अमृत कलश

Sunday, September 18, 2011

पूसी और मिन्नी


पूसी मिन्नी नाम एक संग
दो बिल्ली रहती थीं ,
सुख दुःख जो भी पड़ता सर पर
एक साथ सहती थीं |
मिन्नी थी चालाक बहुत
थी पूसी भोली भाली ,
सारे घर की करती थीं
वे चूहों से रखवाली |
शरदपूर्णिमा के उत्सव का
जब था अवसर आया ,
श्री खंड का भोग बना कर
मालिक ने रखवाया |
ऊपर तक था भरा हुआ
काँसे का बड़ा कटोरा ,
पूसी मिन्नी दोनों का
ललचाया हृदय चटोरा |
मालिक के सो जाने पर
खाने की उनने ठानी ,
पर मिन्नी ने चालाकी से
पूसी की न मानी |
दोनों ने तरकीब चली
ले गईं कटोरा बाहर ,
एक महल की खिड़की पर
रख दिया उसे ले जा कर |
कुछ दिन बीते मिन्नी बोली
दीदी मैं जाऊँगी ,
मौसी के घर हुआ लाल है
देख उसे आऊँगी |
यह कह पहुँची वहाँ
छिपाया जहाँ कटोरा जा कर ,
ऊपर ऊपर चट करके
फिर कहा लौट यह आकर |
देखो दीदी उसके सर पर
बाल नहीं हैं बिलकुल ,
सर चट नाम धरा है इससे
हम सब ने मिलजुल कर |
कुछ दिन बीतेफिर मिन्नी ने
कहा मुझे जाना है ,
पहले पहल बनी माँ बहना
उसके घर खाना है |
यों कह गयी महल में
आधा किया कटोरा खाली ,
पोंछ पाँछ मुँह पहुँची घर पर
कहा बजा कर ताली |
दीदी मेरा नया भांजा
सुन्दर बहुत हुआ है ,
अधचट नाम धरा है हमने
करके बहुत दुआ है |
पूसी चौंकी ऐसा अब तक
नाम सुना न देखा ,
अब तक नहीं किसी पुस्तक में
पाया इसका लेखा |
एक दिन सहसा आ बाहर से
मिन्नी बोली उससे ,
अभी सहेली के घर से
आ गया बुलावा फिर से |
उसको अपनी लड़की के
लड़के का करना चटना ,
नामकरण भी हुआ न अब तक
उसको भी है करना |
दौड़ी गयी महल में यह कह
किया कटोरा खाली ,
लौटी बहुत देर से
यह फिर बात बनाई जाली |
जीजी सब चट नाम धरा है
सबने उसका भाई ,
इस विचित्र नाम को सुन कर
पूसी मन मुस्काई |
इसी तरह से धीरे-धीरे
गर्मी के दिन आये ,
खोजे भी जब मिला न भोजन
चूहे भी बिलमाये |
तब पूसी ने कहा चलो
श्री खंड उठा लायें हम ,
उसको खा कर मौज मनायें
प्रभु का गुण गायें हम |
जा कर देख कटोरा खाली
किया अचम्भा भारी ,
मिन्नी को चुप देख समझ
वह गयी दुष्टता सारी |
मिन्नी से बोली अब मैंने
तेरा मतलब जाना ,
सिर चट, अधचट, सब चट का भी
गया भेद पहचाना |
ऐसी दगाबाज को अब हम
साथ नहीं रक्खेंगे ,
जो ऐसों का साथ करेंगे
वे भी फल चक्खेंगे |
इतना कह कर मिन्नी से
पूसी चल पड़ी रिसानी ,
दगा बाज से बचो सदा ही
बच्चों खतम कहानी |


किरण






















Friday, September 16, 2011

बच्चों से

बच्चों सुबह हुआ है न्यारा
छोड़ो अपना बिस्तर प्यारा
सभी बड़ों को शीष झुकाओ
उनसे अच्छी शिक्षा पाओ |
दाँत माँज कर मुँह को धोलो
करो कलेवा बस्ता खोलो
पाठ पढ़ो फिर चित्त लगा कर
जाओ पढ़ने रोटी खा कर |
सादर करो प्रणाम गुरू को
याद करो जो कहें उसी को
यदि ऐसा तुम नित्य करोगे
किसी न दुःख से कभी डरोगे |
सभी करेंगे मान तुम्हारा
जग में होगा नाम तुम्हारा |

किरण

Friday, September 9, 2011

नन्हे फूल


ये हैं नन्हें नन्हें फूल
कभी न इनको जाना भूल
फूल बगीचे में खिलते हैं
बच्चे घर घर में मिलते हैं |
उनकी खुशबू मन को भाती
इनकी चंचलता हर्षाती
वे खिलते हैं औरों के हित
इनकी सुख पहुंचाती स्मित |
जब ये बच्चे बड़े बनेंगे
वीर जवाहर बापू होंगे
इन पर भारत गर्व करेगा
सदा सत्य आशीष वरेगा |

किरण

Sunday, September 4, 2011

एम् एल ए बनने की आकांक्षा

जो मैं एम् एल ए बन पाता 
तो चाचा नेहरू के साथ जा 
मैं गौरव से हाथ मिलाता 
जो मैं एम् एल ए बन पाता |
लोग मुझे भी शीश झुकाते 
घर पर आ कर टेक्स चुकाते 
आदर से नित मुझे बुलाते 
गंगा जल से पैर धुलाते |
मैं हर एक पत्र में अपना 
सुन्दर एक फोटो छपवाता 
नित नए उद्बोधन देता 
नित्य नए उदघाटन करता |
नित्य नए झंडे फहराता 
लंबी चौड़ी बात बनाता 
झूट मूटवादे कर कर के 
अखवारों में नाम कमाता |
नई नई स्कीमें रचता 
रोज नए आश्वासन देता 
कार  सड़क पर नित दौडाता 
जो मैं एम् एल ए बन पाता |
दुनिया को मैं यह दिखलाता 
बहुत व्यस्त हूँ चैन न बिलकुल
रोटी नहीं वक्त पर खाता
जो मैं एम् एल ए बन पाता |
बड़े बड़े नगरों में जाता 
देश विदेश घूम कर आता 
लन्दन अमरीका भी जाता 
अच्छे अच्छे माल उडाता 
इस गांधी टोपी के बल से 
जग के सारे सुख पा जाता |
हाथ  मार दो चार फावड़े के 
मैं श्रम दानी कहलाता 
बंजर भूमि दान में दे कर 
मैं भूदानी भी बन जाता|
हरिजन सेवक संघ खोल कर 
मैं बापू का भक्त कहाता 
जो मैं एम् एल ए बना पाता |
किरण