अमृत कलश

Monday, September 23, 2013

समीक्षा( अन्तःप्रवाह) रूप चन्द्र जी शास्त्री द्वारा लिखित



22 अक्तूबर, 2012

मुझे श्री रूपचंदशास्त्री (‘मयंक’)के द्वारा लिखी गयी मेरी पुस्तक "अन्तः प्रवाह "की समीक्षा को आप सब के साथ बाटते हुए बहुत प्रसन्नता हो रही है |आशा है आपसब पाठक  भी उसका आनंद ले सकेंगे |


मन के प्रवाह का संकलन है अन्तःप्रवाह
   कुछ दिनों पूर्व ख्यातिप्राप्त कवयित्री स्व. ज्ञानवती सक्सेना की पुत्री श्रीमती आशालता सक्सेना के काव्य संकलन अन्तःप्रवाह की प्रति की मुझे डाक से मिली थी। जिसको आद्योपान्त पढ़ने के उपरान्त मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि अन्तःप्रवाहउनके मन के प्रवाहों का संकलन है। 
  इस संकलन की भूमिका विक्रम विश्वविद्यालय, उजैन के प्राचार्य डॉ. बालकृष्ण शर्मा ने लिखी है। यह श्रीमती आशालता सक्सेना का द्वितीय रचना संकलन है और इसमें अपनी 84 कविताओं को उन्होंने स्थान दिया है। कवयित्री ने कीर्ति प्रिंटिंग प्रैस, उज्जैन से इसको छपवाया है जिसकी प्रकाशिका वो स्वयं ही हैं। एक सौ दस पृषठों के इस संकलन का मूल्य उन्होंने 200/- मात्र रखा है। इससे पूर्व इनका एक काव्य संकलन अनकहा सच भी प्रकाशित हो चुका है।
    कवयित्री ने इस काव्यसंग्रह के अपनी ममतामयी माता सुप्रसिद्ध कवयित्री स्व. डॉ. (श्रीमती) ज्ञानवती सक्सेना किरण को समर्पित किया है। अपनी शुभकामनाएँ देते हुए शासकीय स्नातकोत्तर शिक्षा महाविद्यालय, भोपाल से अवकाशप्राप्त प्राचार्या सुश्री इन्दु हेबालकर ने लिखा है-
कवयित्री ने काव्य को सरल साहित्यिक शब्दों में अभिव्यक्त कर पुस्तक अन्तःप्रवाह को प्रभावशाली बनाया है। आपको हार्दिक आशीर्वाद। इसी प्रकार लिखती रहें और एक छोटी पतंग, रंबिरंगी न्यारी-न्यारी उड़ाती रहें।
     श्रीमती आशालता सक्सेना ने अपनी बात कहते हुए लिखा है-
मैं काफी समय से कम्प्यूटर से जुड़ी हुई हूँ अपने ब्लॉग आकांक्षा Akankshaपर अपनी रचनाएँ लगाती हूँ। अंग्रेजी भाषा में भी लेखनकार्य करती हूँ.... आस-पास की छोटी-छोटी घटनाएँ मुझे प्रभावित करती हैं। मैं एक संवेदनशील और भावुक महिला हूँ। मन में उमड़ते विचारों और अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने के लिए मैंने कविता लेखन को माध्यम बनाया है...।
कवयित्री ने अन्तःप्रवाह की शीर्षक रचना को पहली कविता के रूप मे स्थान दिया है, जिसमें उन्होंने लिखा है-
..नाव जगमगाई

उर्मियों की बाहों में
फिर भी तट तक पहुँच पाया
ना खया अन्तःप्रवाह में...
      अपनी कविताओं में श्रीमती आशालता सक्सेना जी ने बरसात के बारे में लिखा है-
हरी-भरी वादी में

लगी जोर की आग
मन ने सोचा
जाने क्या होगा हाल
फिर जोर से चली हवा
उमड-घुमड़ बादल बरसा
सरसा तब संसार...
    "अन्तःप्रवाह" में कवयित्री की बहुमुखी प्रतिभा की झलक दिखाई देती है। ज़िन्दगी के बारे में वे लिखतीं हैं-
यह ज़िन्दगी की शाम

अजीब सा सोच है
कभी है होश
कभी खामोश है...
    एक ओर जहाँ इन्होंने नफरत, प्रतीक्षा, अतीत, शब्द, नीड़, अजनबी, अवसाद, बन्धन, आतंक, भटकाव, अफवाहें, अहंकार आदि विषयों को   अपनी रचना का विषय बनाया है, तो दूसरी ओर बहार, बाँसुरी, मन का सुख, बेटी, पतंग, होली, दीपावली, सपनों आदि के विभिन्न रूपों को भी उनकी रचनाओं में विस्तार मिला है। वे अपने परिवेश की सामाजिक समस्याओं पर भी अपनी लेखनी चलाई है
    बेटी के बारे में वे लिखतीं हैं-
बेटी अजन्मी सोच रही

क्यूँ उदास माँ दिखती है
जब भी कुछ जानना चाहूँ
यूँ ही टाल देती है
रह न पाई
कुलबुलाई
समय देख प्रशन दागा
क्या तुम मुझे नहीं चाहती...
   सहनशीलता के बारे में कवयित्री लिखती है-
रल नहीं सहनशील होना

इच्छा शक्ति धरा सी होना
नहीं दूर अपने कर्तव्य से...
मृगतृष्णा पर प्रकाश डालते हुए कवयित्री कहती है-
जल देख आकृष्ट हुआ
घंटों बैठ अपलक निहारा
आसपास था जल ही जल
जगी प्यास बढ़ने लगी
खारा पानी इतना
कि बूँद-बूँद जल को तरसा
गला तर न कर पाया
प्यासा था प्यासा ही रहा...
मन की ऊहापोह के बारे में कवयित्री लिखती है-
मन चाहता है
कुछ नया लिखूँ
क्या लिखूँ
कैसे लिखूँ
किसपर लिखूँ
हैं प्रश्न अनेक
पर उत्तर एक
प्रयत्न करूँ
प्रयत्न करूँ.."
अंग्रेजी की प्राध्यापिका होने के बावजूद कवयित्री ने हिन्दी भाषा के प्रति अनुराग व्यक्त करते हुए लिखा है-
 “भाषा अपनी
भोजन अपना
रहने का अंदाज अपना
भिन्न धर्म और नियम उनके
फिर भी बँधे एक सूत्र से
.....
भारत में रहते हैं
हिन्दुस्तानी कहलाते हैं
फिर भाषा पर विवाद कैसा
....
सरल-सहज
और बोधगम्यता लिए
शब्दों का प्रचुर भण्डार
हिन्दी ही तो है...
नयनाभिराम मुखपृष्ठ, स्तरीय सामग्री से सुसज्जित यह काव्य संकलन स्वागत योग्य है। आम आदमी की भाषा में लिखी गयीं सभी रचनाएँ कवयित्री ने संवेदनशीलता के मर्म में डूबकर लिखी हैं। आशा है कि आशालता जी का अन्तःप्रवाह पाठकों के मन में गहराई से अपनी पैठ बनायेगा।
इस सुबोधगम्य और पठनीय काव्यसंग्रह के लिये श्रीमती आशालता सक्सेना को मैं अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
खटीमा (उत्तराखण्ड) पिन-262308
सम्पर्क-09368499921,
वेबसाइट-http://uchcharan.blogspot.in/

