अमृत कलश

Monday, May 31, 2021

संस्मरण

 


बहुत पुरानी बात है जब मेरा बेटा कक्षा छह का छात्र था |सरस्वती शिशुमंदिर में पढ़ता था |दूसरे स्थानों से कुछ बच्चे आए थे |यहाँ के बच्चों के घर में उन्हें ठहराना था |सर ने कहा अपने अपने बच्चे छांट लो |

मेरे बेटे ने न जाने क्या सोचा?  एक छोटे से सुन्दर  बालक को चुन कर अपने साथ ले आया |बहुत खुश था अपने नन्हे से  महमान को पाकर |

जैसे ही ये घर आए वह बोला” पापा देखो मैं अपने साथ किसे लाया हूँ “|उसका परिचय करवाया और यह भी जोड़ दिया “मैंने तो छोटे बच्चे को ही चुना अपना घर छोटा है | सर तो बहुत बड़े बच्चे को मेरे साथ भेज रहे थे | मैंने मना कर दिया “मुझे यही बालक पसंद आया “||वह  एक सप्ताह तक हमारे यहाँ रहा |पता ही नहीं चला कोई नया व्यक्ति घर आया था |इतना घुलमिल गया था कि जब गया मुझे भी बहुत खालीपन लगा था |यह किस कारण बच्चों का आना जाना होता आवश्यक तभी समझ में आया |यह पहला प्रयास था स्कूल का बच्चों में सामाजिकताको पनपाने का |बहुत सफल प्रयास था मित्रवत व्यवहार पनपाने का |

आशा 

आशा

श्री मती आशा

Thursday, May 27, 2021

स्वप्न क्या कहे

 

नींद खुलते ही स्वप्न कहीं खो जाते हैं |हलकी सी यादें मस्तिष्क में रह जाती हैं |बार बार मन को कचोटती हैं |कभी लगता है क्या कोई हादसा सर उठाए खड़ा है?

या कोई शुभ सन्देश मिलने वाला है |मन की शान्ति भंग हो जाती है |क्या इसका कोई हल है ?किस से पूंछा जाए सोच नहीं पाती |कभी यह मन का बहम नजर आता है |मन बेचैन  होने लगता है| स्वप्नों से मन को भय कैसा ?

आशा 

Sunday, May 23, 2021

कोरोना की बापिसी

 

फिर से लौक डाउन लगा| माहोल फिर दिखाई देने लगा पहले जैसा |

या युं कहूं कि पहले से भी बद्तर |  इसबार कोरोना का जोर पहले से अधिक था |आए दिन सुनाई देता था यह गया वह गया| पूरे अखवार और न्यूज भरे  रहते कोरोना से  |

अब लोग भी पहले से अधिक सतर्क थे |सारे नियम पाल पाल कर थक गए लोग और भी भयभीत हो गए |जब अपना कोई जाता है क्या महसूस होता है ?यह तो वही जानते  उन पर क्या बीती जिनने उसे भोगा | पूरे पूरे धर भेट हो गए  इस महामारी के |

रोज कमाने खाने वालों का तो बुरा हाल हुआ है |दो समय की रोटी भी नसीब नहीं होती | इस का कोई हल यदि नहीं निकला हालात बिगड़ते

जाएंगे |बेरोजगारी बढ़ेगी |अब तीसरी पारी कोरोना की सही न जा सकेगी|

आशा

 

 

Friday, May 21, 2021

एकादशी


 

जब हुआ समुद्र मंथन  

महादेव ने 

  हलाहल पान किया

दी जगह विष को

अपने  कंठ में  |

निकले चौदह रत्न 

और बहुत कुछ 

 अमृत से भरा

 घट भी निकला

दानवों  ने जिसे

  झपटना चाहा   |

 मोहिनी  एकादशी को 

 विष्णु ने

 रूप धरा मोहिनी 

घट अमृत को

 छीना दानवों से  

सब देवों को 

अमृत पान कराया |

दानवों  से 

उन्हें  बचाया 

देवों को अजर 

अमर बनाया |

आशा