अमृत कलश

Wednesday, August 1, 2012

राखी आई राखी आई 
घेवर फेनी की ऋतुआई 
रिमझिम बरस रहे है बादल 
चमक चमक बिजली करती छल 
रंग बिरंगे फूल खिले हैं 
पेड़ों को नव पात मिले हैं 
बन में मोर पपीहा बोले
कुहुक कुहुक कोमल रस घोले 
माता  ने रस्सी मंगवाई 
भैया ने पटली बनवाई 
बाबूजी  ले आए लहरिया 
और रेशमी जम्पर बढ़िया 
पड़ा  आम पर झूलाप्यारा 
जिस पर झूल रहा घर सारा 
सखी सहेली सब जुड़ आईं
हिल मिल खूब मल्हारें गईं 
सूत कात राखी बनवाई 
नारियल  और मिठाई लाई 
पान बताशे रोली चावल 
जलता दीपक रखा झिलमिल 
दादा भैया सब मिल आए 
बहनों को सौगातें लाए 
टीका करके राखी बांधी 
किया आरता साधें साधी
भाइयों  से आशीषें पाईं 
झोली  भर मोहरें ले आईं 
खुश खुश बहनें झूल रही हैं 
खिली कली सी फूल रही हैं 
जुग जुग जीवे  प्यारे भैया
हम लें उनकी सदा बलइयां |

डा.ज्ञानवती सक्सेना "किरण"