अमृत कलश

Sunday, November 20, 2022

झरना एक चित्र कार का


 एक दिन एक चित्रकार घर में रहते रहते बहुत बोर हो रहा था |उसने सोचा क्यूँ न मैं जंगल में जाऊं और ऊपर जा कर झरने के पास बैठूं वही से इस झरने की रंगीन स्केच बनाऊँ |धीरे  से उसने अपनी  मम्मीं से पूंछा  वहां जाने के लिए |झरना घर से अधिक दूर नहीं था |मम्मीं ने हिदायतें दे कर जाने की इजाजत दे दी | उसने अपना सामान संचित कर जूते पहन कर झरने के उद्गम स्थल पर जाने की तैयारी करली और बड़े उत्साह से खाने के लिए थोड़ा नाश्ता ले लिया और प्रस्थान किया |

थोड़ी चढ़ाई के बाद कुछ समय विश्राम किया और फिर से चलने को तैयार हुआ |लगभग आधे घंटे के बाद ऊपर पहुंचा |उस समय सूर्य की रौशनी झरने में दिखाई पड़ रही थी |रश्मियाँ पानी में आपस में  खेल रहीं थीं |नजारा बहुत  सुन्दर दिख रहा था |उसने अपना केनवास स्टेंड पर लगाया और चित्र बनाया |सोचा घर  जाकर ही रंग भरूगा |सब सामान इकठ्ठा किया और नीचे चल दिया |झरना इतनी  तेजी से बह रहा था कि वहां से उठने का मन ही नहीं हो रहा था |फिर देर हो रही थी उसने  जल्दी से  कदम बढ़ाए और कुछ ही समय में घर पहुँच कर सांस ली |अब वह  रंगों से अपनी कृति को सजाने लगा |चित्र बेहद सुन्दर बना था |सब ने बहुत प्रशंसा की |

आशा सक्सेना 

Saturday, November 19, 2022

किस से शिकायत करूं

 


मुझे किसी से क्या चाहिए

शिकायत किससे करू

कोई नहीं सुनता मेरी

 हार थक कर आई हूँ

इधर उधर क्षमा मांगी |

किसी ने  सहारा न  दिया मुझे

 अब तक बेसहारा घूम रही हूँ

किसी से सहारे के लिए |

मैंने की अपेक्षा सबसे  अधिक ही

क्या यही थी भूल मेरी

यदि सहारा न दिया दूसरों ने

फिर से क्यों लौटी उन तक |

अपनी आदत न थी कभी

किसी से सहारा लेने की

पर अब समझ लिया है

 अपने आपको  सक्षम बना लेने की  |

अपनी आदतों में सुधार करना चाहा

कोशिश भी की है

 मन का भय भी

समाप्त न हो पाया आज तक |

मन को  संयत किया है

फिर भी अभी तक

 अपने ऊपर विशवास न हो पाया

अपने कदम बढ़ाने में

किसी का सहारा तो चाहिए |

Friday, November 18, 2022

बहुत दिन पहले



जब भी गाँव जाते थे अपने दो मंजिले मकान में ही ठहरते थे |बहुत पुरानी बात है हमारा मकान ऐसा था  कि जब भी ड्राइंग रूम में जाना पड़ता था बाक़ी कमरों से जीने पर से वहां पहुंचना पड़ता था| | बाबूजी रेडिओ पर कोई प्रोग्राम सुनने के लिए वहां ही जाते थे |एक दिन जब सरोजनी नाईदू पर कोई प्रोग्राम आया वे उसे सुनने के लिए उस कमरे में चले गए |भीतर के कमरे में हम दौनों भाई बहिन किसी बात पर आपस में झगड़ने लगे |यह तक भूले कि हम कहाँ थे |आपस में गुत्थमगुत्था   होने लगी  और बात इतनी बढ़ी  कि मेरे भाई ने मुझे जीने पर से धक्का दे दिया पर वह  भी न बच  पाया  उसका मेरे ऊपर गिरना हुआ |उसका  भी मेरे ऊपर से  गिरने के कारण मेरे खून निकलने लगा | सब बहुत घबराए और जल्दी से सामने के अस्पताल में  ले कर भागे |वहां टाँके लगवाए तब जान में जान आई |उस समय दोनो के एकसाथ रोने से  कोहराम मच गया था |तब बाबूजी ने कसम खाई कि जब तक वहाँ रहेंगे नीचे के मकान में ही रहेंगे  | और दूसरे दिन से मकान की खोज बहुत मुस्तैदी से होने लगी | अब तो जब भी कोई आता और मकान की बात चलती बाबूजी उन्हें नीचे के मकान में रहने की सलाह देते |कहते छोटे बच्चों के साथ ऊपर की मंजिल में नहीं रहना चाहिए |