8 टिप्‍पणियां:

  1. इस उच्च स्तारीय पुस्तक समीक्षा के लिए मैं श्री शास्त्री जी की बहुत आभारी हूँ |पुस्तक का isbn ९७८-९३-५१३७-४१४-५ है
    आशा
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  2. दुर्गा पूजा और विजयादशमी की शुभकामनायें| कविताओं में निसंदेह जीवन के हर रंग और सभी रूपों की सार्थकता को जिया जा सकता है |
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  3. आशा जी बहुत -बहुत बधाई,,, ढेर सारी शुभकामनाएँ.....
    :-)
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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    दुर्गाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  5. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा मंगलवार २३/१०/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है
    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  6. बहुत-बहुत बधाई जीजी ! शास्त्री जी ने बहुत ही सुन्दर समीक्षा की है पुस्तक की ! आपको विजयादशमी की ढेर सारी शुभकामनायें तथा शास्त्री जी का बहुत-बहुत धन्यवाद एवँ अभिनन्दन !
    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  7. बहुत ही सुन्दर अभिनव प्रस्तुति..
    आपको पुस्तक प्रकाशन पर बहुत बहुत बधाई.
    विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें
    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
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अन्तःप्रवाह पर राम सिंह जी यादव के द्वारा लिखी गयी समीक्षा

         हिन्दी साहित्य की वरिष्ट प्रख्यात लोकप्रिय कवयित्री श्रीमती आशा लता सक्सेना के दूसरे नवीन संस्करण "अन्तः प्रवाह "का मैंने अवलोकन किया और आकंठ श्रीमती आशा लता जी की कविताओं में डूबता चला गया| साहित्य साधना में निरंतर रत कवयित्री श्रीमती सक्सेना के इस काव्य संकलन में ८३ कवितायेँ संकलित हैं |कविता  का कोई मानक नहीं होता क्यों की अनुभूतियों की तरलता कवि मन की व्यापकता के अनुसार अपना रूप ग्रहण करती है |फिर भी इतना तो कहा ही जा सकता है कि रागात्मक अनुभूतियों का स्वतः प्रस्फुटन काव्य बन कर अवतरित होता है तथा अपने अर्थ -माधुरी से पाठकों को सम्मोहित करता है तो रचनाएँ और सार्थक हो जाती हैं |श्रीमती आशा लता सक्सेना जी की कविताओं पर उक्त उक्ति सहज ही चरितार्थ होती है |
        अन्तः प्रवाह संग्रह में जो कवितायेँ संकलित हैं उनमें विचार बीज गहन है |वस्तुतः कवयित्री के मन में प्रकृति -प्रेम ,जीवन -समाज आदि से सम्बंधित अनेक प्रश्न उभरते हैं और उन प्रश्नों का उत्तर देने में कविता बना जाती है |
        नए तेवर , नए आयाम व नए अहसास लिए इस संकलन की रचनाओं में शिल्प एवं काव्य की नवीनता के स्वयं जीवन के धनेरे अनुभव हैं जो मानव को एक नई सोच नई दिशा देते हैं ,कहीं छायावाद की सूक्ष्म
भावाभिव्यन्जना और कोमलता है तो कहीं जीवन की देखी भोगी हुई भयावहता विद्रूपताओं की चुभन |
वही  प्रकृति में अभिराम स्थित है तो कहीं सामाजिक विसंगतियों की कुंठा है |कवितायेँ कुछ लघु आकार में हैं तो कुछ बड़ी |परिस्थितियाँ चाहे कितनी प्रतिकूल क्यूं न हों ,जीवन में संघर्ष क्यों न हो ,अवरोध भले ही हो पर इंसान की परिभाषा सतत प्रयत्नशील  रहना है -
                                       यह जिंदगी की शाम अजब सा सोच है
                                                 |कभी है होश कभी खामोश है |
यही आज के आदमी की हालत उसके आदमी होने की परिभाषा है |चिंतन के विविध रूप रचनाओं में देखने को मिले |आत्मपरक ,आध्यात्मिक ,समिष्टि का एक भाव बहुत कुछ कह जाता है |रोम -रोम में एक धडकन स्पंदन में किसी के रचे बसे होने का आभास करा जाता है |-
पंख लगा अपनी बाहों में 
मन चाहे उड़ जाऊं मैं 
सहज चुनूं अपनी मंजिल 
झूलों पर पेंगबाधाओं मैं |
------------
मुझे याद है पिकनिक पर जाने का वह दिन 
जल प्रपात निहारने का वह दिन 
आसमान में झिलमिल करते तारे 
हमें उस ओर खींच ले गए
रात में ठहरने की बजह बन गए 
जाने कब रात हो गयी ----
मन जब मादक क्षणों में खो जाता है तभी दुःख सुख की लालसा तीव्र हो उठती है फिर निराशा का कुहासा ढेर लेता है आँखें छलक उठाती हैं जिन्हेंप्र्यास करने पर भी छिपाया नहीं जा सकता क्यूं कि आंसू भी तो किसी की धरोहर होते  हैं -
मन बावरा खोज रहा ,घनी छाँव बरगद की 
चाहत है उसमें, बेपनाह मोहब्बत की |

