जो मैं एम् एल ए बन पाता
तो चाचा नेहरू के साथ जा
मैं गौरव से हाथ मिलाता
जो मैं एम् एल ए बन पाता |
लोग मुझे भी शीश झुकाते
घर पर आ कर टेक्स चुकाते
आदर से नित मुझे बुलाते
गंगा जल से पैर धुलाते |
मैं हर एक पत्र में अपना
सुन्दर एक फोटो छपवाता
नित नए उद्बोधन देता
नित्य नए उदघाटन करता |
नित्य नए झंडे फहराता
लंबी चौड़ी बात बनाता
झूट मूटवादे कर कर के
अखवारों में नाम कमाता |
नई नई स्कीमें रचता
रोज नए आश्वासन देता
कार सड़क पर नित दौडाता
जो मैं एम् एल ए बन पाता |
दुनिया को मैं यह दिखलाता
बहुत व्यस्त हूँ चैन न बिलकुल
रोटी नहीं वक्त पर खाता
जो मैं एम् एल ए बन पाता |
बड़े बड़े नगरों में जाता
देश विदेश घूम कर आता
लन्दन अमरीका भी जाता
अच्छे अच्छे माल उडाता
इस गांधी टोपी के बल से
जग के सारे सुख पा जाता |
हाथ मार दो चार फावड़े के
मैं श्रम दानी कहलाता
बंजर भूमि दान में दे कर
मैं भूदानी भी बन जाता|
हरिजन सेवक संघ खोल कर
मैं बापू का भक्त कहाता
जो मैं एम् एल ए बना पाता |
किरण
जिस समय इस रचना का सृजन हुआ था तब भी झूठे वादे होते थे ??????...
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति
नेताओं के झूठे वादों की परम्परा कितनी पुरानी है इसीसे ज्ञात होता है ! तब का बोया हुआ भ्रष्टाचार का यह विषैला पौधा अब मजबूत पेड़ बन गया है और इसकी जड़ें इतनी गहरी हो गयी हैं कि अब इसे उखाडना असाध्य हो गया है ! यह रचना आज भी उतनी ही प्रासंगिक है ! बहुत सुन्दर ! हास्य रस में लपेट कर नेताओं की खूब कलई खोली है !
ReplyDeleteनेता लोग तब भी भ्रष्ट थे आज भी भ्रष्ट हैं|
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