बहुत सी रचनाओं में | कभी “प्यार का एहसास” होगा कभी “मन बिचलित” कभी “नारी एक अपेक्षा तुमसे ” कभी भाक्ति की शक्ति | मुझे अपने घर से पूरा सहयोग मिला है जिस के बिना बहुत कठिन होता यह लिखना लिखाना | मेरी बहिन साधना वैद मेरी प्रेरणा स्रोत है | आदरणीय सुधिजन जब पुस्तक आपके हाथों में होगी तभी उसका सही आकलन हो पाएगा|
आशा लता सक्सेना
(सेवा निवृत्त व्याख्याता )
आभार :-मैं आभारी हूँ स्मिता श्रीवास्तव की जिन्हों ने सम्पादन किया |श्रीमती कल्पना मुले की जिन्हों अपना अमूल्य समय दिया है”विभावरी”(काव्य संग्रह ) की भूमिका लिखने के लिए | आभारी हूँ श्री अरिहंत जैन और उनके सहयोगियों की जिन्होंने मेरी पुस्तक को यह रूप दिया है | कीर्ति प्रिंटिग प्रेस, उज्जैन ने मुझे प्रकाशन हेतु जो सहयोग दिया है उस के लिए धन्यवाद |
श्रीमती आशा लता सक्सेना
)
मैं आशा लता सक्सेना सभी पाठकों के लिए अपना नया काव्य संग्रह “विभावरी” लाई हूँ |पढ़ कर अपना अभिमत दे कर मुझे प्रोत्साहित करें |लिखने के लिए इतनी सामग्री है कि कभी समाप्त नहीं होती |मन खोज में भटक कर रह जाता है |कभी संतुष्टि नहीं मिलाती |हर बार सोचती हूँ बस अब पर्याप्त लिख लिया अब नहीं लिखूंगी पर ऐसा होता नहीं है |मुझे किसी विधा विशेष में लिखना नहीं आता |आसपास की धटनाएं अपनी ओर आकृष्ट करती हैं |प्रकृति मुझे अपनी ओर खींचती है उससे सम्बन्ध स्थापित कर कुछ लिखने को बाध्य करती है कुछ उदाहरण देखिये :-
“तब शूल लगते पुष्प जैसे
रंगीन समा होता मन में
सुबह शाम डूबा रहता
वह अपने ही ख्यालों में” (यौवन)
सात आश्वों के रथ पर सवार
प्रातः काल चला आदित्य देशाटन को
रह के नज़ारे मन को ऐसे भाए
वहीं रहने को मन बनाया |(चला आदित्य भ्रमण को)
“बरसा मेह
तरबतर किया
नहला दिया
उसको व धरा को
खिली गुलाब जैसी” (गाँव की गोरी )
सध्य स्नाना सी
प्यार हुआ जब से उसे
कभी दूर न हुई तुमसे
हर पल तुममें खोई रही
कोई और चाह न रही |(एहसास प्यार का)
हाइकु लेखन का अपना ही आनंद है |तीन लाइनों और निश्चित शब्दों में सिमटा एक विचार बहुत अच्छा लगता है | हाइकु के कुछ उदाहरण देखिये :-
कब कहना
कितना है कहना
सार्थक यहाँ
कहाँ हो राम
कहीं नहीं विश्राम
इस जग में
तुम्हारे बिना
सूनी लगे दुनिया
मैं क्या करती |
,समाज में रह कर सामाजिक नियमों से दूरी नहीं रखी जा सकती |आत्म मंथन बहुत आवश्यक होता सही या गलत सोचने के लिए |मन की बदलती भावनाएं दिखाई देंगी बहुत सी रचनाओं में | कभी “प्यार का एहसास” होगा कभी “मन बिचलित” कभी “नारी एक अपेक्षा तुमसे ” कभी भाक्ति की शक्ति | मुझे अपने घर से पूरा सहयोग मिला है जिस के बिना बहुत कठिन होता यह लिखना लिखाना | मेरी बहिन साधना वैद मेरी प्रेरणा स्रोत है | आदरणीय सुधिजन जब पुस्तक आपके हाथों में होगी तभी उसका सही आकलन हो पाएगा|
आशा लता सक्सेना
(सेवा निवृत्त व्याख्याता )
आभार :-मैं आभारी हूँ स्मिता श्रीवास्तव की जिन्हों ने सम्पादन किया |श्रीमती कल्पना मुले की जिन्हों अपना अमूल्य समय दिया है”विभावरी”(काव्य संग्रह ) की भूमिका लिखने के लिए | आभारी हूँ श्री अरिहंत जैन और उनके सहयोगियों की जिन्होंने मेरी पुस्तक को यह रूप दिया है | कीर्ति प्रिंटिग प्रेस, उज्जैन ने मुझे प्रकाशन हेतु जो सहयोग दिया है उस के लिए धन्यवाद |
