अमृत कलश

Sunday, February 28, 2021

 




 

जान सांसत में

एक जंगल में एक पेड़ के नीचे बहुत से पशु पक्षी एक साथ रहते थे |उन में आपस में कभी भी तकरार नहीं होती थी |सब मिल जुल कर रहते थे |आपस में हर समस्या का हल खोजने की क्षमता थी उनमें |किसी बात पर बहस नहीं करते थे |यदि किसी ने कोई बात कही होती उस पर पहले मनन चिंतन करते फिर उस कार्य को अंजाम देते |

   एक दिन दो व्यक्ति भी उसी पेड़ के नीचे आकर रुके |थोड़ी देर तो शांती रही फिर बिनाबात बहस में उलझे रहे |धीरे धीरे बहस इतनी उग्र हो गई कि दौनो में हाथापाई होने लगी |कुछ देर तो पशुपक्षी मूक दर्शक हो कर यह नजारा देखते रहे |पर फिर एक गाय ने बीच बचाव करने की कोशिश की |वह बोली आपस में क्यूँ लड़ रहे हो हमको देखो हम तो अलग अलग जाति के लोग है पर फिर भी आपस में नहीं झगड़ते |तुम तो दोनो ही मनुष्य हो |फिर भी एक दूसरे  के खून के प्यासे हो रहे हो |संसद का नजारा दिखा रहे हो

      तुम यहाँ से चले जाओ नहीं तो तुम्हारी यह आदत हमारे ऊपर भी बुरा असर डालेगी |यदि यहाँ रहना चाहते हो पहले मिलजुल कर रहना सीखो |तुमसे तो हम ही अच्छे हैं |हम  किसी भी प्रकार का बैर मन में नहीं रखते |अब बिचारे मनुष्यों की जान सांसत में  आगई वे तो राजनीति के अखाड़े से आए थे ||वह या तो चले जाएं या अपने स्वभाव में परिवर्तन करलें |दोनो ही सोच में पड़ गए अपनी गलती का एहसास हुआ और मन में पश्च्याताप |करें तो क्या करें |वे थे आदतों से लाचार |मन मसोस कर रह गए |

आशा

Friday, February 26, 2021

शरारत बच्चों की


>पहले बच्चे पढ़ने गुरुकुल जाया करते थे |बच्चे वहीं रहकर अपनी पढाई करते थे |जब कोई भी त्यौहार आता था एक दूसरे से मिल बाँट कर उपयोग में आने वाली सामग्री इकठ्ठी कर लेते थे |एक बार कोई एसा त्यौहार आया कि दूध की आवश्यकता पडी | गुरूजी ने सब से कहा कि हर बच्चा एक एक लोटा दूध ले कर आएगा |बच्चों ने बात मान ली |पर एक बच्चे ने सोचा कि यदि वह दूध के स्थान पर पानी ला कर डाल देगा तो किसी को क्या पता चलेगा |यही विचार अधिकतर बच्चों के मन में आया |जब घड़ा भरने लगा गुरू जी ने झाँक कर उस में देखा |कलसे में केवल पानी था |दूध का नामोनिशान न था |वे समझ गए यह बच्चों की शरारत देखकर उन्होंने शिक्षा देने के लिए बच्चों से कहा कि जब तक खीर बनती है वे अपने पाठ याद करें |धीरे धीरे सुबह से शाम हो गई पर खीर नहीं बनी |उन्होंने कारण जानना चाहा |गुरू जी ने कहा क्या मालूम अभी तक क्यूँ नहीं बनी |बोले माधव से ज़रा उसे चलादों कहीं जल न जाए |माधव ने चलाने के लिए चमचा उठाया जब देखा बटलोई में तो पानी के सिवाय कुछ भी नहीं था |गुरूजी ने कहा जैसा दूध था वैसी ही खीर बनेगी इसमें मेरा क्या कसूर है | बेचारे बच्चे अपनी शरारत की सजा का मजा उठा रहे थे |बिना कुछ बोले भूखे ही सो गए | पर अपने आप से कसम खाई आगे से एसी शरारत कभी न करेंगे| आशा