उलझन सुलझे ना -
बहुत थक गए थे |जैसे तैसे घर आए और निढाल हो बिस्तर पर लेटने लगे |किसी ने टोका अरे कम से कम हाथ मुंह तो धो लेते |बहुत बेमन से उठे व् कपड़े बदल कर फिर खाट की ओर बढ़ने लगे |
“अरे पहले खाना खा लीजिये फिर सोना”उनके कानों में आवाज गूंजी |निढाल से उठे और टेवल पर बैठ गए |सामने आई थाली को बहुत गौर से देखा और उसे खसकाते हुए बोले मुझे भूख नहीं है |
बिना कुछ खाए फिर से आँखें मूँद कर लेट गए |न जाने कब नींद आगई पता ही नहीं चला |
मन की उथलपुथल किससे कहते |दूसरे दिन सिम्मी ने पूंछा ऐसा क्या हुआ जो कल आपने खाना तक नहीं खाया ना ही टी.वी.देखा |
बहुत उचाट मन से वे बोले दुनिया बहुत अजीबोगरीब है मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता यहाँ |
अच्छाई का बदला भी बुराई से मिलता है |
अच्छाई की परख का कोई पैमाना नहीं है जिससे उसकी परख हो सके |मैं उलझनों में फंसा हुआ हूँ
सोचता हूँ इस संसार से कैसे निवटा जाए |
कोई मददगार नहीं होता |अपने भी गैरों सा वर्ताव करते हैं |कोई भी बात हो खामोश ही बने रहते हैं |जब भी सोचता हूँ मुझे अपनों और परायों में अंतर नजर नहीं आता और मेरा मन उद्विग्न हो जाता है |कुछ अंतराल के बाद भी वही बातें मेरे दिमाग पर इस तरह हावी रहती हैं | सोच नहीं पाता कि वे हकीकत थीं या सपना |
आशा