आशा सक्सेना

Tuesday, November 1, 2022

माँऔर बच्चे का सम्बन्ध

 


जब बच्चा बहुत छोता होता  हैं माँ हर बात में रोकती टोकती है |पर धीरे धीरे कब बच्चा बड़ा  हो जाता है बच्चे को  बहुत अजीब सा लगाने लगता है |अगर उसे ऑफिस में देर हो जाए तब भी माँ उसे टोकती है इतनी देर कहाँ हो गई |समय की कीमत समझो समय पर आया जाया करो |नियमित जीवन बहुत उपयोगी होता है |सभी कार्य यदि समय से करोगे कभी समय की कमीं नहीं पड़ेगी |हम भी नौकरी करते थे पर सारे काम समय पर होते थे |बच्चा सोचता है” मैं कब बड़ा होऊंगा माँ की नज़रों में “|पर एक अदि दिन तो टोका टोकी नहीं होती पर फिर से माँ का टोकने का क्रम शुरू हो जाता है |इस आदत में बदलाव कैसे आए ?क्या मैं गलत हूँ ?मुझे सलाह चाहिए आपसे |

              आशा सक्सेना

 

Wednesday, October 19, 2022

प्यार की चर्चा |

 


प्यार की चर्चा

प्यार की चर्चा कीजिए पर समय देख कर| समय की नजाकत का बड़ा महत्त्व है |यदि समय का ध्यान न रखा तब कुछ गलत भी हो सकता है |

मानो किसी के यहाँ कोई दुर्घटना हुई है और आपस में किसी के प्रेम  प्रसंग की वहां कोई बात  कर रहे हैं तब कितना अजीब लगेगा |लोग सुनेगे और मजा भी लेंगे पर आपका मुंह पलटते ही आपकी हंसी भी उडाएंगे |क्यों कि समाज में रहकर अपनी आदतों को बदलना पड़ता है  |हमें समाज के नियमों का पालन करना होता है |तभी हम सफल नागरिक हो सकते है |

आशा सक्सेना 

प्यार की चर्चा

 

प्यार की चर्चा

प्यार की चर्चा कीजिए पर समय देख कर| समय की नजाकत का बड़ा महत्त्व है |यदि समय का ध्यान न रखा तब कुछ गलत भी हो सकता है |

मानो किसी के यहाँ कोई दुर्घटना हुई है और आपस में किसी के प्रेम  प्रसंग की वहां कोई बात  कर रहे हैं तब कितना अजीब लगेगा |लोग सुनेगे और मजा भी लेंगे पर आपका मुंह पलटते ही आपकी हंसी भी उडाएंगे |क्यों कि समाज में रहकर अपनी आदतों को बदलना पड़ता है |हमें समाज के नियमों का पालन करना होता है |तभी हम सफल नागरिक हो सकते है |

Monday, October 17, 2022

दो सहेलियां

 

दो सहेलीयां

बेला और चमेली नाम की दो बालिका थीं जो आपस में बहुत प्रेम  रखतीं थी एक दिन बेला के पापा उसके लिए एक सुन्दर सा फ्रोक लाए |वह  पहिन कर अपनी सहेली को दिखाने आई |चमेली के पापा की आर्थिक स्थिती तब अच्छी नहीं थी |उस  ड्रेस को  देख चमेली की आँखों में आंसू आ गए |

बेला ने कहा  लो तुम यह पहन लो तुम पर खूब सजेगी |चमेली ने उसे ले लिया पर जब पहना उसको शर्म  आई और बोली मेरे पापा कल ऐसी ही फ्रोक मुझे ला कर देंगे |किसी की कोई वस्तु देख कर उससे नहीं लेनी चाहिए |दुनिया मैं कितनी ही वस्तुएँ  हैं |हर व्यक्ति तो सब को खरीद नहीं सकता |पिता ने शांति से अपनी बेटी को समझाया |वह समझी और अपने पापा से किसी की कोई चीज न लेने का वायदा किया | अब उसका मन किसी चीज को देख कर नहीं ललचाता |उसे जो उसके पास है उसमें ही संतुष्ट है|

आशा सक्सेना

Tuesday, October 4, 2022

दशहरा बचपन का

 

दहन किसका होगा

क्या  दस शीश का ?

