16 दिसंबर, 2009
एक कहानी सूरज नारायण की
एक परिवार में रहते तो केवल तीन सदस्य थे ,पर महिलाओं में आपस में बिल्कुल नहीं बनती थी |सरे दिन
आपस में झगडती रहतीथी । घर में सारे दिन की कलह से सूरज नारायण बहुत तंग आ चुका था |न तो घर
में कोईबरकत रह गई थी और न ही कोई रौनक |
यदि कोई अतिथि आता ,सास बहू के व्यबहार से वह भी दुखी होकर जाता | धीरे धीरे घर के वातावरण
से उकता कर वह घर से बाहर अधिक रहने लगा |जब इतने से भी बात नहीं बनी ,एक दिन शान्ति की तलाश
में सूरज ने घर छोड़ दिया |
इधर पहले तो कोई बात न हुई पर जब वह नहीं आया तो सास बहू ने उसकी तलाश शुरू की |सास भानुमती
एक जानकर के पास गयी व अपने पुत्र की बापसी का उपाय पूंछा | बहू ने भी अपने पति को पाने के उपाय
अप्नी सहेलियों से पूछे|
सब लोगों से चर्चा करने पर उन्होंने पाया की यदि घर का अशान्त वातावरण,गंदगी व आपसी तालमेल का
अभाव रहे तो कोई भी वहां नहीं रहना चाहता , चाहे पति ही क्यूँ न हो |
दूसरे ही दिन सास भानुमती ने अपनी बहू सुमेधा को अपने पास बुलाया |लोगों द्वारा दिए गये सुझावों की
जानकारी उसे दी |पति के घर छोड़ देने से परेशान सुमेधा ने भी हथियार दल दिए व सास का कहना मानने लगी |
अब घर में सभी कार्य सुचारू रूप से होने लगे घर की साफ सफाई देखने योग्य थी |यदि कोई आता तो उसे
ससम्मान बैठाया जाता |आदर से जलपान कराया जाता तथा यथोचित भेट ,उपहार आदि देकर विदा किया जाता | धीरे धीरे सभी बाते सूरज तक पहुचने लगी |उसने माँ व सुमेधा की परीक्षा लेने के लिए एक कोढ़ी का वेश
धरण किया और अपने घर जाकर दरवाजा खटखटाया | जैसे ही दरवाजा खुला सुमेधा को अपने सामने पाया |
सुमेधा उसे न पहचान सकी |फिरभी वह व भानुमती उसकी सेवा करने लगी|आदर से एक पाट पर बैठकर
उसके पैर धुलाए , भोजन करवाया व पान दिया | भोजन के बाद सूरज ने सोना चाहा और सूरज नारायण के बिस्तर पर सोने की इच्छा जाहिर की |सास ने खा बुजुर्ग है सोजानेदो |सुमेधा ने उसे सोजाने दिया |
पर सूरज ने एकाएक उसका हाथ पकड़ा व कहा मई सूरज नारायण हूँ |इस पर सुमेधा ने कहा "मेरे
पति तो इस करवे की टोटी में से निकल सकते है ,यदि आप निकल जाओ तभी मई आपको अपना पति मानू"
सूरज ने बड़ी सरलता से करवे की टोंटी से निकल कर दिखा दिया व अपने असली रूप मे आगये |
अब घर का माहोल बदल गया व घर फिरसे खुश हाल होगया |
आपस में झगडती रहतीथी । घर में सारे दिन की कलह से सूरज नारायण बहुत तंग आ चुका था |न तो घर
में कोईबरकत रह गई थी और न ही कोई रौनक |
यदि कोई अतिथि आता ,सास बहू के व्यबहार से वह भी दुखी होकर जाता | धीरे धीरे घर के वातावरण
से उकता कर वह घर से बाहर अधिक रहने लगा |जब इतने से भी बात नहीं बनी ,एक दिन शान्ति की तलाश
में सूरज ने घर छोड़ दिया |
इधर पहले तो कोई बात न हुई पर जब वह नहीं आया तो सास बहू ने उसकी तलाश शुरू की |सास भानुमती
एक जानकर के पास गयी व अपने पुत्र की बापसी का उपाय पूंछा | बहू ने भी अपने पति को पाने के उपाय
अप्नी सहेलियों से पूछे|
सब लोगों से चर्चा करने पर उन्होंने पाया की यदि घर का अशान्त वातावरण,गंदगी व आपसी तालमेल का
अभाव रहे तो कोई भी वहां नहीं रहना चाहता , चाहे पति ही क्यूँ न हो |
दूसरे ही दिन सास भानुमती ने अपनी बहू सुमेधा को अपने पास बुलाया |लोगों द्वारा दिए गये सुझावों की
जानकारी उसे दी |पति के घर छोड़ देने से परेशान सुमेधा ने भी हथियार दल दिए व सास का कहना मानने लगी |
अब घर में सभी कार्य सुचारू रूप से होने लगे घर की साफ सफाई देखने योग्य थी |यदि कोई आता तो उसे
ससम्मान बैठाया जाता |आदर से जलपान कराया जाता तथा यथोचित भेट ,उपहार आदि देकर विदा किया जाता | धीरे धीरे सभी बाते सूरज तक पहुचने लगी |उसने माँ व सुमेधा की परीक्षा लेने के लिए एक कोढ़ी का वेश
धरण किया और अपने घर जाकर दरवाजा खटखटाया | जैसे ही दरवाजा खुला सुमेधा को अपने सामने पाया |
सुमेधा उसे न पहचान सकी |फिरभी वह व भानुमती उसकी सेवा करने लगी|आदर से एक पाट पर बैठकर
उसके पैर धुलाए , भोजन करवाया व पान दिया | भोजन के बाद सूरज ने सोना चाहा और सूरज नारायण के बिस्तर पर सोने की इच्छा जाहिर की |सास ने खा बुजुर्ग है सोजानेदो |सुमेधा ने उसे सोजाने दिया |
पर सूरज ने एकाएक उसका हाथ पकड़ा व कहा मई सूरज नारायण हूँ |इस पर सुमेधा ने कहा "मेरे
पति तो इस करवे की टोटी में से निकल सकते है ,यदि आप निकल जाओ तभी मई आपको अपना पति मानू"
सूरज ने बड़ी सरलता से करवे की टोंटी से निकल कर दिखा दिया व अपने असली रूप मे आगये |
अब घर का माहोल बदल गया व घर फिरसे खुश हाल होगया |
आशा
- दि
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