उसने आज तक यही गलत फहमी पाली थी कि जो कुछ उसने सहा था उस तरह का व्यवहार वह अपने बच्चों के साथ नहीं करेगी |इसी गलत धारना में जी रही थी की किसी भी बुराई से बहुत दूर रही |कोई यश मिले ना मिले पर अंतरात्मा तो साफ है बेदाग़ है | पर बार बार विचारों में असंतुलन हुआ मन को एक बात कचोटने लगी अपने और पराए में बहुत भेद होता है स्पष्ट हो गया | लोग अपनी समस्याओं में इतने उलझे होते हैं की उन्हें दूसरों की चिंता नहीं होती |जो वे सोचते हैं वही ठीक है बाक़ी सब व्यर्थ है |उनकी समस्याएँ तो समस्या हैं दूसरों की गौण हैं | मन ने कहा अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है सम्हल जाओ |तेल देखो तेल की धार देखों फिर व्यवहार निर्धारित करो |लगने लगा है अपने और पराए में अंतर होता है |सारी दुनिया मतलब की है |बिना अहसान जताए कुछ भी हासिल नहीं होता |उसका मन फटने लगा और वह सोचती रही किउसके अच्छे वर्ताव का जो सिला उसे मिला ईश्वर किसी दुश्मन को भी न दे |लोगों के बहुत बड़े बड़े अरमान होते हैं अपने बच्चों से पर जब वे किसी के सुर में सुर मिलाकर राग अलापते है हो मन से बद्दुआ ही निकलती है दुआ नहींयह तो आगे का वक्त ही बताएगा की जो व्यवहार खुद ने किया है यदि खुद के साथ होगा तब कैसा लगेगा | आशा |
कुछ
दिन बाद मुझे एक यात्रा पर भी जाना था पर उत्साह नाम मात्र को न था बहुत
बेमन से अपना सामान ज़माना प्रारम्भ किया |सामान जमाते जमाते लगबग ११ बज गए |
थकान भी अपना सर उठा रही थी |सोचा पहले नहा कर पूजा करलूं |फिर फलाहार की व्यवस्था करू थके कदमों से स्नानागार की ओर चल दी |
नहाने के बाद कुछ अच्छा लगा पर पैर साफ न हुआ था |सोचा क्यूं न पैर भी रगड़ लूं |
न जाने कैसे पैर फिसला और गिर गई |
काफी समय बीत गया और उठना संभव न हो पाया |आवाज ने भी मेरा साथ छोड़ दिया बहुत मुश्किल से दरवाजा खटखटाया और बाहर निकालने को कह पाया |एक व्यक्ति से तो उठाया जाना संभव न था |पास के लोगों को एकत्र कर जैसे तैसे निकाला जा सका |
फ्रेक्चर के कारण पैर उठ ही नहीं रहा था |पोर्टेबल एक्सरे से पता चला की ३४ हड्डी टूटी थीं |बिना ऑपरेशन के जुड़ने की कोई संभावना न थी |
हॉस्पिटल में तावड़तोड़ भरती किया गया |ईश्वर की कृपा थी कि जनरल रिपोर्ट ठीकठाक निकली दाईबिटीज के सिवाय |दूसरे दिन ऑपरेशन के लिए जब जाने लगे सोचा जल्दी ही हो जाएगा |
थकान भी अपना सर उठा रही थी |सोचा पहले नहा कर पूजा करलूं |फिर फलाहार की व्यवस्था करू थके कदमों से स्नानागार की ओर चल दी |
नहाने के बाद कुछ अच्छा लगा पर पैर साफ न हुआ था |सोचा क्यूं न पैर भी रगड़ लूं |
न जाने कैसे पैर फिसला और गिर गई |
काफी समय बीत गया और उठना संभव न हो पाया |आवाज ने भी मेरा साथ छोड़ दिया बहुत मुश्किल से दरवाजा खटखटाया और बाहर निकालने को कह पाया |एक व्यक्ति से तो उठाया जाना संभव न था |पास के लोगों को एकत्र कर जैसे तैसे निकाला जा सका |
फ्रेक्चर के कारण पैर उठ ही नहीं रहा था |पोर्टेबल एक्सरे से पता चला की ३४ हड्डी टूटी थीं |बिना ऑपरेशन के जुड़ने की कोई संभावना न थी |
हॉस्पिटल में तावड़तोड़ भरती किया गया |ईश्वर की कृपा थी कि जनरल रिपोर्ट ठीकठाक निकली दाईबिटीज के सिवाय |दूसरे दिन ऑपरेशन के लिए जब जाने लगे सोचा जल्दी ही हो जाएगा |
पर भगवान जो सोचते हैं उसका उलटा ही करता है |हद्दी इतनी कमजोर थीं की ऑपरेशन में ही ५ घंटे लग गए |
अब बारी थी रूम में शिफ्ट करने की |रूम तो डीसेंट था पर नंबर था २०४ |शाम होते होते मिलाने वालों का तांता लगा गया |वेदना सम्वेदना में खोने लगी |लगभग ८ बजा होगा अचानक एक महानुभाव का आगमन हुआ |
पहले ही शब्द थे अरे वही कमरा वही बिस्तर |आपको देख कर मुझे मेरी माँ की याद आ गई आज तक वे बिस्तर नहीं छोड़ पाई हैं अपने अंतिम पलों की प्रतीक्षा कर रही हैं |यह कैसा इत्फाक है |अनजाने में मुझे बहुत जोर का झटका लगा |सोचा क्या मेरी भी यही नियती होगी |पर भगवान को शायद कुछ और ही मंजूर था |
मुझे १० वे दिन घर आने की अनुमति मिल गई और सकुशल घर आ गई |पर दो दिन बाद फिर भरती होना पड़ाऔर १० दिन फिर वहां की हवा खानी पडी |पर ईश्वर की कृपा से इसबार कमरा नंबर बदल गया था और मन में उपगी शंका से भी छुटकारा मिल गया था |अब कमरा नंबर २०४ मेरा पीछा नहीं कर रहा था |
आशा
अब बारी थी रूम में शिफ्ट करने की |रूम तो डीसेंट था पर नंबर था २०४ |शाम होते होते मिलाने वालों का तांता लगा गया |वेदना सम्वेदना में खोने लगी |लगभग ८ बजा होगा अचानक एक महानुभाव का आगमन हुआ |
पहले ही शब्द थे अरे वही कमरा वही बिस्तर |आपको देख कर मुझे मेरी माँ की याद आ गई आज तक वे बिस्तर नहीं छोड़ पाई हैं अपने अंतिम पलों की प्रतीक्षा कर रही हैं |यह कैसा इत्फाक है |अनजाने में मुझे बहुत जोर का झटका लगा |सोचा क्या मेरी भी यही नियती होगी |पर भगवान को शायद कुछ और ही मंजूर था |
मुझे १० वे दिन घर आने की अनुमति मिल गई और सकुशल घर आ गई |पर दो दिन बाद फिर भरती होना पड़ाऔर १० दिन फिर वहां की हवा खानी पडी |पर ईश्वर की कृपा से इसबार कमरा नंबर बदल गया था और मन में उपगी शंका से भी छुटकारा मिल गया था |अब कमरा नंबर २०४ मेरा पीछा नहीं कर रहा था |
आशा