श्रीमती आशा लता सक्सेना
)मैरे विचार से
मैं आशा लता सक्सेना सभी पाठकों के लिए अपना नया काव्य संग्रह “विभावरी” लाई हूँ |पढ़ कर अपना अभिमत दे कर मुझे प्रोत्साहित करें |लिखने के लिए इतनी सामग्री है कि कभी समाप्त नहीं होती |मन खोज में भटक कर रह जाता है |कभी संतुष्टि नहीं मिलाती |हर बार सोचती हूँ बस अब पर्याप्त लिख लिया अब नहीं लिखूंगी पर ऐसा होता नहीं है |मुझे किसी विधा विशेष में लिखना नहीं आता |आसपास की धटनाएं अपनी ओर आकृष्ट करती हैं |प्रकृति मुझे अपनी ओर खींचती है उससे सम्बन्ध स्थापित कर कुछ लिखने को बाध्य करती है कुछ उदाहरण देखिये :-
“तब शूल लगते पुष्प जैसे
रंगीन समा होता मन में
सुबह शाम डूबा रहता
वह अपने ही ख्यालों में” (यौवन)
सात आश्वों के रथ पर सवार
प्रातः काल चला आदित्य देशाटन को
रह के नज़ारे मन को ऐसे भाए
वहीं रहने को मन बनाया |(चला आदित्य भ्रमण को)
“बरसा मेह
तरबतर किया
नहला दिया
उसको व धरा को
खिली गुलाब जैसी” (गाँव की गोरी )
सध्य स्नाना सी
प्यार हुआ जब से उसे
कभी दूर न हुई तुमसे
हर पल तुममें खोई रही
कोई और चाह न रही |(एहसास प्यार का)
हाइकु लेखन का अपना ही आनंद है |तीन लाइनों और निश्चित शब्दों में सिमटा एक विचार बहुत अच्छा लगता है | हाइकु के कुछ उदाहरण देखिये :-
कब कहना
कितना है कहना
सार्थक यहाँ
कहाँ हो राम
कहीं नहीं विश्राम
इस जग में
तुम्हारे बिना
सूनी लगे दुनिया
मैं क्या करती |
,समाज में रह कर सामाजिक नियमों से दूरी नहीं रखी जा सकती |आत्म मंथन बहुत आवश्यक होता सही या गलत सोचने के लिए |मन की बदलती भावनाएं दिखाई देंगी बहुत सी रचनाओं में | कभी “प्यार का एहसास” होगा कभी “मन बिचलित” कभी “नारी एक अपेक्षा तुमसे ” कभी भाक्ति की शक्ति | मुझे अपने घर से पूरा सहयोग मिला है जिस के बिना बहुत कठिन होता यह लिखना लिखाना | मेरी बहिन साधना वैद मेरी प्रेरणा स्रोत है | आदरणीय सुधिजन जब पुस्तक आपके हाथों में होगी तभी उसका सही आकलन हो पाएगा|
आशा लता सक्सेना
(सेवा निवृत्त व्याख्याता )
आभार :-मैं आभारी हूँ स्मिता श्रीवास्तव की जिन्हों ने सम्पादन किया |श्रीमती कल्पना मुले की जिन्हों अपना अमूल्य समय दिया है”विभावरी”(काव्य संग्रह ) की भूमिका लिखने के लिए | आभारी हूँ श्री अरिहंत जैन और उनके सहयोगियों की जिन्होंने मेरी पुस्तक को यह रूप दिया है | कीर्ति प्रिंटिग प्रेस, उज्जैन ने मुझे प्रकाशन हेतु जो सहयोग दिया है उस के लिए धन्यवाद |
श्रीमती आशा लता सक्सेना
)मैरे विचार से
मैं आशा लता सक्सेना सभी पाठकों के लिए अपना नया काव्य संग्रह “विभावरी” लाई हूँ |पढ़ कर अपना अभिमत दे कर मुझे प्रोत्साहित करें |लिखने के लिए इतनी सामग्री है कि कभी समाप्त नहीं होती |मन खोज में भटक कर रह जाता है |कभी संतुष्टि नहीं मिलाती |हर बार सोचती हूँ बस अब पर्याप्त लिख लिया अब नहीं लिखूंगी पर ऐसा होता नहीं है |मुझे किसी विधा विशेष में लिखना नहीं आता |आसपास की धटनाएं अपनी ओर आकृष्ट करती हैं |प्रकृति मुझे अपनी ओर खींचती है उससे सम्बन्ध स्थापित कर कुछ लिखने को बाध्य करती है कुछ उदाहरण देखिये :-
