विचारों का जलजला -
मन में विचारों का जलजला जब आता है सही गलत का ध्यान ही नहीं रहता |उस समय तो ऐसा लगता है कि किसी प्रकारअपने मन की सारी भड़ास निकाल दी जाए जिससे मन हल्का हो पाए |अपने मन की सारी बातें जब किसी से कही जाती हैं यह तक नहीं सोचा जाता कि ये बातें दूसरे के लिए आवश्यक भी है कि नहीं |यूं ही अपना समय और सामने वाले का समय क्यूँ व्यर्थ किया जाए |एक सीमा तक तो अपने विचार दूसरों पर थोपना कहाँ तक न्याय पूर्ण है ?आप के विचार कैसे हैं
क्या आप भी मेरे विचारों से सहमत हैं ?
आशा
क्यूँ व्यर्थ किया जाए |एक सीमा तक तो
अपने विचार दूसरों पर थोपना कहाँ तक
न्याय पूर्ण है ?आप के विचार कैसे हैं
क्या आप भी मेरे विचारों से सहमत हैं ?
आशा
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