सामाजिक कुरीतियों का

जो अब तक समाप्त  न हो पाईं |

रावण दहन की रीत में

हम अपने  आप से हर वर्ष

कई वादे  करते खुद से

कुरीतियां  त्यागने  के  लिए |

पर वादा पूरा करने में सफल न हो पाते

मन में असंतोष और बढा ले  जाते

पर वादे को पूरा न कर पाते

यही कमी है खुद में तब कौन हमारा साथ देगा |

हर कोई चाहता सच्चा मित्र

जो खुद हो अपने वादे का पक्का

वख्त पर आकर खडा हो

गलत को नजरअंदाज न करे

गलती बताए |

Saturday, July 2, 2022

एक हादसा होते होते बचा

 

एक हादसा होते होते बचा-

बात बहुत  पुरानी है एक दिन रोज की तरह हम तैरने निकले |हम से ज्यादा बच्चे उत्साहित थे| वे अभी थोड़ा थोड़ा ही सीखे थे| पर उन्हें बहुत भरोसा था खुद पर |रोज की तरह हम कपड़े बदल कर तरणताल में पानी में उतरे बच्चों ने भी तैरना प्रारम्भ किया जैसे ही सात फिट पानी में क्रोस करने लगे मेरी छोटी बहन के छोटे बेटे ने हाथ पैर चलाना बंद कर दिये और मम्मी को आवाज देने लगा |वह  भी बहुत घबरा गई और उसे पकड़ने को पलटी |वह  इतना डर गया था कि उससे लिपट गया|दोनो डुबकी खाने लगे | मेरी छोटी बेटी ने कूदने के लिएबनी सीडियों के  ऊपर से यह दृश्य देखा और उनको बचाने पहुंची |वे उससे ऐसा लिपटे कि वह भी घबरा गई अब तीनों आपस में लिपटने लगे और मेरे पीछे से मेरी शर्ट पकडली |मुझे इस बात की तो खबर ही नहीं थी कि इतना बजन कैसे हो गया मेरे पीछे | मेरी तैराकी में बाधा पड़ने लगी और मैं सीधी हो गई यही अच्छा था कि सीड़ी से हाथ भर की दूरी थी |मैंने अपनी विध्यार्थी रौनक को आवाज दी कि मेरा हाथ पकड़ कर खींचे |तभी एक बंबई से आई महिला ने यह नजारा देखा|वह  बहुत अच्छी तैराक थी|उसने पानी में उतर कर सब को एक एक

पीठ पर थप्पड़ लगाया और सब को अलग अलग किया |मेरी तो उस दिन बापिस पानी में उतरने की हिम्मत ही नहीं हुई |पर बच्चों ने फिर से तैरना शुरू कर दिया |एक  हादसा होते होते टल गया |आज भी जब उस दिन की याद आती है मन भय से कांपने लगता है

आशा 

Thursday, April 28, 2022

मुमताज की तलाश

 

बात बहुत पुरानी है, पर आज भी सोचने पर हसी आ ही जाती है...

कॉलेज का वार्षिकोत्सव होने को था।श्री अवस्थी ने एक एकांकी लिखा और उसके मंचन हेतु उपयुक्त पत्रों की खोज प्रारंभ की।सभी महत्त्वपूर्ण और प्रमुख भूमिका करना चाहते थे।लड़कियों में भी चर्चा ज़ोरों पर थी।अलग अलग व्यक्तित्व वाली लड़कियों में मुमताज़ की भूमिका पाने की होड़ लगी हुई थी। सकारण अपना अपना पक्ष रख कर उस किरदार में अपने को खोजने में लगी हुई थीं।

