अमृत कलश

Wednesday, March 30, 2022

जब वह अपनी ही छाया से डरा

 

जब वह अपनी ही छाया से डरा –

वह टी .वी बहुत देखता था |उसे क्रिमनल शो देखना बहुत पसंद थे |सब मना भी करते थे

कुछ अच्छा देखा करो |पर जितना उसे मना किया जाता वह वही करता था |मनमानी करता था |एक दिन जब सोने के लिए अपने बिस्तर पर गया अचानक अजीब सी आवाज उसे सुनाई दी |उसने सोचा यह उसके मन का भ्रम तो नहीं ?|पर जब वही आवाज फिर सुनाई दी वह दरवाजे की ओर लपका |वह तो ठीक से बंद था |फिर वह खिड़की के पास जा खडा हुआ |अँधेरे में कुछ चलता प्रतीत हुआ |पेड़ की टहनियां जोर से हिलने लगीं और उसे  उनका अक्स भी दिखने लगा फिल्मी चित्रों की तरह |अब उसे पक्का विश्वास हो गया , जरूर कोई है जो इसी रास्ते से उसके कमरे में आना चाहता था |फिरसे वही आवाज उसके कानों में गूंजने लगी और वह इतना भयभीत ही गया कि रात भर सो न पाया|तभी कहा जाता है कि जब कोई सलाह दे उस पर ध्यान अवश्य देना चाहिए |

आशा

Thursday, March 24, 2022

हादसा

 



सड़क पर बीचोबीच  बच्चे दौड़ लगा रहे थेकिसीने नहीं टोका कि गिरोगे तो चोट लग जाएगी |अचानक एक गाड़ी बहुत तेजी से आई और उसने संतुलन खो दिया |बच्चे भी दर कर इधर उधर भागने लगे |

तभी एक बच्चा उस गाड़ी की चपेट में आ गया |वही उसकी सांस थम गई |दूसरा उसे बचाने गया था उसके पैर में चोट लगी |पर दर्शक देखते रहे |कोई कुछ न बोला |गाड़ी वाला भाग खडा हुआ करीव आधे घंटे बाद पुलिस आई और अस्पताल ले गई |मृत बच्चे का पोस्ट मार्टम हुआ और लाश परिजनों को सौंप दी गई |परिजनों ने गुहार लगाई पर एक ने भी गवाही न दी |पीछे से बोला अरे कौन कोर्ट का चक्कर काटेगा |किसके पास समय है |

यही सोच है आज की जनता का |आप इस घटना के बारे में क्या सोचते हैं ?

आशा

समीक्षा १२-

 

      स्तक चर्चा - श्रृखला 12

आज की चर्चा मे श्रीमती आशालता सक्सेना के तीन काव्य संग्रह अनकहा सच ,अन्तःप्रवाह ,प्रारब्ध

आशा जी ने अपना अनकहा सच कुछ इस प्रकार व्यक्त किया है.......

मैं तो बस लिख रही हूँ और क्यों लिख रही हूँ , यह नहीं जानती मेरे मन में तरह तरह के विचार उठते है और इन विचारो के साथ जीवन के कड़वे मीठे अनुभवों का सिलसिला खुलता जाता है अनुभूतिय शब्दों का लिबास पहन कर अभिव्यक्त होने लगती है यह क्रम पिछले दस-बारह सालो से सतत चल रहा है आशा जी कहती है साहित्य सृजन में मेरा परिचय नहीं है, पर मैं बहुत भाग्य शाली हूँ , की मुझे ममतामयी श्रेष्ठ कवियित्री माता से संस्कार मिले है ! यह उनकी संस्कारो का ही फल है विवाह के बाद घर गृहस्थी और शिक्षा सेवा में व्यस्त रही और सेवानिवृति के बाद अध्यन व लेखन से जुडी हूँ जिसमे मुझे मेरी छोटो बहन कवियित्री श्री मति साधना वैद का भरपूर प्रोत्साहन प्राप्त हुआ है ....!

