अमृत कलश

Wednesday, November 11, 2020

 

 मन के दीप जलाओ कि आया 

दीपावली का त्यौहार 

यूं  तो दिए  बहुत जलाए पर

 मन के कपाट खोल न पाए |

जीवन भर प्रकाश के लिए तरसे 

अब  जागो मन का तम हरो 

दीप की रौशनी हो इतनी कि

तम का बहिष्कार हो  |

नवचेतना का हो संचार 

घर में  और दर से बाहर  भी 

सद्भावना और सदाचार का 

संचार हो आज के दूषित समाज में | 

|यही सन्देश देता दीपावली का त्यौहार |

दी जाती हैं  बैर भाव भूल सब को

 शुभ कामनाएं दिल से 

यही रहा दस्तूर इस त्यौहार का 

                                                            जिसे हमने भी आगे बढाया |

आशा




यात्रा विवरण (४)

प्रातः काल प्रभु को  एक बार फिर से नमन कर अगले पड़ाव पर जाने के लिए प्रस्थान किया |अब अगला गंतव्य केदार नाथ था |केदार नाथ का धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्व है वह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है |चार धाम में भी इसका महत्वपूर्ण  स्थान है |बद्रीनाथ से अधिक दूर नहीं है पर मार्ग बहुत दुर्गम है |हम तो अपनी वैन से जारहे थे |प्रातःकालीन दृश्य राह के इतने सुन्दर थे कि हर जगह रुकने का मन होता था| लगभग दो घंटे बाद रुक कर स्नान ध्यान किया |हमारे साथ ही राह के समकक्ष नदी कल कल करती आगे बढ़ रही थी |नदी किनारे जहां रुके वहां बहुत सुन्दर दृश्य था |मन हुआ क्यूँ न कपडे धो लिए जाएं |जल्दी से कपड़ों को निकाला और धोबीघाट लगा लिया |हवा में बहुत जल्दी वे सूख भी गए |जल्दी जल्दी खाना खाया और आगे की और रवाना हुए |

गौरी कुंड पहुंचाते शाम हो गई |हमने एक दिन वहीं रुकने का प्रोग्राम बनाया और वहां से कुंड देखने चले गए |मौसम कुछ अधिक ही ठंडा था |दूसरे दिन सुबह हम स्टेंड पर पहुंचे तब तक बहुत से लोग तो रवाना भी हो चुके थे |वहां से एक और नए अनुभव के लिए घोड़ों पर सवारी करनी थी |घोड़ो पर सवारी का भी पहला ही तजुर्वा था |वहां पहुँच कर अलग अलग घोड़ों पर सवार हुए |रास्ते में दो घंटे बाद राम चट्टी पर पर रुके वहां

नाश्ता किया |तब तक  घोड़ों ने भी आराम कर लिया |

जब पुल के इस पार ही थे हलकी बारिश प्रारम्भ होगई थी साथ में रुई के सामान बर्फ भी गिरने लगी थी |

 |सब  ने बरसाती से अपने को ढांक रखा था इस कारण गीले नहीं हुए | जाते ही दर्शन सरलता  से हो गए और जल्दी ही बापिस लौटने की जरूरत को समझ अपने अपने घोड़ों पर सवार हुए और रवाना हुए |पर इतने अधिक थके कि उस थकान को अभी भी भूल नहीं पाए हैं |जाते समय सब जोर जोर से नारे लगा रहे थे

“जय केदार नाथ की “ |जोश भरपूर था पर जब लौटे आवाज इतनी कम थी कि पास वाले भी बहुत कठिनाई से सुन पा रहे थे |

४-५ घंटे का पौनी घोड़ों का सफर कोई मजाक नहीं था |शाम होते होते हम बापिस गौरी कुंड पहुँच गए थे |पर यह यात्रा भी  यादगार  रही |जैसे ही हरिद्वार आया |होटल की राह पकड़ी |रात भर ऐसे सोए कि सुबह कब हो गई पता ही नहीं चला |सीधे स्टेशन का रुख लिया और उज्जैन के लिए रवाना होगए |

यह हुआ अंत हमारी पहली यात्रा का |

आशा

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

  यात्रा विवरण (क्रमांक ३)

ऋषिकेश से जल्दी ही चल दिए क्यों कि अब बहुत लम्बी यात्रा करानी थी |रास्ता बहुत सकरा था |बेहद चढ़ाई थी |कभी तो ऊपर से आती बसों को पहले निकालने के लिए ऊपर जाती बसों को रुकना पड़ता था |जब वे बसे निकल जातीं तब नीचे रोके गए वाहनों को जाने दिया जाता था |पर दृश्य बहुत मनोरम होते थे|कहीं कहीं तो नीचे झांक कर देखते तो भय सा ने लगता था |कहीं ठण्ड  लगती तब स्वेटर का सहारा लेना पड़ता |