मेरे समीप आजाओ 
मुझे समझाने का यत्न करो 
मेरी भावनाओं से खेलते हो 
बिना बात नाराज होते हो |
कवयित्री आशा लता की ये  काव्य पंक्तियाँ  गागर में सागर हैं| अंतर मन के तारों को स्पर्श कर लेती हैं ऐसी पंक्तियाँ |वही पीड़ा समष्टिगत पीड़ा की और उन्मुख हो जाती है |मन उन्हें एक सत्य मार्ग का दिगादर्शन कराना चाहता है |वे मनुष्य के जीवन की  मान्यताएं सिद्धांत सम्वेदना सब को भूल कर बस अहंकार को बनाए रखना चाहते  है उनमें संवेदना जगाना चाहते हैं -
आस्था के भंवर में फंस कर
हर इंसान घूमाता है 
धूमता ही रह जाता है 
निकलना भी चाहे अगर 
नहीं  मिलाती कोई डगर 
वह बस घूमता है 
घूमता ही जाता है |
होता नहीं आसान निकलना
आस्था के भंवर जाल से 
उलझ  कर रह जाता है 
आस्थाके भंवर जाल में |
जीवन के कटु यथार्थ ,विकृतियाँ ,भयावह्ताएं ,सहन नहीं होतीं |बर्बरता ,अन्याय ,उत्पीडन ,मर्दन ,आह कहाँ ले जा रहा है हमारी संस्कृति को |अधर्म ,अनाचार को देख कर कवयित्री का मन आहात हो उठता है -
  कानूनन अधिकार मिला 
अपने विचार व्यक्त करने का 
कलम उठाई लिखना चाहा 
कारागार नजर आया 
अब सोच रहा है
 यह है कैसी स्वतंत्रता ?
अधिकार  तो मिलते नहीं 
कर्तव्य की है अपेक्षा |
जीवन की विषमताओं ,विद्रूपताओं  को दूर करने की लालसा मन में लिए हुए एक सुन्दर जगत की संरचना करने का उद्देश्य आशा जी का है तभी उन्हें उन मूल्यों की तलाश है जिन्होंने हमारी संस्कृति का सुन्दर  इतिहास गधा था |वही स्वर्णिम संस्कृति जिसमें  सार्वजनिक कल्याण की भावना थी |जिसमें अपने लिए ना जी कर  परमार्थ कल्याण के लिए जीवन समर्पित करने का भाव था |महानगरीय संस्कृति की झिलमिलाहट 
कृत्रिमता से दूर एक ऐसे घर की स्मृति मन को झझकोर जाती है जहां निश्छल स्नेह था हरेक का सुख दुःख 
अपना लगता था -
फैली उदासी आसपास
झरते आंसू अविराम 
अफसोस है कुछ खोने का 
अनचाहा धटित होने का |
कवि  कर्म है समष्टि के लिए जीना और यही तथ्य कवयित्री आशा सक्सेना जी की रचनाओं में उभर कर आया है |  एक ओर जीवन  के यथार्थ चित्र, बिखराव ,भटकाव जहां हम एक दूसरे से अलग होते जा रहे  हैं तो दूसरी ओर वार त्यौहार |कहाँ गए वे पर्व -त्यौहार जहां की इन्द्रधनुषी रंग बिखेर कर उनके आनंद सुंदरता में खो जाते थेभेद भाव अलगाव सब भूल जाते थे |एकता का सन्देश देते थे |आज भी मन चाहता है -
रंग रसिया चल खेलें फाग 
होली  का  जमालें रंग 
लठ्ठ  मार होली खेलें 
हो सके तो खुद को बचाले 
मुखड़े पर जब लगा गुलाल 
वह एक शब्द ना बोली 
अनुराग भरा गुलाल लगा 
उसे अपने गले लगाया 
दूर हुए गीले शिकवे 
वह प्रेम रंग में डूबी 
अपने प्रियतम के संग 
आज खेल रही होली |
        इसी प्रकार दीपावली पर भी उनहोंने लिखा है -
टिमटिमाते तारे गगन में 
अंधेरी रात अमावस की 
दीपावली आई तम हरने 
लाई  सौगात खुशियों की ||
कवयित्री श्री मती आशा लता सक्सेना  के इस काव्य संग्रह 'अंतःप्रवाह 'में जीवन की बहुरंगी  भावनाएं बिखरी  हुई हैं ,कहीं प्रणय की अभिलाषा तड़पन बेकली छटपटाहट है ,तो कहीं प्रकृति-सुंदरता की आभा |कहीं कुहासा निराशा तो कहीं हंसते मुस्कुराते फूल धरती का श्रृंगार करते हैं ,तो कहीं नारी की सवला बनने की आकांक्षा |जीवन की वास्तविकताओं को सहज रूप से अवगत कराता ,मानव को उसके उत्तरदायित्व  का आभास कराता हुआ ,श्रीमती  सक्सेना जी का यह काव्य संकलन दीप स्तम्भ की भाति जन मानस को आलौकित कर सकेगा |यह मेरा विश्वास है |मैं उन्हें इस सुन्दर कृति के लिए साधुवाद देता हूँ |
यह  जिंदगी की शाम अजब सा सोच है 
कभी है होश तो कभी खामोश है |

लेखक  :-
डा.राम सिंह यादव 
(जादौन)
१४ उर्दू पुरा उज्जैन (म.प्र.)
फोन :-ओ७३४-२५७४८२५ 
पत्रकार  एवं सम्पादकीय सलाहकार -ऋषि मुनि
अध्यक्ष मध्यप्रदेश जन्रालिस्ट एसोशियेशन