2 मई 1943 को जन्मीं श्रीमती आशा लता सक्सेना, उच्चतर माध्यमिक विद्यालय उज्जैन से सेवा निवृत्त हैं आपके पिता स्वर्गीय श्री बृज भूषण लाल सक्सेना (अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश मध्य प्रदेश) और माता स्वर्गीया डॉ. श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना किरणथीं। आपके पतिदेव श्री हरेश कुमार जी सक्सेना सेवा निवृत्त प्रधानाचार्य हैं। श्रीमती आशा लता सक्सेना ने बी. एस. सी., एम. ए. अर्थशास्त्र, एम. ए. अंग्रेज़ी. तथा बी. एड. तक की शिक्षा प्राप्त की है। आपके अब तक काव्य संग्रह अनकहा सच, अंत:प्रवाह, प्रारब्ध, शब्द प्रपात, सुनहरी धूप, सिमटते स्वप्न, काव्य सुधा, युगांतर, यायावर, पलाश और आकांक्षा निहारिका अपराजिता विभावरी प्रकाशित हो चुके हैं!

मई 2012- 13 में मुझे श्रीमती आशालता सक्सेना जी की पुस्तक अनकहा सच, अन्तःप्रवाह, प्रारब्ध ( काव्य संकलन ) पढने को मिला जो बहुत ही पसंद आया !

जो उन्होंने समर्पण किया है अपने अपनी माता सुप्रसिद्ध कवियित्री स्व. डॉ. (श्रीमती ) ज्ञानवती सक्सेना जी को

आशा सक्सेना जी जिन्हें आप सभी आकांशा ब्लॉग में पढ़ते रहे है जिन्होंने हर विषय पर कवितायेँ लिखी है पर ज्यादा तर प्रकृति पर उनकी कविताये मन को बहुत प्रभावित करती हैं।

जीवन में हर व्यक्ति सपने अवश्य देखता है, पर कुछ ही लोगो के सपने साकार होते है जिसे आशा लता जी ने अपने रचना कर्म के स्वप्न को इस आयु में साकार किया है ।

श्रीमती आशा लता सक्सेना उन्ही में से एक है जिन्हें मैं ब्लॉगजगत में माँ का दर्जा देता हूँ !

अनकहा सच की कुछ पंक्तिया........

उम्र के आखिती पड़ाव पर यदि अपनों का साथ ना हो तो मन दुखी हो जाता है मन में कसक गहरी होती है

होती है कसक

जब कोई साथ नहीं देता

उम्र के इस मोड़ पर नहीं होता चलना सरल

लंबी कतार उलझनों की

पार पाना नहीं सहज !!

अन्तःप्रवाह आशा माँ के मन के प्रवाहों का संकलन है। इस की भूमिका डॉ. बालकृष्ण शर्मा ने लिखी है !

प्राचार्य (विक्रम विश्वविद्यालय, उजैन )

आशा जी सरस्वती अंत सलिला है उसका प्रवाह अन्तः करण में निरंतर चलता रहता है !

कवयित्री ने इस काव्यसंग्रह केअपनी ममतामयी माता सुप्रसिद्ध कवयित्री स्व. डॉ. (श्रीमती) ज्ञानवती सक्सेना किरणको समर्पित किया है। अपनी शुभकामनाएँ देते हुए शासकीय स्नातकोत्तर शिक्षा महाविद्यालय, भोपाल से अवकाश प्राप्त प्राचार्या सुश्री इन्दु हेबालकर ने लिखा है-

कवयित्री ने काव्य को सरल साहित्यिक शब्दों में अभिव्यक्त कर पुस्तक अन्तःप्रवाहको प्रभावशाली बनाया है।

श्रीमती आशालता सक्सेना ने अपनी बात कहते हुए लिखा है-

मन में उमड़ते विचारों और अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने के लिए मैंने कविता लेखन को माध्यम बनाया है...।

"अन्तःप्रवाह" में कवयित्री की बहुमुखी प्रतिभा की झलक दिखाई देती है। ज़िन्दगी के बारे में वे लिखतीं हैं......

यह ज़िन्दगी की शाम

अजीब सा सोच है

कभी है होश

कभी खामोश है !

बेटी अजन्मी सोच रही

...........

क्यूँ उदास माँ दिखती है

जब भी कुछ जानना चाहूँ

यूँ ही टाल देती है

रह न पाई

कुलबुलाई

समय देख प्रशन दागाक्या तुम मुझे नहीं चाहती !

