अमृत कलश

Monday, August 29, 2011

बापू


बापू तुमने बाग़ लगाया
खिले फूल मतवारे थे
इन फूलों ने निज गौरव पर
तन मन धन सब वारे थे |
बापू तुमने पंथ दिखाया
चले देश के लाल सुघर
जिनकी धमक पैर की सुन कर
महा काल भी भागा डर |
बापू तुमने जोत जलाई
देशप्रेम की, मतवाले
हँसते हँसते जूझे जिससे
शलभ निराले सत वाले |
बापू तुमने बीन बजाई
मणिधर सोए जाग गये
सुन फुंकार निराली जिनकी
बैरी भी सब भाग गये |
बापू तुमने गीता गाई
फिर अर्जुन से चेते वीर
हुआ देश आज़ाद, मिटी
युग युग की माँ के मन की पीर |
आ जाओ ओ बापू फिर से
भारत तुम्हें बुलाता है
नव जीवन संचार करो
यह मन में आस जगाता है |
अभी तुम्हारे जैसे त्यागी की
भारत में कमी बड़ी
आओ बापू फिर से जोड़ो
सत्य त्याग की सुघर कड़ी |


किरण




Tuesday, August 23, 2011

पहेलियाँ

(१)
हरी श्वेत कत्थे सी होती
भरे पेट मैं अगणित मोती
जो भी मुझ को पा जाते हैं
खुशबू से मुंह महकाते हैं |
(२)
मध्य कटे माटी बन जाऊं
आदि कटे तो सोना
अंत कटे सब को डरवाऊँ
खाओ साग सलोना |
किरण

Wednesday, August 17, 2011

परिश्रम का फल



किसी नगर में सड़क किनारे एक पेड़ था भारी
बड़ी बड़ी शाखायें जिसकी फूल बड़े मनहारी |
एक दिवस था उसी वृक्ष पर उड़ता कौवा आया
चना एक निज भोजन के हित दबा चोंच में लाया |
भूखा कौवा छाँह देख कर उस पर बैठा उड़ कर
सोचा उसने भूख मिटा लूँ चना कुरमुरा खा कर |
ज्यों ही चना तने पर रक्खा घुसा छेद में जाकर
निकला नहीं निकाले से कौवा बोला पछता कर |
बहुत दुःख है हाय पेड़ ने मेरा भोजन खाया
मैं तो भूखा ही बैठा हूँ अरे देव की माया |
बहुत सोच वह बढ़ई के घर दौड़ा गया उसी क्षण
बोला पेड़ चीर कर दे दो मेरा खोया लघु कण |
बढ़ई बोला है न मुझे अवकाश भाग तुम जाओ
मेरे पास न आओ पाजी भूखों मरो या खाओ |
कौवा पहुंचा राज महल में राजा से यूँ बोला
राजा बढ़ई को देश निकालो उसने तना न खोला |
राजा बोला अरे मूर्ख तू पास मेरे क्यूँ आया
व्यर्थ समय का नाश किया है गुस्सा व्यर्थ दिलाया |
हो निराश वह पहुँचा भीतर रानी से बोला वह
राजा से रूठो रानी तुम धरना दे बैठा वह
बोला "राजा बात न सुनते बोलो मैं क्या खाऊं
नहीं पास हैं साधन कुछ भी कैसे भूख मिटाऊँ "|
रानी बोली मुझे काम हैं बहुत चला जा भाई
आज्ञा पाए बिना महल में आया शामत आई |
कौआ पहुँचा चूहे के घर बोला कपड़े काटो
रानी है गर्वीली ऐसी उसको जाकर डाटो |
चूहा बोला इनके ही बल पर ही मैं मौज उड़ाता
नहीं करूँगा मैं गद्दारी ऐसा मुझे न भाता |
फिर कौआ पहुँचा बिल्ली घर बोला बिल्लीरानी
चूहे को झटपट खा जाओ करता है मनमानी |
बिल्ली बोली अरे मुझे है पाप मार्ग बतलाता
मैं भक्तिन माला पहने हूँ तुझे नजर ना आता |
तब कौआ कुत्ते से बोला मेरी मदद करो तुम
बिल्ली मार जगत में यश लो बिलकुल नहीं डरो तुम |
कुत्ता बोला मैं पहरे पर आया अभी अभी हूँ
मेरा है कर्तव्य बड़ा, मैं फिर तैयार कभी हूँ |
कौआ डंडे से जा बोला कुत्ता मारो भाई
उसने मेरी बात न मानी, ना ही बिल्ली खाई |
डंडा बोला निरपराध को व्यर्थ दंड क्यों दूँ मैं
जो मर जाए अरे अकारण क्यों सिर अपयश लूँ मैं |
अग्नि पास जा कर तब उसने सारी कथा सुनाई
किन्तु वहाँ भी उसके पल्ले वही निराशा आई |
सागर पास गया वह दौड़ा बोला अग्नि बुझाओ
हो कर के मेरे सहाय कुछ जग में नाम कमाओ |
किन्तु न सागर बोला कुछ भी शांत रहा लहराता
"अरे गर्व से मतवाले है तेरा हरी से नाता |
इसी अकड़ में दीन वचन भी मेरे तुझे न भाते
नहीं सहायता मेरी करता, तुझे दुखी न सुहाते " |
बहुत क्रोध में आक़र वह गज से यूँ बोला जा कर
सागर सोख करो हित मेरा तुम तो हो करुणाकर |
हाथी रहा झूमता खाता वह कुछ ध्यान ना लाया
बहुत हार कर भूखा कौवा चींटी के घर आया |
सारी विपत कथा कह डाली फिर सहायता माँगी
बड़े ध्यान से रही सोचती वह चींटी अनुरागी |
फिर बोली निश्चिन्त रहो तुम मैं हाथी को मारूँ
हाथी बोला , अरे नहीं मैं सब सागर पी डालूँ
सागर बोला अग्नि बुझाऊँ मुझे न व्यर्थ सताओ
अग्नि कह उठी डंडा अभी जला दूँ चल कर, आओ |
डंडा बोला मुझ गरीब पर क्रोध करो मत भाई
मैं कुत्ते को मार भगाऊँ उसकी शामत आई |
कुत्ता बोला मैं बिल्ली को खा कर भूख मिटाऊँ
बिल्ली बोली चूहा खा कर झगड़ा अलग हटाऊँ |
चूहा बोला मुझे न मारो मैं कपड़े काटूँगा
चुन चुन कर सब जरी रेशमी कपड़ों को चाटूँगा |
रानी घबरा उठी रूठ कर राजा जी से बोली
राजा ने बढ़ई बुलवा कर उसकी बुद्धी खोली |
तब बढ़ही ने पेड़ काट कर दाना तुरंत निकाला
भूखे कौए ने तब झट से उसको चट कर डाला |
मिला परिश्रम और साहस का उसको जो उत्तम फल
वरे सफलता और कीर्ति को भोगे वो सुख के पल |