Sunday, September 22, 2013

"पुस्तक समीक्षा प्रारब्ध" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) अभिव्यक्तियों का उपवन है "प्रारब्ध" -0-0-0- कुछ समय पूर्व मुझे श्रीमती आशा लता सक्सेना के काव्यसंकलन “प्रारब्ध” की प्रति डाक से मिली थी। आज इसको बाँचने का समय मिला तो “प्रारब्ध” काव्यसंग्रह के बारे में कुछ शब्द लिखने का प्रयास मैंने किया है। श्रीमती आशा लता सक्सेना जी से कभी मेरा साक्षात्कार तो नहीं हुआ लेकिन पुस्तकों के माध्यम से उनकी हिन्दी साहित्य के प्रति गहरी लगन देख कर मेरा मन गदगद हो उठा। आज साहित्य जगत में कम ही लोग ऐसे हैं जिन्होंने अपनी लेखनी को पुस्तक का रूप दिया है। इस कृति के बारे में शासकीय संस्कृत महाविद्यालय की हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. रंजना सक्सेना लिखती हैं - “श्रीमती आशा सक्सेना का काव्य संकलन ‘प्रारब्ध’ सुखात्मक और दुखात्मक अनुभूति से उत्पन्न काव्य है। पहले ‘अनकहा सच’ फिर ‘अन्तःप्रवाह’ और अब ‘प्रारब्ध’... ऐसा प्रतीत होता है मानो कवयित्री ने उस सब सच को कह डाला, जो चाह कर भी पहले कभी कह न पायी हों और अब कहने लगी तो वह प्रवाह अन्तःकरण से निरन्तर बह निकला। फिर अपने भाग्य पर कुछ क्षण के लिए ठिठक कर रह गयी और अब...लेखनी को एक हिम्मत-एक आत्मविश्वास के साथ अपना लक्ष्य मिल गया है जो निरन्तर ह्रदय से अद्भुत विचारों और भावनाओं को गति देता रहेगा।" डॉ.शशि प्रभा ब्यौहार, प्राचार्य-शासकीय संस्कृत महाविद्यालय, इन्दौर ने अपने शुभाशीष देते हुए पुस्तक के बारे में लिखा है- "मैं हूँ एक चित्रकार रंगों से चित्र सजाता हूँ। हर दिन कुछ नया करता हूँ आयाम सृजन का बढ़ता है। आशा लता सक्सेना का लेखकीय सरोकार सृजन रंगों से सराबोर जीवन यथार्थ की इसी पहचान से जुड़ा है..."प्रारब्ध" काव्य संग्रह की रचनाएँ केवल गृह, एकान्त, स्त्रीजीवन के ब्योरे मात्र नहीं हैं वरन् वे सच्चाइयाँ हैं जिन्हें बार-बार नकारा जाता है।... संग्रह का मूल स्वर आस्था, जिजीविषा है जीवन के पक्षधर इन रचनाओं में प्रत्येक से जुड़ने का सार्थक भाव है।...” श्रीमती आशा लता सक्सेना ने अपने निवेदन में भी यह स्पष्ट किया है- “मैं एक संवेदवशील भावुक महिला हूँ। आस-पास की छोटी-छोटी घटनाएं भी मुझे प्रभावित करती हैं। मन में उमड़ते विचारों और अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने के लिए कविता लेखन को माध्यम बनाया है। अब तक लगभग 630 कविताएँ लिखी हैं। सरल और बोधगम्य भाषा में अपने विचार लिपिबद्ध किये हैं। ....मुझेघर से जो सहयोग और प्रोत्साहन मिला है वह अतुल्य है। उनके सहयोग के कारण ही मैं कुछ कर पायी हूँ। ...." "प्रारब्ध" में अपनी वेदना का स्वर मुखरित करते हुए कवयित्री कहती है- “मैं नहीं जानती क्यों तुम्हें समझ नहीं पाती तुम क्या हो क्या सोचते हो क्या प्रतिक्रिया करते हो..." कवयित्री आगे कहती है- “महकता गुलाब और गुलाबी रंग सबको अच्छा लगता है और सुगन्ध उसकी साँसों में भरती जाती है ऐ गुलाब तुम कमल से ना हो जाना जो कीचड़ में खिलता है पर उससे लिप्त नहीं होता..." कवयित्री के इस काव्य में कुछ कालजयी कविताओं का भी समावेश है जो किसी भी परिवेश और काल में सटीक प्रतीत होते हैं- “उड़ चला पंछी कटी पतंग सा, समस्त बन्धनों से हो मुक्त उस अनन्त आकाश में छोड़ा सब कुछ यहीं यूँ ही इस लोक में बन्द मुट्ठी लेकर आया था..." कवयित्री अपनी एक और कविता में कहती हैं- “दीपक ने पूछा पतंगे से मुझमें ऐसा क्या देखा तुमने जो मुझ पर मरते मिटते हो जाने कहाँ छिपे रहते हो पर पाकर सान्निध्य मेरा तुम आत्म हत्या क्यों करते हो..." श्रीमती आशा लता सक्सेना ने इस काव्य संकलन में कुछ क्षणिकाओं को भी समाहित किया है- “ज़ज़्बा प्रेम का जुनून उसे पाने का कह जाता बहुत कुछ उसके होने का..." विश्वास के प्रति अपनी वेदना प्रकट करते हुए कवयित्री कहती है- “ऐ विश्वास जरा ठहरो मुझसे मत नाता तोड़ो जीवन तुम पर टिका है केवल तुम्हीं से जुड़ा है यदि तुम ही मुझे छोड़ जाओगे अधर में मुझको लटका पाओगे..." “प्रारब्ध” की शीर्षक रचना के बारे में कवयित्री आशा लता सक्सेना लिखतीं है- “जगत एक मैदान खेल का हार जीत होती रहती जीतते-जीतते कभी पराजय का मुँह देखते विपरीत स्थिति में कभी होते विजय का जश्न मनाते राजा को रंक होते देखा रंक कभी राजा होता...!" समीक्षा की दृष्टि से मैं कृति के बारे में इतना जरूर कहना चाहूँगा कि इस काव्य संकलन में मानवता, प्रेम, सम्वेदना जिज्ञासा मणिकांचन संगम है। कृति पठनीय ही नही अपितु संग्रहणीय भी है और कृति में अतुकान्त काव्य का नैसर्गिक सौन्दर्य निहित है। जो पाठकों के हृदय पर सीधा असर करता है। श्रीमती आशा लता सक्सेना द्वारा रचित इस की प्रकाशक स्वयं श्रीमती आशा लता सक्सेना ही है। हार्डबाइंडिंग वाली इस कृति में 192 पृष्ठ हैं और इसका मूल्य मात्र 200/- रुपये है। सहजपठनीय फॉंण्ट के साथ रचनाएँ पाठकों के मन पर सीधा असर करती हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि “प्रारब्ध” काव्यसंग्रह सभी वर्ग के पाठकों में चेतना जगाने में सक्षम है। इसके साथ ही मुझे आशा है कि “प्रारब्ध” काव्य संग्रह समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध होगा। “प्रारब्ध” श्रीमती आशा लता सक्सेना के पते सी-47, एल.आई.जी, ऋषिनगर, उज्जैन-456 010 से प्राप्त की जा सकती है। कवयित्री से दूरभाष-(0734)2521377 से भी सीधा सम्पर्क किया जा सकता है। शुभकामनाओं के साथ! समीक्षक (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) कवि एवं साहित्यकार टनकपुर-रोड, खटीमा जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262 308 E-Mail . roopchandrashastri@gmail.com Website. http://uchcharan.blogspot.com/ फोन-(05943) 250129