वेन की गति धीमी रखने को कहा तब ड्राइवर ने कहा की पहुँचते पहुंचते रात हो जाएगी |आपको कहीं रात में रुकना पडेगा |जैसेतैसे रात को ९ बजे रूद्र प्रयाग पहुंचे |अब समय अधिक हो जाने के कारण रात में कहाँ 

रुकें यह समस्या आई |खैर एक व्यक्ति ने बताया कि अलखनंदा नदी के किनारे एक नया मकान बना  है

वहां आप रुक सकते हैं |मैं आपको ठहराने की व्यवस्था कर देता हूँ |

हम लोग उसके साथ चल दिए |नदी के ठीक ऊपर एक कमरे में फर्श बिछा कर सभी लेट गए |पहले तो नदी के बहाने की तेज आवाज सुनते रहे फिर थकान के कारण नींद आने लगी पर हलकी सी झपकी लगी थी कि

खटमलों ने अटक करना प्रारम्भ कर दिया \मैंने तो रात भर जाग कर ही काट दी |सुबह ही वह स्थान छोड़ दिया और आगे  बढ़ चले |अब तक बहुत थकान होने लगी थी |जिधर नजर जाती थी उधर ही बर्फ दिखाई देती थी |ठण्ड भी अपना कमाल दिखा रही थी |बहुत ऊंचाई पर पहुँच गए थे |

एक ने हाथ दिखाया और पूंछा पीछे कितनी गाड़ी आ रही हैं |उनमें कितनी मूर्तियाँ हैं |हमारी समझ से परे थी उसकी बातें पर ड्राइवर समझ गया |उसने कहा एक आदि गाड़ी है और उसमें भी मूर्तियाँ कम ही हैं |वह व्यक्ति मुंह लटका कर चल दिया

शाम होते ही हम अपने गंतव्य के बस अड्डे पर थे |वहां भी जगह जगह पर बर्फ पड़ी हुई थी |वह व्यक्ति जो रास्ते में मिलाता हमारी वेंन  के निकट आ कर खड़ा हो गया और पूंछने लगाआप कहाँ जाएंगे |हमने कहा काली कमली वाले की धर्मशाला में |उसंने बताया ठीक मंदिर के पास ही एक रहने की व्यवस्था है |यदि आप को पसंद आए |हम इतने थक गए थे कि वहीं चल दिए |एक कमरे में ठहरे जिसके दरवाजे को भी बर्फ हटा कर खोला गया था |

प्रातःकाल जल्दी उठे |एक कनस्तर गर्म पानी मिल गया |झटपट नहाकर तैयार हुए |और दर्शन के लिए निकले |थोड़ी दूरी पार करने के बाद एक पुल को पार  किया नीचे अलखनंदा बहुत तीब्र गति से बह रही थी |पुल पार  करते ही मंदिर की ओर जाने वाला रास्ता दिखने लगा |चेहरा प्रसन्नता से  खिल उठा | उस दिन भीड़ नहीं थी इस कारण बहुत सरलता से दर्शन हो गए |फिर दोपहर और शाम को भी दर्शन किये और दूसरे दिन की जाने की तैयारी में जुट गए |अब अगला पड़ाव था केदार नाथ का |

(क्रमशः)

आशा

 


 

Thursday, November 5, 2020

सब्र का फल मीठा - ख्याल वही सब से ज्यादा रख सकता है जो सबसे अधिक प्यार करता हो |दिखावे से दूर हो | नफरत की कोई सीमा नहीं है| यह जड़ से कभी समाप्त नहीं होती| कहीं इसके अंश छिपे रह ही जाते हैं |समय असमय उभार कर आ ही जाते है |दिल से इसे कभी मिटाया नहीं जा सकता |पर इससे दूरी बनाकर चला जाए यही इसका सरल उपाय है |जिस रास्ते जाना न हो उस ओर का रुख ही क्यों किया जाए |जब प्यार से जंग जीती जा सकती है तब इधर उधर क्यूं मन डोले | पर हर कार्य समय माँगता है |समय से पहले कुछ भी नहीं मिलता |तभी कहा जाता है सब्र का फल मीठा होता है |

