बहुत पुरानी बात है
जब मेरा बेटा कक्षा छह का छात्र था |सरस्वती शिशुमंदिर में पढ़ता था |दूसरे स्थानों
से कुछ बच्चे आए थे |यहाँ के बच्चों के घर में उन्हें ठहराना था |सर ने कहा अपने
अपने बच्चे छांट लो |
मेरे बेटे ने न जाने
क्या सोचा? एक छोटे से सुन्दर बालक को चुन कर
अपने साथ ले आया |बहुत खुश था अपने नन्हे से महमान को पाकर |
जैसे ही ये घर आए वह बोला” पापा देखो मैं अपने साथ किसे लाया हूँ “|उसका परिचय करवाया और यह भी जोड़ दिया “मैंने तो छोटे बच्चे को ही चुना अपना घर छोटा है | सर तो बहुत बड़े बच्चे को मेरे साथ भेज रहे थे | मैंने मना कर दिया “मुझे यही बालक पसंद आया “||वह एक सप्ताह तक हमारे यहाँ रहा |पता ही नहीं चला कोई नया व्यक्ति घर आया था |इतना घुलमिल गया था कि जब गया मुझे भी बहुत खालीपन लगा था |यह किस कारण बच्चों का आना जाना होता आवश्यक तभी समझ में आया |यह पहला प्रयास था स्कूल का बच्चों में सामाजिकताको पनपाने का |बहुत सफल प्रयास था मित्रवत व्यवहार पनपाने का |
आशा
आशा
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