"पुस्तक समीक्षा प्रारब्ध" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अभिव्यक्तियों का उपवन है "प्रारब्ध"
-0-0-0-
     कुछ समय पूर्व मुझे श्रीमती आशा लता सक्सेना के काव्यसंकलन प्रारब्ध की प्रति डाक से मिली थी। आज इसको बाँचने का समय मिला तो प्रारब्ध काव्यसंग्रह के बारे में कुछ शब्द लिखने का प्रयास मैंने किया है।
     श्रीमती आशा लता सक्सेना जी से कभी मेरा साक्षात्कार तो नहीं हुआ लेकिन पुस्तकों के माध्यम से उनकी हिन्दी साहित्य के प्रति गहरी लगन देख कर मेरा मन गदगद हो उठा। आज साहित्य जगत में कम ही लोग ऐसे हैं जिन्होंने अपनी लेखनी को पुस्तक का रूप दिया है।    
     इस कृति के बारे में शासकीय संस्कृत महाविद्यालय की हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. रंजना सक्सेना लिखती हैं -
     श्रीमती आशा सक्सेना का काव्य संकलन प्रारब्ध सुखात्मक और दुखात्मक अनुभूति से उत्पन्न काव्य है। पहले अनकहा सचफिर अन्तःप्रवाह और अब प्रारब्ध’... ऐसा प्रतीत होता है मानो कवयित्री ने उस सब सच को कह डाला, जो चाह कर भी पहले कभी कह न पायी हों और अब कहने लगी तो वह प्रवाह अन्तःकरण से निरन्तर बह निकला। फिर अपने भाग्य पर कुछ क्षण के लिए ठिठक कर रह गयी और अब...लेखनी को एक हिम्मत-एक आत्मविश्वास के साथ अपना लक्ष्य मिल गया है जो निरन्तर ह्रदय से अद्भुत विचारों और भावनाओं को गति देता रहेगा।"
    डॉ.शशि प्रभा ब्यौहार, प्राचार्य-शासकीय संस्कृत महाविद्यालय, इन्दौर ने अपने शुभाशीष देते हुए पुस्तक के बारे में लिखा है- 
    "मैं हूँ एक चित्रकार रंगों से चित्र सजाता हूँ। 
हर दिन कुछ नया करता हूँ आयाम सृजन का बढ़ता है।
      आशा लता सक्सेना का लेखकीय सरोकार सृजन रंगों से सराबोर जीवन यथार्थ की इसी पहचान से जुड़ा है..."प्रारब्ध" काव्य संग्रह की रचनाएँ केवल गृह, एकान्त, स्त्रीजीवन के ब्योरे मात्र नहीं हैं वरन् वे सच्चाइयाँ हैं जिन्हें बार-बार नकारा जाता है।... संग्रह का मूल स्वर आस्था, जिजीविषा है जीवन के पक्षधर इन रचनाओं में प्रत्येक से जुड़ने का सार्थक भाव है।...
     श्रीमती आशा लता सक्सेना ने अपने निवेदन में भी यह स्पष्ट किया है- 
    मैं एक संवेदवशील भावुक महिला हूँ। आस-पास की छोटी-छोटी घटनाएं भी मुझे प्रभावित करती हैं। मन में उमड़ते विचारों और अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने के लिए कविता लेखन को माध्यम बनाया है।
अब तक लगभग 630 कविताएँ लिखी हैं। सरल और बोधगम्य भाषा में अपने विचार लिपिबद्ध किये हैं। ....मुझेघर से जो सहयोग और प्रोत्साहन मिला है वह अतुल्य है। उनके सहयोग के कारण ही मैं कुछ कर पायी हूँ। ...."
   "प्रारब्ध" में अपनी वेदना का स्वर मुखरित करते हुए कवयित्री कहती है-
मैं नहीं जानती
क्यों तुम्हें समझ नहीं पाती
तुम क्या हो क्या सोचते हो
क्या प्रतिक्रिया करते हो..."
      कवयित्री आगे कहती है-
महकता गुलाब और गुलाबी रंग
सबको अच्छा लगता है
और सुगन्ध
उसकी साँसों में भरती जाती है
ऐ गुलाब तुम
कमल से ना हो जाना
जो कीचड़ में खिलता है
पर उससे लिप्त नहीं होता..."
     कवयित्री के इस काव्य में कुछ कालजयी कविताओं का भी समावेश है जो किसी भी परिवेश और काल में सटीक प्रतीत होते हैं-
उड़ चला पंछी
कटी पतंग सा,
समस्त बन्धनों से हो मुक्त
उस अनन्त आकाश में
छोड़ा सब कुछ यहीं
यूँ ही इस लोक में
बन्द मुट्ठी लेकर आया था..."
    कवयित्री अपनी एक और कविता में कहती हैं-
दीपक ने पूछा पतंगे से
मुझमें ऐसा क्या देखा तुमने
जो मुझ पर मरते मिटते हो
जाने कहाँ छिपे रहते हो
पर पाकर सान्निध्य मेरा
तुम आत्म हत्या क्यों करते हो..."
     श्रीमती आशा लता सक्सेना ने इस काव्य संकलन में कुछ क्षणिकाओं को भी समाहित किया है-
ज़ज़्बा प्रेम का
जुनून उसे पाने का
कह जाता बहुत कुछ
उसके होने का..."
    विश्वास के प्रति अपनी वेदना प्रकट करते हुए कवयित्री कहती है-
ऐ विश्वास जरा ठहरो
मुझसे मत नाता तोड़ो
जीवन तुम पर टिका है
केवल तुम्हीं से जुड़ा है
यदि तुम ही मुझे छोड़ जाओगे
अधर में मुझको लटका पाओगे..."
       “प्रारब्ध” की शीर्षक रचना के बारे में कवयित्री आशा लता सक्सेना लिखतीं है-
“जगत एक मैदान खेल का
हार जीत होती रहती
जीतते-जीतते कभी
पराजय का मुँह देखते
विपरीत स्थिति में कभी होते
विजय का जश्न मनाते
राजा को रंक होते देखा
रंक कभी राजा होता...!"
      समीक्षा की दृष्टि से मैं कृति के बारे में इतना जरूर कहना चाहूँगा कि इस काव्य संकलन में मानवता, प्रेम, सम्वेदना जिज्ञासा मणिकांचन संगम है। कृति पठनीय ही नही अपितु संग्रहणीय भी है और कृति में अतुकान्त काव्य का नैसर्गिक सौन्दर्य निहित है। जो पाठकों के हृदय पर सीधा असर करता है।
      श्रीमती आशा लता सक्सेना द्वारा रचित इस की प्रकाशक स्वयं श्रीमती आशा लता सक्सेना ही है। हार्डबाइंडिंग वाली इस कृति में 192 पृष्ठ हैं और इसका मूल्य मात्र 200/- रुपये है। सहजपठनीय फॉंण्ट के साथ रचनाएँ पाठकों के मन पर सीधा असर करती हैं।
       मुझे पूरा विश्वास है कि प्रारब्धकाव्यसंग्रह सभी वर्ग के पाठकों में चेतना जगाने में सक्षम है। इसके साथ ही मुझे आशा है कि प्रारब्धकाव्य संग्रह समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध होगा।
      प्रारब्धश्रीमती आशा लता सक्सेना के पते सी-47, एल.आई.जी, ऋषिनगर, उज्जैन-456 010 से प्राप्त की जा सकती है। कवयित्री से दूरभाष-(0734)2521377 से भी सीधा सम्पर्क किया जा सकता है।इस पुस्तक का isbn ९७८-९३-५१३७ -४१५-२ है |
शुभकामनाओं के साथ!
समीक्षक
 (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक’)
कवि एवं साहित्यकार 
टनकपुर-रोडखटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262 308
E-Mail .  roopchandrashastri@gmail.com
फोन-(05943) 250129

Saturday, September 21, 2013

श्रीमती आशा लता सक्सेना जी 

आप सभी ब्लॉगर साथियों को मेरा सादर नमस्कार काफी दिनों से व्यस्त होने के कारण ब्लॉगजगत को समय नहीं दे पा रहा हूँ  पर अब आप सभी के समक्ष पुन: उपस्थित हूँ ....!!
 
अभी कुछ दिनों पहले श्रीमती आशालता सक्सेना जी की पुस्तक अनकहा सच ( काव्य संकलन ) पढने को मिला जो  बहुत ही पसंद आया !

जो उन्होंने समर्पण किया है अपने अपनी माता सुप्रसिद्ध कवियित्री स्व. डॉ. (श्रीमती ) ज्ञानवती सक्सेना जी को
 
आशा जी जिन्हें आप सभी आकांशा ब्लॉग में पढ़ते हो आशा जी जिन्होंने हर विषय पर कवितायेँ लिखी है पर ज्यादा तर प्रकृति पर उनकी कविताये मन को बहुत प्रभावित करती हैं |

जीवन में हर व्यक्ति सपने अवश्य देखता है, पर कुछ ही लोगो के सपने साकार होते है जिसे आशा लता जी ने अपने रचना कर्म के स्वप्न को इस आयु में साकार किया है ।
श्रीमती आशा लता सक्सेना उन्ही में से एक है जिन्हें मैं ब्लॉगजगत में माँ का दर्जा देता हूँ !

