पूसी मिन्नी नाम एक संग
दो बिल्ली रहती थीं ,
सुख दुःख जो भी पड़ता सर पर
एक साथ सहती थीं |
मिन्नी थी चालाक बहुत
थी पूसी भोली भाली ,
सारे घर की करती थीं
वे चूहों से रखवाली |
शरदपूर्णिमा के उत्सव का
जब था अवसर आया ,
श्री खंड का भोग बना कर
मालिक ने रखवाया |
ऊपर तक था भरा हुआ
काँसे का बड़ा कटोरा ,
पूसी मिन्नी दोनों का
ललचाया हृदय चटोरा |
मालिक के सो जाने पर
खाने की उनने ठानी ,
पर मिन्नी ने चालाकी से
पूसी की न मानी |
दोनों ने तरकीब चली
ले गईं कटोरा बाहर ,
एक महल की खिड़की पर
रख दिया उसे ले जा कर |
कुछ दिन बीते मिन्नी बोली
दीदी मैं जाऊँगी ,
मौसी के घर हुआ लाल है
देख उसे आऊँगी |
यह कह पहुँची वहाँ
छिपाया जहाँ कटोरा जा कर ,
ऊपर ऊपर चट करके
फिर कहा लौट यह आकर |
देखो दीदी उसके सर पर
बाल नहीं हैं बिलकुल ,
सर चट नाम धरा है इससे
हम सब ने मिलजुल कर |
कुछ दिन बीतेफिर मिन्नी ने
कहा मुझे जाना है ,
पहले पहल बनी माँ बहना
उसके घर खाना है |
यों कह गयी महल में
आधा किया कटोरा खाली ,
पोंछ पाँछ मुँह पहुँची घर पर
कहा बजा कर ताली |
दीदी मेरा नया भांजा
सुन्दर बहुत हुआ है ,
अधचट नाम धरा है हमने
करके बहुत दुआ है |
पूसी चौंकी ऐसा अब तक
नाम सुना न देखा ,
अब तक नहीं किसी पुस्तक में
पाया इसका लेखा |
एक दिन सहसा आ बाहर से
मिन्नी बोली उससे ,
अभी सहेली के घर से
आ गया बुलावा फिर से |
उसको अपनी लड़की के
लड़के का करना चटना ,
नामकरण भी हुआ न अब तक
उसको भी है करना |
दौड़ी गयी महल में यह कह
किया कटोरा खाली ,
लौटी बहुत देर से
यह फिर बात बनाई जाली |
जीजी सब चट नाम धरा है
सबने उसका भाई ,
इस विचित्र नाम को सुन कर
पूसी मन मुस्काई |
इसी तरह से धीरे-धीरे
गर्मी के दिन आये ,
खोजे भी जब मिला न भोजन
चूहे भी बिलमाये |
तब पूसी ने कहा चलो
श्री खंड उठा लायें हम ,
उसको खा कर मौज मनायें
प्रभु का गुण गायें हम |
जा कर देख कटोरा खाली
किया अचम्भा भारी ,
मिन्नी को चुप देख समझ
वह गयी दुष्टता सारी |
मिन्नी से बोली अब मैंने
तेरा मतलब जाना ,
सिर चट, अधचट, सब चट का भी
गया भेद पहचाना |
ऐसी दगाबाज को अब हम
साथ नहीं रक्खेंगे ,
जो ऐसों का साथ करेंगे
वे भी फल चक्खेंगे |
इतना कह कर मिन्नी से
पूसी चल पड़ी रिसानी ,
दगा बाज से बचो सदा ही
बच्चों खतम कहानी |
किरण
दो बिल्ली रहती थीं ,
सुख दुःख जो भी पड़ता सर पर
एक साथ सहती थीं |
मिन्नी थी चालाक बहुत
थी पूसी भोली भाली ,
सारे घर की करती थीं
वे चूहों से रखवाली |
शरदपूर्णिमा के उत्सव का
जब था अवसर आया ,
श्री खंड का भोग बना कर
मालिक ने रखवाया |