मृगतृष्णा पर प्रकाश डालते हुए कवयित्री कहती है

....................

जल देख आकृष्ट हुआ

घंटों बैठ अपलक निहारा

आसपास था जल ही जल

जगी प्यास बढ़ने लगी

खारा पानी इतना

कि बूँद-बूँद जल को तरसा

गला तर न कर पाया

प्यासा था प्यासा ही रहा..

अंग्रेजी की प्राध्यापिका होने के बावजूद कवयित्री ने हिन्दी भाषा के प्रति अनुराग व्यक्त करते हुए लिखा है........!!

भाषा अपनी

भोजन अपना

रहने का अंदाज अपना

भिन्न धर्म और नियम उनके

फिर भी बँधे एक सूत्र से

..............

भारत में रहते हैं

हिन्दुस्तानी कहलाते हैं

फिर भाषा पर विवाद कैसा

.............

सरल-सहज

और बोधगम्यता लिए

शब्दों का प्रचुर भण्डार

हिन्दी ही तो है......

उसके बाद अभी कुछ समय पूर्व मुझे आशा जी तीसरी पुस्तक प्रारब्ध मिली !

लेकिन पुस्तकों के माध्यम से उनकी हिन्दी साहित्य के प्रति गहरी लगन है आज के समय में साहित्य जगत में अपनी लेखनी को पुस्तक का रूप देना हर किसी के बस की बात नहीं है !

इस कृति के बारे में डॉ. रंजना सक्सेना (शासकीय संस्कृत महाविद्यालय की हिन्दी विभागाध्यक्ष ) लिखती हैं -

श्रीमती आशा सक्सेना का काव्य संकलन प्रारब्ध सुखात्मक और दुखात्मक अनुभूति से उत्पन्न काव्य है। पहले अनकहा सचफिर अन्तःप्रवाहऔर अब प्रारब्ध’... ऐसा प्रतीत होता है कवयित्री अब कहने लगी तो वह प्रवाह अन्तःकरण से निरन्तर बह निकला।

आशा लता सक्सेना का लेखकीय सरोकार सृजन रंगों से सराबोर जीवन यथार्थ की इसी पहचान से जुड़ा है ! प्रारब्ध उनका तृतीय काव्य संग्रह है संग्रह की कविताये जीवन के उद्देश्य को तलाशती है !

मैं तो एक छोटा सा दिया हूँ

अहित किसी का ना करना चाहू

परहित के लिए जलता हूँ !!

कवयित्री अपनी एक और कविता में कहती हैं

दीपक ने पूछा पतंगे से

मुझमें ऐसा क्या देखा तुमने

जो मुझ पर मरते मिटते हो

जाने कहाँ छिपे रहते हो

पर पाकर सान्निध्य मेरा

तुम आत्म हत्या क्यों करते हो...

विश्वास के प्रति अपनी वेदना प्रकट करते हुए कवयित्री कहती है.....!!

ऐ विश्वास जरा ठहरो

मुझसे मत नाता तोड़ो

जीवन तुम पर टिका है

केवल तुम्हीं से जुड़ा है

यदि तुम ही मुझे छोड़ जाओगे

अधर में मुझको लटका पाओगे...

प्रारब्धकाव्य संग्रह की पहली रचना.....!!

जगत एक मैदान खेल का

हार जीत होती रहती

जीतते-जीतते कभी

पराजय का मुँह देखते

विपरीत स्थिति में कभी होते

विजय का जश्न मनाते

राजा को रंक होते देखा

रंक कभी राजा होता...!

पता - श्रीमती आशा लता सक्सेना

सी-47, एल.आई.जी, ऋषिनगर, उज्जैन-456010

पुस्तक प्राप्ति हेतु कवयित्री (आशा सक्सेना जी ) से दूरभाष- 0734 - 2521377 से भी सीधा सम्पर्क किया जा सकता है।

आशा सक्सेना जी को सभी काव्य संकलनो के लिए हार्दिक

बधाई

व ढेरो शुभकामनाये .....!!

#अनकहा सच (57 कविताएँ)

#अन्तःप्रवाह (83 कविताएँ)

#प्रारब्ध (116 कविताएँ)

- श्रीमती आशालता सक्सेना

- संजय भास्कर