डॉ. शिव कुमार चौरसिया जी ने उनके बारे में लिखा है :-
 श्रीमती आशा लता सक्सेना जी अपने जीवन में शासकीय सेवा ,घर गृहस्थी ,बेटे बेटियों के पालन पोषण शिक्षा दीक्षा एवं वैवाहिक जिमेदारियां को पूर्ण करते हुए अपने जीवन के तीसरे सोपान में  साहित्य सेवा में प्रवृत हुई है ।
जिस आयु में सामान्य महिलाएं अक्सर देहिक कष्टों का बखान करती है और दुखी-दुखी रहती है उस उम्र आशा जी निरंतर लिखते पढ़ते हुए कविता लेखन कर रही है ......यह एक बड़ी बात है !


............................आशा जी की कविताओ में एक अथक उर्जा ,चिर नूतन उमंग ,सुतः और सकारात्मक सोच परिलक्षित होती है उनका जीवन दर्शन दिखाई देता है जिन्हें आशा जी ने अपने मनके भावो को बड़ी सहजता से अभिव्यक्त किया है !
आशा जी ने अभी तक करीब  पांच सौ रचनाये लिखी है और उन्ही में से सत्तावन रचनाये इस संकलन में समाहित है ।
आशा जी के शब्दों में उनके विचार .......................

मैं तो बस लिख रही हूँ और क्यों लिख रही हूँ , यह नहीं जानती । मेरे मन में तरह तरह के विचार उठते है और इन विचारो के साथ जीवन के कड़वे मीठे अनुभवों का सिलसिला है खुलता जाता है । अनुभूतिय शब्दों का लिबास पहन कर अभिव्यक्त होने लगती है और मैं तो बस उन्हें आकर देती जाती हूँ । यह क्रम पिछले चार-पांच सालो से सतत चल रहा है !
मैं हिंदी साहित्य की विद्यार्थी भी नहीं रही और न ही मैंने काव्य शास्त्र पढ़ा ।इसीलिए साहित्य सृजन  में मेरा परिचय नहीं है, पर मैं बहुत भाग्य शाली हूँ , की मुझे ममतामयी श्रेष्ठ कवियित्री माता से संस्कार मिले है ! यह उनकी संस्कारो का ही फल है विवाह के बाद घर गृहस्थी और शिक्षा सेवा में व्यस्त रही और सेवानिवृति के बाद अध्यन व लेखन से जुडी हूँ  जिसमे मुझे मेरी छोटो बहन कवियित्री श्री मति साधना वैद का भरपूर प्रोत्साहन प्राप्त हुआ है ........!
आशा जी ने अपना अनकहा सच कुछ इस प्रकार व्यक्त किया है -

दो बोल प्यार के बोले होते /पाते निकट अपने
नए सपने नयनों में पलते/ना रहा होता कुछ भी अनकहा |
यदि अपने मन को टटोला होता चाहत की तपिश कभी समाप्त नहीं होती -
अपनी चाहत को तुम कैसे झुटला पाओगे
मेरी चाहत की ऊंचाई ना छू पाओगे कभी 
खुद ही झुलसते जाओगे उस आग की तपिश में |
उम्र  के आखिती पड़ाव पर यदि अपनों का साथ ना हो तो मन दुखी हो जाता है | मन में कसक गहरी होती है-
होती  है कसक
जब कोई साथ नहीं देता 
उम्र के इस मोड़ पर
 नहीं होता चलना सरल 
लंबी कतार उलझनों की 
पार पाना नहीं सहज |
अपने अतीत को कोई भला भुला पाया है अतीत पर यह देखिये -
जाने कहाँ खो गया 
दूर हो गया बहुत 
जब तक लौट कर आएगा 
बहुत देर होजाएगी 
ना पहचान पाएगा मुझे कैसे |
'प्रतिमा सौंदर्य की ' कविता महाप्राण सूर्य कान्त त्रिपाठी की कविता "वह तोडती पत्थर "की याद ताजा कर देती है |  एक मजदूर स्त्री के प्रति सौन्दर्यानुभूति भाव को बखूबी प्रकट किया है -
प्रातः से संध्या तक वह तोड़ती पत्थर 
भरी धूप में भी नहीं रुकती
गति उसके हाथों की |
जीवन की क्षण भंगुरता उन्हें "सूखी डाली "में दिखाई देती है -
एक दिन काटी जाएगी 
उसकी जीवन लीला 
हो जाएगी समाप्त
सोचती हूँ और कहानी क्या होगी 
इस क्षणभंगुर जीवन की  ?
मैं कुछ लिखना चाहती हूँ कविता अनकहा सच की आत्मा है | कहाजाए तो कुछ अतिशयोक्ति नहीं होगी -
अब मैं  लिखना चाहती हूँ 
आने वाली पीढ़ी के लिए 
मैं क्रान्तिकारी  तो नहीं
 पर सम्यक क्रान्ति चाहती हूँ
हूँ एक बुद्धिजीवी 
चाहती हूँ प्रगति देश की 
मृत्यु एक शाश्वत सत्य है -जो जन्मा है मृत्यु को अवश्य प्राप्त होता है -
होती अजर अमर आत्मा 
है स्वतंत्र जीवन उसका 
नष्ट कभी नहीं होता
शरीर नश्वर है 
जन्म है प्रारम्भ 
मृत्यु है अंत उसका |
"कुछ ना कुछ सीख देती है"रचना जीवन में उत्साह -ऊर्जा का संचार करने वाली आशा वादी रचना है -
सूरज  की प्रथम किरण 
भरती जीवन ऊर्जा से
कल कल बहता जल
सिखाता सतत आगे बढ़ना |
प्रत्येक  व्यक्ति का जीवन एक डायरी की तरह है  जिसमें अंकित होती हैं सुख -दुःख ,यादों की खट्टी मीठी बातें 
डायरी का हर पन्ना कोई मिटा नहीं सकता क्यों कि -
पेन्सिल से जो भी लिखा था 
रबर से मिट भी गया 
पर मन के पन्नों पर जो अंकित
उसे मिटाऊँ कैसे ?
अब आखिर में अनकहा सच ( काव्य संकलन ) की पहली रचना आपको पढवाते है !

अनकहा सच  
 कुछ हमने कहा
 कुछ तुमने सुना 
बहुत कुछ छूट गया है अनकहा 
न संबोधन न कोई रिश्ता 
न टोल सके भावो को 
छुप-छुप कर बात कही मन की 
उसे न सजा सके शब्दों में  
संवाद रहित अनजाना रिश्ता  
न जता पाए 
न लिया , दिया कभी कुछ भी 
यह कमी सदा ही रही खलती 
अलग हट कर सोचा होता 
अंतर टटोला होता 
दो बोल प्यार के बोले होते 
पाते निकट अपने नए सपने नैनों में पलते 
.................. न रहा होता कुछ भी अनकहा  ! !