ऊपर तक था भरा हुआ
काँसे का बड़ा कटोरा ,
पूसी मिन्नी दोनों का
ललचाया हृदय चटोरा |
मालिक के सो जाने पर
खाने की उनने ठानी ,
पर मिन्नी ने चालाकी से
पूसी की न मानी |
दोनों ने तरकीब चली
ले गईं कटोरा बाहर ,
एक महल की खिड़की पर
रख दिया उसे ले जा कर |
कुछ दिन बीते मिन्नी बोली
दीदी मैं जाऊँगी ,
मौसी के घर हुआ लाल है
देख उसे आऊँगी |
यह कह पहुँची वहाँ
छिपाया जहाँ कटोरा जा कर ,
ऊपर ऊपर चट करके
फिर कहा लौट यह आकर |
देखो दीदी उसके सर पर
बाल नहीं हैं बिलकुल ,
सर चट नाम धरा है इससे
हम सब ने मिलजुल कर |
कुछ दिन बीतेफिर मिन्नी ने
कहा मुझे जाना है ,
पहले पहल बनी माँ बहना
उसके घर खाना है |
यों कह गयी महल में
आधा किया कटोरा खाली ,
पोंछ पाँछ मुँह पहुँची घर पर
कहा बजा कर ताली |
दीदी मेरा नया भांजा
सुन्दर बहुत हुआ है ,
अधचट नाम धरा है हमने
करके बहुत दुआ है |
पूसी चौंकी ऐसा अब तक
नाम सुना न देखा ,
अब तक नहीं किसी पुस्तक में
पाया इसका लेखा |
एक दिन सहसा आ बाहर से
मिन्नी बोली उससे ,
अभी सहेली के घर से
आ गया बुलावा फिर से |
उसको अपनी लड़की के
लड़के का करना चटना ,
नामकरण भी हुआ न अब तक
उसको भी है करना |
दौड़ी गयी महल में यह कह
किया कटोरा खाली ,
लौटी बहुत देर से
यह फिर बात बनाई जाली |
जीजी सब चट नाम धरा है
सबने उसका भाई ,
इस विचित्र नाम को सुन कर
पूसी मन मुस्काई |
इसी तरह से धीरे-धीरे
गर्मी के दिन आये ,
खोजे भी जब मिला न भोजन
चूहे भी बिलमाये |
तब पूसी ने कहा चलो
श्री खंड उठा लायें हम ,
उसको खा कर मौज मनायें
प्रभु का गुण गायें हम |
जा कर देख कटोरा खाली
किया अचम्भा भारी ,
मिन्नी को चुप देख समझ
वह गयी दुष्टता सारी |
मिन्नी से बोली अब मैंने
तेरा मतलब जाना ,
सिर चट, अधचट, सब चट का भी
गया भेद पहचाना |
ऐसी दगाबाज को अब हम
साथ नहीं रक्खेंगे ,
जो ऐसों का साथ करेंगे
वे भी फल चक्खेंगे |
इतना कह कर मिन्नी से
पूसी चल पड़ी रिसानी ,
दगा बाज से बचो सदा ही
बच्चों खतम कहानी |
किरण
बहुत ही खूबसूरत, रोचक एवं शिक्षाप्रद काव्यकथा ! पढ़ कर मन कितना आनंदित होअया है बताना मिश्किल है ! बहुत मज़ा आया ! मम्मी की इतनी अच्छी कहानी सुनवाने के लिये आपका बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteमैं इसे अपने भाँजे को आज ही सुनाऊँगा। बहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteसार्थक अभिव्यक्ति है...
ReplyDeleteआप लोगों का आभार इस ब्लॉग पर आने के लिए |
ReplyDeleteआशा
सार्थक रचना बाल मन के अन्तः करण को स्पर्श करती
ReplyDeleteशुभकामनायें !!!