किरण



















Monday, August 15, 2011

पहेलियाँ


(एक )


मैं हूँ एक छोटी सी नारी
भरी पेट में ज्ञान पिटारी
सभी मुझे हैं शीश झुकाते
अपना मन चाहा गुण पाते |
(दो )

शांत हिमालय पर सोती हूँ
पर गर्मीं में मैं रोत़ी हूँ
ये आंसू सागर तक जाते
जो पृथ्वी को भी सरसाते |

किरण





Sunday, August 7, 2011

उपमन्यु

आयोधोम्य ऋषि के दूसरे शिष्य का नाम उपमन्यु था |उसकी परिक्षा लेने के लिए भोजन मिलाने के सभी रास्ते बंद कर दीरे |ऋषि की आज्ञा को वेद वाक्य बिना कुछ खाए रहने लगा |एक दिन भूख से व्याकुल हो कर आक के पत्ते खा लिए |फल स्वरुप वह अंधा हो गया और एक कुए में गिर गया |गुरू ने उसे खोजा और कहा कि वह अश्वनी कुमारों का ध्यान करे |अश्वनी कुमार ने उसे पुआ खाने को कहा |उसने मना कर दिया और कहा कि वह बिना गुरू की आज्ञा के कुछ नहीं खाएगा |जब गुरू ने आज्ञा दी तभी पुआखाया और उसकी आँखें अच्छी हो गईं |इस प्रकार गुरु की ली परिक्षा में वह उत्तीर्ण हो गया और आशीष पा कर सफल बना |
आयोधौम्य के शिष्य दूसरे
जिनका था उपमन्यु नाम
गौओं की रक्षा करने का
गुरु ने उनको सौंपा काम |
कठिन परीक्षा लेने की
गुरु ने इक दिन मन में ठानी
ज्ञात हो सके जिससे
है वह कितना वेद विज्ञ ज्ञानी |
एक दिन गुरू ने पूंचा
बेटा क्या तुम खाते हो
जिससे दिन प्रतिदिन तुम
ऐसे मोटे होते जाते हो |
उपमन्यु बोले" गुरुवार
मैं भिक्षा को नित जाता हूँ
जो कुछ भी मिल जाता है
गुरु अर्पण कर खाता हूँ "
गुरु बोले तुम जो कुछ पाते
वह सब कुछ मुझको ला देना
बिना हमारी आज्ञा के
उसमें से कुछ भी मत लेना
एक दिन फिर पूंछा गुरु ने
"भिक्षा मुझ को ला देते
अब भी हो तुम स्वस्थ
कहो खाने को अब क्या लेते "
उसने कहा " दुबारा जा कर
फिर भिक्षा ले आता हूँ
देवों को अर्पित करके
बस उसको ही खा लेता हूँ "
गुरु बोले "यह महा पाप है
लोभ पाप का मूल मन्त्र है
भाग दूसरों का है वह "
मौन हुए गुरु इतना कह |
कुछ दिन बीते गुरु ने पूंछा
उपमन्यु अब क्या खाते
"दूध गाय का पी लेता हूँ
और नहीं कुछ भी भाता "
कहा उन्हों ने "यह आश्रम की
गाएं है यह उचित नहीं
बिना हमारी आज्ञा के
कुछ भी लेना है फलित नहीं "
एक मांह बीता फिर गुरु ने
पूंछा "अब हो क्या खाते
खाने के सब द्वार बंद हैं
फिर भी मोटे दिखलाते "
"बछड़े पीते समय दूध
फैन गिरादेते भर पूर
बस वही आहार है मेरा
अधिक न कुछ लेता ऊपर"
हरे कृष्ण यह महापाप
तुम कैसे कर पाते हो
दयावान बछड़ो को भूखा
रख कर जो तुम खाते हो
दिन चर्या में रत रह कर
उपमन्यु नित जंगल जाता
जड़ी बूटियाँ पत्ते खा
मुश्किल से भूक बुझा पाता
इसी भाँती कुछ दिन बीते
उसे पत्ते भी नहीं मिले नहीं
एक आक का वृक्ष दृष्टिगत
उसको इक दिन हुआ वहीं
तीव्र भूख की ज्वाला से