 मेरी और से श्रीमति आशा सक्सेना जी को काव्य संकलन के लिए हार्दिक बधाई व ढेरो 
शुभकामनाये ........!


@  संजय भास्कर



67 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…
आशा जी रचनाएं सवेंदनाओं से भरपुर एवं जीवन के रंगों को प्रदर्शित करती है। इन्हे ढेर सारी शुभकामनाए।

संजय, बहुत बढिया समीक्षा की है तुमने ।
Ayodhya Prasad ने कहा…
बहुत बढ़िया लगा आशा जी के विचारों को पढकर....बहुत बढ़िया प्रस्तुति
-----------------------------
आत्मविश्वास की महत्ता ..
प्रवीण पाण्डेय ने कहा…
आशा जी का लिखा नियमित पढ़ते हैं, इतनी सुन्दर कविता पढ़वाने का आभार..
Alok Mohan ने कहा…
आशा जी का लिखा नियमित पढ़ते हैं, इतनी सुन्दर कविता पढ़वाने का आभार
kshama ने कहा…
Aasha ji ke aadar bahut badh gaya! Aapka aalekh bahuthee badhiya hai!
Sadhana Vaid ने कहा…
मेरी दीदी की पुस्तक 'अनकहा सच' की इतनी सुन्दर समीक्षा प्रस्तुत करने के लिये बहुत सारी बधाइयाँ संजय जी ! विमोचन समारोह भी बहुत शानदार था ! इस सुन्दर प्रस्तुति के लिये आपका हार्दिक धन्यवाद एवं आभार !
Chirag Joshi ने कहा…
bahut hi acchi samiksha kari aapane, dhanaywaad.
संजय कुमार चौरसिया ने कहा…
बहुत बढ़िया लगा आशा जी के विचारों को पढकर....बहुत बढ़िया प्रस्तुति
मनोज कुमार ने कहा…
अनकहा सच से परिचय कराने के लिए आभार।
संतोष त्रिवेदी ने कहा…
...लिखते रहिये ऐसे ही पूर्ण समीक्षक बन जायेंगे !

'अनकहा सच' के लिए शुभकामनाएँ !
dheerendra ने कहा…
आशा जी की पुस्तक "अनकहा सच" की बहुत सुन्दर समीक्षा की आपने ,....बधाई.
वैसे मै आशा जी ब्लॉग का नियमित पाठक हूँ......

MY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...
दिगम्बर नासवा ने कहा…
सुन्दर समीक्षा है संजय जी आपक ...
आशा जी कों बहुत बहुत बधाई इस प्रकाशान पे ...
Suresh kumar ने कहा…
Aasha ji ko saadar parnaam.........
parichaya karwane ke liye dhanyawad sanjay bhai.........
Asha Saxena ने कहा…
प्रिय संजय ,आज तुम्हारी लिखी समीक्षा (अनकहा सच पर )पढ़ी |समीक्षा में
तुम्हारे द्वारा लिखित शब्दों का चयन एवं कविताओं में छिपे भाव बड़े ही
सौन्दर्यात्मक
ढंग से उजागर किये हैं |समीक्षा कई व्यक्तियों द्वारा की गयी परन्तु
कविताओं का गहन अध्यन करने के पश्च्यात तुमने जो कुछ कहा है वह अपने आप
में ही अनकहा सच है |तुम्हारी साहित्यिक प्रतिभा जान कर मैं गौरान्वित
हुई हूँ |
मुझे प्रोत्साहित करने के लिए एवं मेरी लेखनी को और आगे बढाने के लिए
तुम्हारी शुभ कामनाएं मुझे प्रेरित करती रहेंगी |तुम्हें धन्यवाद और
आशीर्वाद |
आशा
sangita ने कहा…
shandar samiksha ke liye aabhar maene bhi padhi hae ankhasach.mera blog aapki pratiksha kar rha hae .
RAHUL- DIL SE........ ने कहा…
आशा सक्सेना जी, सादर प्रणाम, आपकी कवितायेँ जिन्दगी का अनकहा सच बयां करती है. मुझे याद है कि एक बार आप मेरे ब्लॉग पर आयीं थी. आपने एक खुबसूरत कमेंट्स भी दिया था. मुझे उम्मीद है आपका स्नेह हमेशा मिलता रहेगा....और हाँ.. संजय भाई का भी हार्दिक आभार..
Vibha Rani Shrivastava ने कहा…
धन्यवाद संजय .... !!
*आशा जी* का लिखा *लेख्य* पढ़ने की बहुत दिनों से ईच्छा थी ,आज कुछ पूरी हुई ... शुक्रिया और आभार .... !!
संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…
सुंदर समीक्षा .... आपको और आशा जी को बधाई
वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…
बहुत बढ़िया प्रस्तुति.आभार.
रविकर फैजाबादी ने कहा…
सुन्दर रचना ।
सुंदर समीक्षा ||
आभार ।।
Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" ने कहा…
sanjay jee sabse pahle to aapko aapke is shandaar pryas ke liye hardik dhnywad dena chahta hoon..asha jee jaisi rachnakaar kee lagbhag sabhi rachnayein main padhta hoon...lekin aaj bidhiwat unke jeewan ko samajhne ka mauka mila..bahut acchi sammeksha..sandaar pryas ke liye punah badhayee
Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…
आदरणीय आशा जी की पुस्तक 'अनकहा सच' की इतनी सुन्दर समीक्षा प्रस्तुत करने के लिये..आभार
Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…
प्रिय संजयजी,
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
मातृदिवस के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
सवाई
Maheshwari kaneri ने कहा…
आशा जी की पुस्तक "अनकहा सच" की बहुत सुन्दर समीक्षा की है संजय आपने ,....बधाई.
Smart Indian - स्मार्ट इंडियन ने कहा…
समीक्षा अच्छी लगी लेकिन कुछ छोटी रही। आशा जी को बधाई और आपका धन्यवाद!
Priyankaabhilaashi ने कहा…
हार्दिक शुभकामनाएँ इस सुंदर आलेख के लिये..!!
expression ने कहा…
अच्छी समीक्षा संजय जी...
आशा जी को नियमित पढ़ती हूँ...

बहुत शुक्रिया.
अनंत शुभकामनाएँ.
रचना दीक्षित ने कहा…
आशा जी के लेखन से हम सभी परिचित हैं परन्तु उनके काव्य संकलन को पढ़ने का सौभाग्य अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है. तुम्हारे द्वारा पुस्तक सम्मेक्षा पढकर उसे पढ़ने की उत्सुकता बहुत बढ़ गयी. अच्छी समीक्षा.