साँवली सलोनी राधिका थी तो थोड़ी मोती, पर शायद अपने को सबसे अधिक भावप्रवण समझती थी। वह बोली, "ये रोल तो मुझे ही मिलना चाहिए। जैसे ही मैं इन संवादों को बोलूंगी, तो सब पर छा जाऊंगी।" चंद्रा उसके बड़बोलेपन को सहन नहीं कर सकी और उसने पलट वार किया, "जानती हो, मुझसे सुन्दर पूरे कॉलेज में कोई नहीं है। मुमताज़ तो सुन्दरता की मिसाल थी। अतः इस पात्र को निभाने के लिए मैं पूर्ण रूप से अधिकारी हूँ।"

शीबा कैसे चुप रह जाती? बोली, "वाह! मैं ही मुमताज़ का किरदार निभा पाऊंगी। जानती हो, मुझसे अच्छी उर्दू तुम में से किसी को नहीं आती। यदि संवाद सही उच्चारणों के साथ न बोले जाएँ तो क्या मज़ा?"

राधिका तीखी आवाज़ मैं बोली, "ज़रा अपनी सूरत तोह देखो! क्या हिरोइन ऐसी काली कलूटी होती हैं?!"

सुनते ही शीबा उबल पड़ी, "तुम क्या हो, पहले अपने को आईने में निहारो। बिल्कुल मुर्रा भैंस नज़र आती हो।"

"अजी, बिना बात की बहस से क्या लाभ होगा? देख लेना, सर तो मुझे ही यह रोल देंगे। मैं सुन्दर भी हूँ और... प्यारी भी।", मोना ने अपना मत जताया।

"बस बस। रहने भी दो। ड्रामे में हकले तक्लों का कोई काम नहीं होता। हाँ, यदि किसी हकले का कोई रोल होता, to शायद तुम धक् भी जातीं।", मानसी हाँथ नचाते हुई बोली।

इसी तरह आपस में हुज्जत होने लगी और शोर कक्ष के बाहर तक सुनाई देने लगा।बाहर घूम रहे लड़के भी कान लगाकर जानने की कोशिश में लग गये की आखिर मांजरा क्या है?

इस व्यर्थ की बहस की परिणीती देखने को मिली सांस्कृतिक प्रोग्राम में।

पर्दा उठा और हास्य प्रहसन "मुमताज़ की तलाश" की शुरुवात हुई।

एक भारी भरकम प्रोफेस्सर मंच पर अवतरित हुए। वह अपने नाटक की रूप रेखा बताने लगे। फिर आयीं भिन्न भिन्न प्रकार की नायिकाएं और अपना अपना पक्ष रखने लगीं मुमताज़ के पात्र के लिए।

फिर पूरा मंच एक अपूर्व अखाड़े में परिवर्तित हो गया और बेचारे प्रोफेस्सर साहब सिर पकड़कर बैठ गये। उनके मुख से निकला, "हाय!!! कहाँ से खोजूं मुमताज़ को?! यहाँ तो कई कई मुमताज़ हैं!"

और पटाक्षेप हो गया।

आशा 

Sunday, April 24, 2022

कहानी सूरज नारायण की

 