पीड़ित हो वे पत्ते खाए
फल यह हुआ कि खाते ही
वे नेत्र अपने गवा आए
जब आश्रम को लौटे वे
ऋषि सुत कब अंध कूप में गिरे
न जाना उनने ,खाई ठोकर कब
लौट न आए आश्रम में
बहुत गुरू ने तब हेरा
बोले यूं पुकार "लौटो सुत
अब संध्या की है बेर "
गुरु किया स्वर पहचान कुए से
वे बोले चिल्ला कर
"मैं गिर पड़ा कुए में गुरुवार
आक तरु के पत्ते खा कर
ज्वाला बुझी पेट की लेकिन
नेत्र गँवा बैठा हूँ
इसी लिए ठोकर खा कर के
लेटा अंध कूप में हूँ मैं "
गुरु बोले अश्विनी कुमारों का
अब तुम आव्हान करो
वे देवों के कुशल वैद्य हैं
बस उनका ध्यान धरो "
गुरु आज्ञा पा ध्यान मग्न हो
वैद्यों का आव्हान किया
सुर रक्षक सब रोग दूर
करने वालों का ध्यान किया
प्रगट हुए तब महाँ विद्या
ले औषधि निश्चित पुआ महा
"गुरु आज्ञा बिन ले न सकूंगा
उपमन्यु ने यही कहा
विद्या चकित हो कर बोले
यह दवा बड़ी गुणकारी है
वह बोला पर बिना गुरु के कहे
पाप यह भारी है "
तब आज्ञा दी गुरु ने उसको
खा कर पुआ नेत्र खोलो
गुरु भक्ति से प्रसन्न हो
वैद्य राज उससे बोले
"गुरु के तुम हो महा भक्त
बच्चे हम यह देते आशीष
दांत तुम्हारे सोने के हों
तुम पर कृपा करेंगे ईश "
और गुरु ने कहा तुम्हें सब
वैद शास्त्र होंगे कंठस्थ
कभी न होगी व्याधि तुम्हें कुछ
सदा रहोगे सुन्दर स्वस्थ
गुरु आज्ञा पालन का बच्चों
है कितना सुन्दर परिणाम
जग में छाती कीर्ति अमर
अरु युग युग तक रहता है नाम
अधोम्य के शिष्य सरीखे
यदि हो अब भारत संतान
उन्नति करता रहे देश
छाए सब जग में कीर्ति महान |

किरण




Wednesday, August 3, 2011

सच्चे लाल


स्वर्ग लोक से परियाँ आईं
किरण नसैनी से हो कर
नन्हे पौधों को नहलाया
ओस परी ने खुश हो कर |
फूल परी ने आ तब उनका
फूलों से सत्कार किया
सोई कली जगाईं पलकें चूम
बहुत सा प्यार दिया |
फिर सुगंध की परियाँ
कलसे भर भर कर पराग लाईं
नन्हे पौधों को सौरभ की
भर भर प्याली पकड़ाई|
देख सूर्य का तेज
लाज से सकुचा कर सब भाग गईं
खेल खेलने पौधों के संग
तितली पाँसे चले कई |
बच्चों पौधों जैसे यदि
उपकारी तुम बन जाओगे
वीर जवाहर बापू से बन
जग में नाम कमाओगे |
तो ये ही सब परियां आक़र
तुम पर प्यार लुटायेंगी
जग में फूलों की सुगंध सी
कीर्ति सुधा फैलायेंगी |
नाम तुम्हारा अमर रहेगा
सब तुमको दुलरावेंगे
ये हैं सच्चे लाल देश के
कह जन मन सुख पावेंगे |

किरण


Tuesday, August 2, 2011

पहेलियाँ के सही उत्तर

पिछली पोस्ट की पहेलियों के सही उत्तर हैं :-

(१) आराम
(२) सूरज

पहेलियाँ

पहेलियाँ बूझो तो जाने :-

(१)

पेट कटे मीठा फल खाओ

शीश कटे रघुवर गुण गाओ

पैर कटे तो काट गिराओ

बच्चों मेरा नाम बताओ |

(२)

बालापन में है हनुमान सा

यौवन है जलता मसान सा

और बुढापा थका हुआ सा

शीश लाज से झुका हुआ सा |

किरण