“तब शूल लगते पुष्प जैसे
रंगीन समा होता मन में
सुबह शाम डूबा रहता
वह अपने ही ख्यालों में” (यौवन)
सात आश्वों के रथ पर सवार
प्रातः काल चला आदित्य देशाटन को
रह के नज़ारे मन को ऐसे भाए
वहीं रहने को मन बनाया |(चला आदित्य भ्रमण को)
“बरसा मेह
तरबतर किया
नहला दिया
उसको व धरा को
खिली गुलाब जैसी” (गाँव की गोरी )
सध्य स्नाना सी
प्यार हुआ जब से उसे
कभी दूर न हुई तुमसे
हर पल तुममें खोई रही
कोई और चाह न रही |(एहसास प्यार का)
हाइकु लेखन का अपना ही आनंद है |तीन लाइनों और निश्चित शब्दों में सिमटा एक विचार बहुत अच्छा लगता है | हाइकु के कुछ उदाहरण देखिये :-
कब कहना
कितना है कहना
सार्थक यहाँ
कहाँ हो राम
कहीं नहीं विश्राम
इस जग में
तुम्हारे बिना
सूनी लगे दुनिया
मैं क्या करती |
,समाज में रह कर सामाजिक नियमों से दूरी नहीं रखी जा सकती |आत्म मंथन बहुत आवश्यक होता सही या गलत सोचने के लिए |मन की बदलती भावनाएं दिखाई देंगी बहुत सी रचनाओं में | कभी “प्यार का एहसास” होगा कभी “मन बिचलित” कभी “नारी एक अपेक्षा तुमसे ” कभी भाक्ति की शक्ति | मुझे अपने घर से पूरा सहयोग मिला है जिस के बिना बहुत कठिन होता यह लिखना लिखाना | मेरी बहिन साधना वैद मेरी प्रेरणा स्रोत है | आदरणीय सुधिजन जब पुस्तक आपके हाथों में होगी तभी उसका सही आकलन हो पाएगा|
आशा लता सक्सेना
(सेवा निवृत्त व्याख्याता )
आभार :-मैं आभारी हूँ स्मिता श्रीवास्तव की जिन्हों ने सम्पादन किया |श्रीमती कल्पना मुले की जिन्हों अपना अमूल्य समय दिया है”विभावरी”(काव्य संग्रह ) की भूमिका लिखने के लिए | आभारी हूँ श्री अरिहंत जैन और उनके सहयोगियों की जिन्होंने मेरी पुस्तक को यह रूप दिया है | कीर्ति प्रिंटिग प्रेस, उज्जैन ने मुझे प्रकाशन हेतु जो सहयोग दिया है उस के लिए धन्यवाद |
श्रीमती आशा लता सक्सेना
मैं आशा लता सक्सेना सभी पाठकों के लिए अपना नया काव्य संग्रह “विभावरी” लाई हूँ |पढ़ कर अपना अभिमत दे कर मुझे प्रोत्साहित करें |लिखने के लिए इतनी सामग्री है कि कभी समाप्त नहीं होती |मन खोज में भटक कर रह जाता है |कभी संतुष्टि नहीं मिलाती |हर बार सोचती हूँ बस अब पर्याप्त लिख लिया अब नहीं लिखूंगी पर ऐसा होता नहीं है |मुझे किसी विधा विशेष में लिखना नहीं आता |आसपास की धटनाएं अपनी ओर आकृष्ट करती हैं |प्रकृति मुझे अपनी ओर खींचती है उससे सम्बन्ध स्थापित कर कुछ लिखने को बाध्य करती है कुछ उदाहरण देखिये :-
“तब शूल लगते पुष्प जैसे
रंगीन समा होता मन में
सुबह शाम डूबा रहता
वह अपने ही ख्यालों में” (यौवन)
सात आश्वों के रथ पर सवार
प्रातः काल चला आदित्य देशाटन को
रह के नज़ारे मन को ऐसे भाए
वहीं रहने को मन बनाया |(चला आदित्य भ्रमण को)
“बरसा मेह
तरबतर किया
नहला दिया
उसको व धरा को
खिली गुलाब जैसी” (गाँव की गोरी )
सध्य स्नाना सी
प्यार हुआ जब से उसे
कभी दूर न हुई तुमसे
हर पल तुममें खोई रही
कोई और चाह न रही |(एहसास प्यार का)
हाइकु लेखन का अपना ही आनंद है |तीन लाइनों और निश्चित शब्दों में सिमटा एक विचार बहुत अच्छा लगता है | हाइकु के कुछ उदाहरण देखिये :-