16 दिसंबर, 2009

एक कहानी सूरज नारायण की

एक परिवार में रहते तो केवल तीन सदस्य थे ,पर महिलाओं में आपस में बिल्कुल नहीं बनती थी |सरे दिन
आपस में झगडती रहतीथी । घर में सारे दिन की कलह से सूरज नारायण बहुत तंग आ चुका था |न तो घर
में कोईबरकत रह गई थी और न ही कोई रौनक |
यदि कोई अतिथि आता ,सास बहू के व्यबहार से वह भी दुखी होकर जाता | धीरे धीरे घर के वातावरण
से उकता कर वह घर से बाहर अधिक रहने लगा |जब इतने से भी बात नहीं बनी ,एक दिन शान्ति की तलाश
में सूरज ने घर छोड़ दिया |
इधर पहले तो कोई बात न हुई पर जब वह नहीं आया तो सास बहू ने उसकी तलाश शुरू की |सास भानुमती
एक जानकर के पास गयी व अपने पुत्र की बापसी का उपाय पूंछा | बहू ने भी अपने पति को पाने के उपाय
अप्नी सहेलियों से पूछे|
सब लोगों से चर्चा करने पर उन्होंने पाया की यदि घर का अशान्त वातावरण,गंदगी व आपसी तालमेल का
अभाव रहे तो कोई भी वहां नहीं रहना चाहता , चाहे पति ही क्यूँ न हो |
दूसरे ही दिन सास भानुमती ने अपनी बहू सुमेधा को अपने पास बुलाया |लोगों द्वारा दिए गये सुझावों की
जानकारी उसे दी |पति के घर छोड़ देने से परेशान सुमेधा ने भी हथियार दल दिए व सास का कहना मानने लगी |
अब घर में सभी कार्य सुचारू रूप से होने लगे घर की साफ सफाई देखने योग्य थी |यदि कोई आता तो उसे
ससम्मान बैठाया जाता |आदर से जलपान कराया जाता तथा यथोचित भेट ,उपहार आदि देकर विदा किया जाता | धीरे धीरे सभी बाते सूरज तक पहुचने लगी |उसने माँ व सुमेधा की परीक्षा लेने के लिए एक कोढ़ी का वेश
धरण किया और अपने घर जाकर दरवाजा खटखटाया | जैसे ही दरवाजा खुला सुमेधा को अपने सामने पाया |
सुमेधा उसे न पहचान सकी |फिरभी वह व भानुमती उसकी सेवा करने लगी|आदर से एक पाट पर बैठकर
उसके पैर धुलाए , भोजन करवाया व पान दिया | भोजन के बाद सूरज ने सोना चाहा और सूरज नारायण के बिस्तर पर सोने की इच्छा जाहिर की |सास ने खा बुजुर्ग है सोजानेदो |सुमेधा ने उसे सोजाने दिया |
पर सूरज ने एकाएक उसका हाथ पकड़ा व कहा मई सूरज नारायण हूँ |इस पर सुमेधा ने कहा "मेरे
पति तो इस करवे की टोटी में से निकल सकते है ,यदि आप निकल जाओ तभी मई आपको अपना पति मानू"
सूरज ने बड़ी सरलता से करवे की टोंटी से निकल कर दिखा दिया व अपने असली रूप मे आगये |
अब घर का माहोल बदल गया व घर फिरसे खुश हाल होगया |
आशा 

Tuesday, April 19, 2022

विचारों का जलजला

 

 विचारों का जलजला -

मन में विचारों का जलजला जब आता है सही गलत का ध्यान  ही नहीं रहता |उस समय तो ऐसा लगता है कि किसी प्रकारअपने मन की सारी भड़ास निकाल दी जाए जिससे मन हल्का हो पाए |अपने मन की सारी बातें जब किसी से कही जाती हैं यह तक नहीं सोचा जाता कि ये बातें दूसरे के लिए आवश्यक भी है कि नहीं |यूं ही अपना समय और सामने वाले का समय क्यूँ व्यर्थ किया जाए |एक सीमा तक तो अपने विचार दूसरों पर थोपना कहाँ तक न्याय पूर्ण है ?आप के विचार कैसे हैं

क्या आप भी मेरे विचारों से सहमत हैं ?

आशा

 

क्यूँ व्यर्थ किया जाए |एक सीमा तक तो

अपने विचार दूसरों पर थोपना कहाँ तक

न्याय पूर्ण है ?आप के विचार कैसे हैं

क्या आप भी मेरे विचारों से सहमत हैं ?

आशा

 

Saturday, April 16, 2022

लघु कथा ( कांच की स्त्री )

 

कांच की स्त्री –

महिलाओं को प्राचीन काल से ही बहुत नाजुक माना जाता रहा है |उन्हें कौमलांगी और नजाकत की धरोहर समझा जाता था |पर जैसे जैसे समय में परिवर्तम आया उनने सभी क्षेत्रों में अपने हाथों को  अजमाया  और सफल हो कर  दिखलाया | उन्हों ने यह सिद्ध कर दिया कि वे किसीसे कम नहीं | यह जरूर है कि उनमें पुरुषों की तरह शारीतिक शक्ति नहीं पर दिमाग अधिक सक्षम है जिसकी सझायता से वे कठिन से कठिन कार्य भी सरलता से संपन्न कर लेती हैं |वे कांच की तरह सख्त और मजबूत होती  हैं पर भावुक भी|कच्चे कांच की तरह भावुक होने के कारण टूट कर बिखर जाती हैं जब कोई उनके मन को ठेस पहुंचाता है जैसे कि कांच के गिर जाने से टूट कर बिखर जाना और किरच हो जाना |

