जब भी गाँव जाते थे अपने दो मंजिले मकान में ही ठहरते थे |बहुत पुरानी बात है हमारा मकान ऐसा था कि जब भी ड्राइंग रूम में जाना पड़ता था बाक़ी कमरों से जीने पर से वहां पहुंचना पड़ता था| | बाबूजी रेडिओ पर कोई प्रोग्राम सुनने के लिए वहां ही जाते थे |एक दिन जब सरोजनी नाईदू पर कोई प्रोग्राम आया वे उसे सुनने के लिए उस कमरे में चले गए |भीतर के कमरे में हम दौनों भाई बहिन किसी बात पर आपस में झगड़ने लगे |यह तक भूले कि हम कहाँ थे |आपस में गुत्थमगुत्था होने लगी और बात इतनी बढ़ी कि मेरे भाई ने मुझे जीने पर से धक्का दे दिया पर वह भी न बच पाया उसका मेरे ऊपर गिरना हुआ |उसका भी मेरे ऊपर से गिरने के कारण मेरे खून निकलने लगा | सब बहुत घबराए और जल्दी से सामने के अस्पताल में ले कर भागे |वहां टाँके लगवाए तब जान में जान आई |उस समय दोनो के एकसाथ रोने से कोहराम मच गया था |तब बाबूजी ने कसम खाई कि जब तक वहाँ रहेंगे नीचे के मकान में ही रहेंगे | और दूसरे दिन से मकान की खोज बहुत मुस्तैदी से होने लगी | अब तो जब भी कोई आता और मकान की बात चलती बाबूजी उन्हें नीचे के मकान में रहने की सलाह देते |कहते छोटे बच्चों के साथ ऊपर की मंजिल में नहीं रहना चाहिए |
आशा सक्सेना
अरे वाह ! कितना सुन्दर संस्मरण ! यह किस घर की बात है ? हम कहाँ थे तब ? खाचरौद की बात है क्या ?
ReplyDeleteतब बाबूजी गोहद में थे तब तुम्हारा जन्म भी नहीं हुआ था |
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