कब कहना
कितना है कहना
सार्थक यहाँ
कहाँ हो राम
कहीं नहीं विश्राम
इस जग में
तुम्हारे बिना
सूनी लगे दुनिया
मैं क्या करती |
,समाज में रह कर सामाजिक नियमों से दूरी नहीं रखी जा सकती |आत्म मंथन बहुत आवश्यक होता सही या गलत सोचने के लिए |मन की बदलती भावनाएं दिखाई देंगी बहुत सी रचनाओं में | कभी “प्यार का एहसास” होगा कभी “मन बिचलित” कभी “नारी एक अपेक्षा तुमसे ” कभी भाक्ति की शक्ति | मुझे अपने घर से पूरा सहयोग मिला है जिस के बिना बहुत कठिन होता यह लिखना लिखाना | मेरी बहिन साधना वैद मेरी प्रेरणा स्रोत है | आदरणीय सुधिजन जब पुस्तक आपके हाथों में होगी तभी उसका सही आकलन हो पाएगा|
आशा लता सक्सेना
(सेवा निवृत्त व्याख्याता )
आभार :-मैं आभारी हूँ स्मिता श्रीवास्तव की जिन्हों ने सम्पादन किया |श्रीमती कल्पना मुले की जिन्हों अपना अमूल्य समय दिया है”विभावरी”(काव्य संग्रह ) की भूमिका लिखने के लिए | आभारी हूँ श्री अरिहंत जैन और उनके सहयोगियों की जिन्होंने मेरी पुस्तक को यह रूप दिया है | कीर्ति प्रिंटिग प्रेस, उज्जैन ने मुझे प्रकाशन हेतु जो सहयोग दिया है उस के लिए धन्यवाद |
श्रीमती आशा लता सक्सेना
मैं आशा लता सक्सेना सभी पाठकों के लिए अपना नया काव्य संग्रह “विभावरी” लाई हूँ |पढ़ कर अपना अभिमत दे कर मुझे प्रोत्साहित करें |लिखने के लिए इतनी सामग्री है कि कभी समाप्त नहीं होती |मन खोज में भटक कर रह जाता है |कभी संतुष्टि नहीं मिलाती |हर बार सोचती हूँ बस अब पर्याप्त लिख लिया अब नहीं लिखूंगी पर ऐसा होता नहीं है |मुझे किसी विधा विशेष में लिखना नहीं आता |आसपास की धटनाएं अपनी ओर आकृष्ट करती हैं |प्रकृति मुझे अपनी ओर खींचती है उससे सम्बन्ध स्थापित कर कुछ लिखने को बाध्य करती है कुछ उदाहरण देखिये :-
“तब शूल लगते पुष्प जैसे
रंगीन समा होता मन में
सुबह शाम डूबा रहता
वह अपने ही ख्यालों में” (यौवन)
सात आश्वों के रथ पर सवार
प्रातः काल चला आदित्य देशाटन को
रह के नज़ारे मन को ऐसे भाए
वहीं रहने को मन बनाया |(चला आदित्य भ्रमण को)
“बरसा मेह
तरबतर किया
नहला दिया
उसको व धरा को
खिली गुलाब जैसी” (गाँव की गोरी )
सध्य स्नाना सी
प्यार हुआ जब से उसे
कभी दूर न हुई तुमसे
हर पल तुममें खोई रही
कोई और चाह न रही |(एहसास प्यार का)
हाइकु लेखन का अपना ही आनंद है |तीन लाइनों और निश्चित शब्दों में सिमटा एक विचार बहुत अच्छा लगता है | हाइकु के कुछ उदाहरण देखिये :-
कब कहना
कितना है कहना
सार्थक यहाँ
कहाँ हो राम
कहीं नहीं विश्राम
इस जग में
तुम्हारे बिना
सूनी लगे दुनिया
मैं क्या करती |
,समाज में रह कर सामाजिक नियमों से दूरी नहीं रखी जा सकती |आत्म मंथन बहुत आवश्यक होता सही या गलत सोचने के लिए |मन की बदलती भावनाएं दिखाई देंगी बहुत सी रचनाओं में | कभी “प्यार का एहसास” होगा कभी “मन बिचलित” कभी “नारी एक अपेक्षा तुमसे ” कभी भाक्ति की शक्ति | मुझे अपने घर से पूरा सहयोग मिला है जिस के बिना बहुत कठिन होता यह लिखना लिखाना | मेरी बहिन साधना वैद मेरी प्रेरणा स्रोत है | आदरणीय सुधिजन जब पुस्तक आपके हाथों में होगी तभी उसका सही आकलन हो पाएगा|