आशा

Friday, April 15, 2022

काम वाली बाई

 

राधा आज बहुत उदास थी |किसी ने कुछ अनर्गल कह दिया था| कोई हरकत की थी |मेरे कारण पूंछने पर वह फफक कर रोने लगी |उसको मुंह धोने को कहा जब थोड़ी शांत हुई उसने मुझे जो बात बताई मैं सुनकर हैरान रह गई अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ इंसान इतना गिर सकता है कभी कल्पना भी न थी |राधा ने किसी की दी हुई शर्त पहन रखी थी जिसका गला आवश्यकता से अधिक बड़ा था |राह चलते एक व्यक्ति ने अनर्गल ताना दिया और जान बूझ कर

उससे जा टकराया |बोला अरे  वाह क्या मलाई जैसा बदन है काश तुम मेरी होतीं |उसे इस बात की भी शर्म नहीं आई कि राधा दो  बच्चों की माँ थी |राधा को उसकी नीयत में खोट दिखा |वह लगभग दोड़ती हुई हमारे घर में घुस गई और जैसे तैसे उस गंदी नजर वाले से बच  पाई |मुझे इस बात की हैरानी होती है कि जैसा जिसने दिया होता है वही कपड़ा

तन छिपाने के लिए पर्याप्त नहीं होता क्या ?

लोगों की सोच कितनी ओछी होती है |निगा्हें कितनी मैली होती हैं कि हर गलत जगह पर जा कर ही टिक जातीं हैं |

आशा

Saturday, April 9, 2022

उसका भविष्य क्या होगा ?


 


उसने एक लोअर मिडिल क्लास परिवार में जन्म लिया था |साथ लाई थी अपने से छोटे

चार भाई बहिनों को |बचपन से ही सुनती आई थी ,तुम बड़ी हो तुम्हें ही सब का ध्यान रखना होगा |जब दस साल की हुई उसके पिताजी का एक्सीडेंट हो गया तब वे लगभग एक वर्ष बिस्तर पर पड़े रहे |जैसे तैसे माँ ने घर को सम्हाला खेती में काम करके |बाद में उनकी केंसर से मृत्यु हो गई

तेरह वर्ष की होते ही स्नेहा के लिए रिश्ते आने लगे |पर धन के अभाव में यह भी संभव न हो सका |एक व्यक्ति ने सलाह दी

क्यों न दूसरी जात में रिश्ता खोजा जाए |इसमें धन भी नहीं लगेगा और स्नेहा की

शादी भी हो जाएगी | जैसे तैसे एक रिश्ता आया |लड़का उम्र में उससे पन्द्रह साल बड़ा था |पर माँ ने उसे समझाया आदमीं की उम्र नहीं देखी जाती उसका परिवार देखा जाता है

 जब ससुराल में पहुंची उसकी हैसियत एक नौकरानी जैसी हो गई  दिन भर काम करती और बार बार ताने सुनती |कभी हाथ भी उठ जाते वह  रोकर रह जाती |पर सहनशक्ति

जबाब देने लगी |एक दिन आधी रात में घर के बाहर निकाल दिया |वह  कहाँ जाती दो छोटे बच्चों को ले कर |रात तो स्टेशन पर गुजार दी |दूसरे दिन एक गाड़ी में बैठ चल दी बिना टिकिट के |दो स्टेशन के बाद जब

टी .टी. आया उसे उतार दिया अगले स्टेशन पर |इतफाक से एक परिचित मिल गए |वे बापिस ससुराल में छोड़ गए |फिर यही किस्सा दोहराया गया, पर तब बच्चे साथ न थे | वह अपने मायके आ गई | वह दूसरों के घर काम करने लगी |लोगों ने मध्यस्तता की उसे बच्चे मिल गए पर बाद में उसका पति भी आगया पर कोई काम नहीं किया |