Tuesday, November 3, 2020

४-आस,प्यास,भूख .नींद
एक राजा था| उसका एक बेटा था |इकलौता बेटा
लाड़प्यार में बिगड़ने लगा |राजा ने बहुत परेशान हो कर अपने मंत्री से सलाह
मांगी |उन्होंने कहा कि राजकुमार को घर से निकाल दीजिये |जब खुद के पैरों पर खडा होगा अपने आप
सुधर जाएगा |राजाने बेटे को निकाल दिया |
राजकुमार अकेला चलने लगा |राह में जंगल था |उसके पैर में एक काँटा चुभ
गया |जैसे ही वह काँटा निकालने के लिए झुका उसने चार महिलाओं को आपस में झगड़ते देखा |उससे रहा नहीं गया |आपस में झगड़ने का कारण
जानना चाहा |पहली महिला ने अपना नाम 'प्यास' बताया |राज कुमार ने कुछ सोचा और कहा प्यास का क्या जब प्यास लगे कहीं का भी पानी पीया जा सकता है नही मैंने आपको सलाम नहीं किया है |
फिर वह दूसरी की और मुखातिब हुआ उसने अपना नाम 'भूख 'बताया |वह सोच रहा था कहने लगा " भूख जब लगती है कुछ भी खा कर शान्ति मिल जाती है "|
अब तीसरी से नाम जानना चाहा |उसने अपना नाम 'नींद' बताया |
राज कुमार ने सोच कर कहा नींद तो चाहे जहां आ जाती है |उसको किसी आलीशान बिस्तर की आवश्यकता नहीं होती |
चौथी ने अपना नाम 'आस'बताया |राजकुमार ने झुक कर उसे सलाम किया और
कहा "आस् माता तुम्हें मेरा प्रणाम |आस पर तो सारी दुनिया निर्भर है |
वास्तव् में वे देवियाँ थीं और राज कुमार की परिक्षा लेने आई थीं |
चारों ने राजकुमार को खूब आशीर्वाद दिया और अंतर्ध्यान हो गईं |
आगे गया तो कुछ लोग आपस में किसी स्वयंबर की बात कर रहे थे |उसने
सोचा क्यों न वह भी वहां जाए और उस में भाग ले |वह भी उन लोगों के साथ चल दिया |आयोजन बहुत भव्य था |पर राजा ने एक शर्त रखी थी |पंडाल में बीच में एक घूमती मछली टागी गई थी |जो भी उस की आँख पर
निशाना लगाएगा उससे ही राज कुमारी की शादी होगी |
पहले ही बाण से सही निशाना लगाया और राज कुमारी से ब्याह ख़ुशी से संपन्न हुआ |राजा इस लिए खुश था कि बेटी से जुदाई नहीं सहनी पडीं |
जब पहली करवा चौथ आई राज कुमारी ने बायना निकाला पर धोवन ने उसे अस्वीकार कर दिया यह कहते हुए की जिसके कोई परिवार न हो उसका दिया वह नहीं लेती |राज कुमारी बहुत रोई और जिद्द कर बैठी किजब अपनी ससुराल नहीं जाएगी तब तक अन्न जल भी ग्रहण नहीं करेगी |राजा के पास समाचार पहुंचा
उन्होंने बेटी की बिदाई बहुत धूमधाम से की |राज कुमार अपने राज्य में पहुंचा
तब तक राजा वृद्ध हो चुका था |उसने सोचा कि किसी राजा ने चढ़ाई की है |पर जब बेटे ने रथ से उतर कर पैर छुए उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा |
राजकुमार और बहू को देख मा का आँचल दूध की धार से भर गया |
राजा राजपाठ बेटे को सोंप तीर्थाटन को चला गया |बहुत समय तक राजकुमार अपनी पत्नी सहित कुशलता से राज करता रहा |प्रजा बहुत खुशहाल रही |
आशा

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एक कहानी तुलसी की

एक गाँव में तुलसी नाम की एक महिला रहती थी | वह रोज अपने आँगन में लगी तुलसी पर जल चढ़ाती थी |
जब वह पूजन करती थी तब वह भगवान से प्रार्थना करती थी कि यदि वह मरे तब उसे भगवान विष्णु का
कन्धा मिले |

एक रात वह अचानक चल बसी | आसपास के सभी लोग एकत्र हो कर उसे चक्रतीर्थ ले जाने की तैयारी
करने लगे | जब उसकी अर्थी तैयार की जा रही थी लागों ने पाया कि उसे उठाना असम्भव है | वह पत्थर
की  तरह भारी हो गई थी |
उधर विष्णु लोक में जोर जोर से घंटे बजने लगे | उस समय विष्णु जी शेष शैया पर विश्राम कर रहे थे |
लक्ष्मीजी उनके पैर दबा रहीं थीं | घंटों की आवाज से विष्णु जी विचलित हो उठे | लक्ष्मी जी ने परेशानी का
कारण जानना चाहा | भगवान ने कहा मुझे मेरा कोई भक्त बुला रहा है |मुझे अभी वहाँ जाना होगा |
हरी ने एक बालक का रूप धरा व वहाँ जा पहुँचे | वहाँ जा कर उसे अपना कन्धा दिया |जैसे ही भगबान आशा का स्पर्श हुआ अर्थी एकदम हल्की हो गयी और महिला की मुक्ति हो गई |