आशा लता सक्सेना
(सेवा निवृत्त व्याख्याता )
आभार :-मैं आभारी हूँ स्मिता श्रीवास्तव की जिन्हों ने सम्पादन किया |श्रीमती कल्पना मुले की जिन्हों अपना अमूल्य समय दिया है”विभावरी”(काव्य संग्रह ) की भूमिका लिखने के लिए | आभारी हूँ श्री अरिहंत जैन और उनके सहयोगियों की जिन्होंने मेरी पुस्तक को यह रूप दिया है | कीर्ति प्रिंटिग प्रेस, उज्जैन ने मुझे प्रकाशन हेतु जो सहयोग दिया है उस के लिए धन्यवाद |
श्रीमती आशा लता सक्सेना
मैं आशा लता सक्सेना सभी पाठकों के लिए अपना नया काव्य संग्रह “विभावरी” लाई हूँ |पढ़ कर अपना अभिमत दे कर मुझे प्रोत्साहित करें |लिखने के लिए इतनी सामग्री है कि कभी समाप्त नहीं होती |मन खोज में भटक कर रह जाता है |कभी संतुष्टि नहीं मिलाती |हर बार सोचती हूँ बस अब पर्याप्त लिख लिया अब नहीं लिखूंगी पर ऐसा होता नहीं है |मुझे किसी विधा विशेष में लिखना नहीं आता |आसपास की धटनाएं अपनी ओर आकृष्ट करती हैं |प्रकृति मुझे अपनी ओर खींचती है उससे सम्बन्ध स्थापित कर कुछ लिखने को बाध्य करती है कुछ उदाहरण देखिये :-
“तब शूल लगते पुष्प जैसे
रंगीन समा होता मन में
सुबह शाम डूबा रहता
वह अपने ही ख्यालों में” (यौवन)
सात आश्वों के रथ पर सवार
प्रातः काल चला आदित्य देशाटन को
रह के नज़ारे मन को ऐसे भाए
वहीं रहने को मन बनाया |(चला आदित्य भ्रमण को)
“बरसा मेह
तरबतर किया
नहला दिया
उसको व धरा को
खिली गुलाब जैसी” (गाँव की गोरी )
सध्य स्नाना सी
प्यार हुआ जब से उसे
कभी दूर न हुई तुमसे
हर पल तुममें खोई रही
कोई और चाह न रही |(एहसास प्यार का)
हाइकु लेखन का अपना ही आनंद है |तीन लाइनों और निश्चित शब्दों में सिमटा एक विचार बहुत अच्छा लगता है | हाइकु के कुछ उदाहरण देखिये :-
कब कहना
कितना है कहना
सार्थक यहाँ
कहाँ हो राम
कहीं नहीं विश्राम
इस जग में
तुम्हारे बिना
सूनी लगे दुनिया
मैं क्या करती |
,समाज में रह कर सामाजिक नियमों से दूरी नहीं रखी जा सकती |आत्म मंथन बहुत आवश्यक होता सही या गलत सोचने के लिए |मन की बदलती भावनाएं दिखाई देंगी बहुत सी रचनाओं में | कभी “प्यार का एहसास” होगा कभी “मन बिचलित” कभी “नारी एक अपेक्षा तुमसे ” कभी भाक्ति की शक्ति | मुझे अपने घर से पूरा सहयोग मिला है जिस के बिना बहुत कठिन होता यह लिखना लिखाना | मेरी बहिन साधना वैद मेरी प्रेरणा स्रोत है | आदरणीय सुधिजन जब पुस्तक आपके हाथों में होगी तभी उसका सही आकलन हो पाएगा|
आशा लता सक्सेना
(सेवा निवृत्त व्याख्याता )
आभार :-मैं आभारी हूँ स्मिता श्रीवास्तव की जिन्हों ने सम्पादन किया |श्रीमती कल्पना मुले की जिन्हों अपना अमूल्य समय दिया है”विभावरी”(काव्य संग्रह ) की भूमिका लिखने के लिए | आभारी हूँ श्री अरिहंत जैन और उनके सहयोगियों की जिन्होंने मेरी पुस्तक को यह रूप दिया है | कीर्ति प्रिंटिग प्रेस, उज्जैन ने मुझे प्रकाशन हेतु जो सहयोग दिया है उस के लिए धन्यवाद |
श्रीमती आशा लता सक्सेना
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सार्थक भूमिका ! बहुत बढ़िया !
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