पर वह इतने से ही संतुष्ट होगी  |उसमें इतना आत्मविश्वास  देख बहुत अच्छा लगा

“बारह  बरस बाद तो घूरे के दिन भी फिर जाते हैं”कहावत चरितार्थ हुई है |

आशा

Wednesday, April 6, 2022

माँतेरी रूप अनेक


 

 नवरात्री के प्रारंभ से ही उपवास रखने की चाहत थी |इसके पूर्व कभी उपवास रखा ही न था |सुबह से घर झाड़ा पौंछा खुद स्नान किया |पूजन की तैयारी की |

पहले सोचा वृत तो निर्जला ही रखना चाहिए |

 पर सर दुखने लगा| मन ने कहा चाय  तो पीलूँ इसमें क्या हर्ज है |चाय का प्याला सब के हाथों में देख मन न माना और चाय पीली |

फिर पूजा की चित्त लगा कर |दुर्गा चालीसा का पाठ किया और आरती की |यह सब करते करते

ग्यारह बज गया|खाना बनाया सब को खिलाया |फिर फलाहार बनाया और पेट भर खाया |फल फूल तो दिन भर चलते रहे रात्रि को आरती की पर मन में कहीं कुंठा रही |बहुत सोचा फिर याद आया मैंने अपने से किये वादे को नहीं निभाया खुद पर आत्म नियंत्रण न रख पाया |अब सोचा नियमित दर्शन को जाऊंगा |पर घर में आए मेहमान यह भी नहीं हो पाया | माता तुम्हारा एक रूप ही देखा शेष के लिए आने वाले नवदुर्गे तक जाने का वादा किया खुद से |अब दुखी हूँ अपने मन को स्थिर न रख पाने के लिए |

   मालूम तो है कि तुम्हारे रूप अनेक पर देख  नहीं पाया |

आशा 

Wednesday, March 30, 2022

जब वह अपनी ही छाया से डरा

 

जब वह अपनी ही छाया से डरा –

वह टी .वी बहुत देखता था |उसे क्रिमनल शो देखना बहुत पसंद थे |सब मना भी करते थे

कुछ अच्छा देखा करो |पर जितना उसे मना किया जाता वह वही करता था |मनमानी करता था |एक दिन जब सोने के लिए अपने बिस्तर पर गया अचानक अजीब सी आवाज उसे सुनाई दी |उसने सोचा यह उसके मन का भ्रम तो नहीं ?|पर जब वही आवाज फिर सुनाई दी वह दरवाजे की ओर लपका |वह तो ठीक से बंद था |फिर वह खिड़की के पास जा खडा हुआ |अँधेरे में कुछ चलता प्रतीत हुआ |पेड़ की टहनियां जोर से हिलने लगीं और उसे  उनका अक्स भी दिखने लगा फिल्मी चित्रों की तरह |अब उसे पक्का विश्वास हो गया , जरूर कोई है जो इसी रास्ते से उसके कमरे में आना चाहता था |फिरसे वही आवाज उसके कानों में गूंजने लगी और वह इतना भयभीत ही गया कि रात भर सो न पाया|तभी कहा जाता है कि जब कोई सलाह दे उस पर ध्यान अवश्य देना चाहिए |

आशा

Thursday, March 24, 2022

हादसा

 



सड़क पर बीचोबीच  बच्चे दौड़ लगा रहे थेकिसीने नहीं टोका कि गिरोगे तो चोट लग जाएगी |अचानक एक गाड़ी बहुत तेजी से आई और उसने संतुलन खो दिया |बच्चे भी दर कर इधर उधर भागने लगे |

तभी एक बच्चा उस गाड़ी की चपेट में आ गया |वही उसकी सांस थम गई |दूसरा उसे बचाने गया था उसके पैर में चोट लगी |पर दर्शक देखते रहे |कोई कुछ न बोला |गाड़ी वाला भाग खडा हुआ करीव आधे घंटे बाद पुलिस आई और अस्पताल ले गई |मृत बच्चे का पोस्ट मार्टम हुआ और लाश परिजनों को सौंप दी गई |परिजनों ने गुहार लगाई पर एक ने भी गवाही न दी |पीछे से बोला अरे कौन कोर्ट का चक्कर काटेगा |किसके पास समय है |

यही सोच है आज की जनता का |आप इस घटना के बारे में क्या सोचते हैं ?

आशा