शुभकामनायें.
Reena Maurya ने कहा…
आशा जी की रचनाये मै पढ़ती हूँ ..बहुत ही बेहतरीन लिखती है वो......और अपने बहुत ही उत्कृष्ट रूप से समीक्षा की है....
बधाई :-)
Reena Maurya ने कहा…
आशा जी को ढेर सारी शुभकामनाये एवं बधाई
उनकी लेखनी अमर रहे :-)
Kailash Sharma ने कहा…
आशा जी की लेखनी से पहले ही परिचय है...बहुत सुन्दर पुस्तक समीक्षा...आभार और शुभकामनायें !
mridula pradhan ने कहा…
itni sunder jankari mili.....badhayee apko aur ashajee ko.
Bharat Bhushan ने कहा…
आपके आलेख से एक सुंदर जानकारी मिली है. आभार.
संध्या शर्मा ने कहा…
आशाजी का लेखन हमेशा से प्रभावित करता रहा है, उन्हें ढेर सारी शुभकामनाये एवं बधाई... आपने बढिया समीक्षा की है संजय जी... आभार आपका
Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…
आदरणीया आशा जी को ढेर सारी शुभ कामनाएं और बधाई साथ ही सुन्दर समीक्षा के लिए आप को भी संजय जी ..जय श्री राधे
भ्रमर ५.
ऋता शेखर मधु ने कहा…
बहुत सुंदर समीक्षा...प्रस्तुत कविताएँ बहुत भावपूर्ण हैं
आपको और आशा जी को बधाई और शुभकामनाएँ!!!
Ramakant Singh ने कहा…
आशा जी को ढेर सारी शुभकामनाये एवं बधाई
प्रस्तुत कविताएँ बहुत भावपूर्ण
सदा ने कहा…
बहुत ही अच्‍छी समीक्षा लिखी है आपने ..बधाई सहित शुभकामनाएं ।
shalini ने कहा…
आशा जी जैसी प्रतिभाशाली शख्सियत से परिचय करवाने के लिए धन्यवाद संजय जी !
मुकेश पाण्डेय चन्दन ने कहा…
kya baat hai sanjay ji , aap to bade chhupe rustam nikle ! aapme ek achchhe samikshak ke gun bhi hai ! badhai !
डॉ॰ मोनिका शर्मा ने कहा…
बहुत बढिया समीक्षा....बधाई, शुभकामनाएं....
सतीश सक्सेना ने कहा…
यह नहीं मालूम था कि आशा जी, ज्ञानवती सक्सेना जैसी महान कवियित्री कि सुपुत्री हैं , मैं बचपन से ही उनके गीत पढता रहा हूँ और कई तो संकलन में भी लिख रखे थे !
वैसी कवियित्री अब कहाँ मिलती हैं !
आभार उनपर लिखने के लिए !
दिलबाग विर्क ने कहा…
सुंदर समीक्षा
अभिषेक प्रसाद 'अवि' ने कहा…
बहुत ही बढ़िया समीक्षा की है संजय भाई आपने... जल्द ही पुस्तक पढने की कोशिश करूँगा...
वन्दना ने कहा…
संजय, बहुत बढिया समीक्षा की है तुमने ।आशा जी को ढेर सारी शुभकामनाये एवं बधाई.
S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…
आदरणीय आशा जी के ब्लॉग में नियमित जाना होता है... उन्हें पढ़ना हमेशा सुखद होता है...

सुन्दर समीक्षा के लिए हार्दिक बधाई.
यशवन्त माथुर (Yashwant Mathur) ने कहा…
कल 18/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
दिलबाग विर्क ने कहा…
आपकी पोस्ट 17/5/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें

चर्चा - 882:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
dheerendra ने कहा…
सुन्दर समीक्षा प्रस्तुत करने के लिये बहुत२ बधाइयाँ संजय जी !

MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
MY RECENT POST,,,,फुहार....: बदनसीबी,.....
Rajesh Kumari ने कहा…
संजय भास्कर जी आपको ढेरों बधाई आशा जी की पुस्तक की इतनी सुन्दर समीक्षा करने हेतु शुभकामनाएं
Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…
aasha jee ka ankaha sach aur aapki
samiksha bahut acchi lagi.....
आशा जोगळेकर ने कहा…
आशाजी को उनके पुस्तक के प्रकाशन पर बधाई ।
आपको भी पुस्तक की सुन्दर समीक्षा के लिये ।
आशाजी कोा परिचय बहुत कुछ अपना सा लगा ।
प्रसन्न वदन चतुर्वेदी ने कहा…
सुन्दर समीक्षा...अच्‍छी प्रस्‍तुति...बहुत बहुत बधाई...
India Darpan ने कहा…
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....


इंडिया दर्पण
की ओर से आभार।
lokendra singh rajput ने कहा…
उत्तम प्रस्तुति...
Asha Saxena ने कहा…
मै आभारी हूँ आप सब प्रबुद्ध साहित्यकार,
साहित्यिक गतिबिधियों के प्रेरक एवं साहित्य प्रेमी जनों की जिनने संजय भास्कर द्वारा मेरी पुस्तक "अनकहा सच " की समीक्षा को पढ़ा और टिप्पणी कर सराहा | उन्हें इसी प्रकार के लेखन के लिए प्रोत्साहित किया |मैं आभारी हूँ संजय की जिन्होंने
सही समीक्षा की |एक बार पुनः आप सब को हार्दिक धन्यवाद |
आशा
sumeet "satya" ने कहा…
अनकहा सच से परिचय करवाने के लिए धन्यवाद.....
अच्छी समीक्षा है......
यूँ ही कराते रहिये अनछुए पहलुओं से परिचय...ताकि...कुछ भी न रह जाये अनकहा
हरकीरत ' हीर' ने कहा…
आशा जी को अनकहे सच की बहुत बहुत बधाई .....!!
राजेश उत्‍साही ने कहा…
प्रयास अच्‍छा है।
राजेश उत्‍साही ने कहा…
प्रयास अच्‍छा है।
anju(anu) choudhary ने कहा…
एक काव्य संग्रह का हाथ में आना ...और उसे पूरा पढ़ लेने के बाद उसकी समीक्षा करना ये दोनों अगल अगल बाते हैं ...आपने संग्रह पढ़ा ...और उसकी समीक्षा की ...बहुत खूब ...आशा जी के काव्य संग्रह की ..इतनी अच्छी और सार्थक समीक्षा के लिए संजय ..आपको बधाई
डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…
आशा जी को बहुत बधाई.
Mukesh Kumar Sinha ने कहा…
संजय, बहुत बढिया समीक्षा
Aruna Kapoor ने कहा…
सुंदर समीक्षा .... आपको और आशा जी को बहुत बहुत बधाई!
M VERMA ने कहा…
बहुत सुन्दर समीक्षा.. आशा जी को पढता रहता हूँ
राज चौहान ने कहा…
संजय, बहुत बढिया समीक्षा की है तुमने ।आशा जी को ढेर सारी शुभकामनाये एवं बधाई.
kase kahun?by kavita verma ने कहा…
sundar pustak ki sundar sameeksha..