अमृत कलश

Tuesday, December 27, 2011

फैशन का भूत

मुछ मुड़ाफैशन चला है 
आज कल इस देश में 
मर्द भी रहने लगे हैं
औरतों के वेश में |
आँखों पर चश्मा चढाया 
और लाली औठ पर
फूल कढ़वाने लगे हैं 
मर्द अपने कोट पर |
है अगर चूड़ी नहीं तो
है कलाई पर घड़ी
मांग तिरछी भाल पर है
रिंग उंगली में पड़ी |
रंग बिरंगे वस्त्र पहने 
एंठते हर चाल पर 
उस्तरे से छील दाढ़ी
पाउडर है गाल पर |
पैर में सेंडिल सुहाने 
कमर पेटी से कसी 
मटक चलते अनोखी 
चाल मस्ती से भरी|
देखलो  दोस्तों 
मैं कुछ कहता नहीं 
आज नर नारी बना है 
बिन कहे रहता नहीं |
किरण


Thursday, December 22, 2011

पहेलियाँ

बूझो तो जाने
१-
चाटुकार है वह गरवीला ,बड़ी निराली उसकी लीला
जैसा देखे तुरत बतावे ,हर घर में वह आदर पावे |
२-
आगे आगे आप चले तो पीछे पीछे लाल
टूटे हुए अंग को जोड़े देखो सखी कमाल |


Sunday, December 18, 2011

पितृ भक्त देव व्रत(भाग४))

अंतिम किश्त :-
पर यह प्रण करना होगा राजन इसके सूत सारे
पावेगे राज्य अधिकार ,कोइ न और पग धारे |
चिंतित हो राजा घर लौटे ,खान पान सब ही छोड़े
राज काज सब छूट गए ,सुख चैन गए मुख को मोड़े|
देख पिटा की दशा ,देव ब्रत आ कर उनसे यह बोले
कौन कष्ट है पिता बताएं ,निज सूत की शक्ति तोलें |
सुन कर सूत के वचन ,लाज से राजा कुछ न कह सके
और देवव्रत उनकी दशा देख कर ,चुप हो रह न सके |
कुछ मंत्री से हाल सुना ,फिर दौड़े जमुना तट पर आए
राजा की चिंता का कारण जान हृदय में सकुचाए |
तब कुमार ने कहा "बात यह नहीं बड़ी भारी
कुछ भी पितृ देव से नहीं अधिक है ,और वास्तु प्यारी कुछ भी "|
मैंने राज पाठ सब छोड़ा ,जाओ कन्या को ले आओ
राजा को कर भेट जगत में ,शान्ति ,कीर्ति ,यश ,सुख पाओ |
है इतनी ही नहीं बात ,इससे भी आगे है राजा
पुत्र करेंगे राज तुम्हारे ,रोकोगे कैसे राजा |
सुन निषाद के वचन ,देवव्रत ने माता का ध्यान किया
और स्वस्थ हो शांत चित्त से ,सब शंका का ट्रां किया |
देव गंधर्व और मनुज ,पशु पक्षी सब आज सुनें
यह गंगा सूत प्रण करता है ,इसे ध्यान से सभी सुनें |
जब तक सूर्य चंद्र ज्योति हैं ,गंगा जमुना जल धारा
हो अस्तित्व धरा का जब तक ,देव राज्य जग पर प्यारा |
साक्षी हों वे देव पितृ सब ,साक्श्री हो गंगा मैया
राज्य करेंगे इस पृथ्वी पर ,सत्य वती के सुत मैया |
मैं आजन्म ब्रह्मचारी रह ,सेवक भर कहलाऊंगा
उनकी रक्षा में अपना तन मन भी भेट चढाऊंगा |
धन्य धन्य सब कह उठे सभी ,फूलों की फिर बरसात हुई
भीष्म प्रतिज्ञा भीष्म देव की ,थी घर घ की बात हुई |
यही नहीं जब भीष्म पितामह शर शैया पर सोए थे
उनके शव पर वासुदेव भी ,हिचकी भर भर रोए थे |
अब ऐसे सुत कहाँ मिलेंगे ,पितृ भक्त पंडित ज्ञानी
दृढ प्रतिज्ञ सर्वज्ञ वेद विद ,निज कुल रक्षा के मानी |
धन्य भाग्य थे भारत भू के ,ऐसे वीर यहाँ आए ,
धन्य भाग्य थे उस जननी के ,ऐसे सुत जिसने पाए |
किरण







Tuesday, December 13, 2011

पितृ भक्त देव व्रत(भाग ३ )

छत्तीस वर्ष बीतने पर
गंगा तट आ नृप ने देखा
है अवरुद्ध धार जल की
बहती गंगा ज्यों कृष् रेखा |
लगे खोजने राजा कारण
दिव्य पुरुष देखा उनने
निज वाणों से राह रोक दी
गंगा जी की भी जिनने |
ज्यों ही द्रष्टि पड़ी राजा पर
युवक तिरोहित हुआ वहीं
पाया नहीं निशाँ उन्होंने
बहुत खोज की बृथा रही |
तब गंगा से कहा नृपति ने
उस कुमार को फिर लादो
एक बार ही ओ कल्याणी
वह सुन्दर नर दिखलादो |
निज सूत का दक्षिण कर गह कर
तब गंगा सन्मुख आई
राजा यह लो पुत्र तुम्हारा
कह कर थी वह मुसकाई |
धीर वीर ज्ञानी पंडित है
इसे न कुछ भी कमीं रही
यह कह सूत को सौप जान्हवी
तभी तिरोहित हुई वहीँ |
निज सूत को पा राजा हर्षित
हो कर राज महल आया
उसे बना युवराज प्रेम से
बहुत हृदय में हर्षाया |
गंगा सूत ये ही थे सुन्दर
जो देवब्व्रत कहलाए
करके भीषण प्रण ये ही फिर
भीष्म पितामंह कहलाए |
उनकी उसी प्रतिज्ञा की
अब कथा यहाँ पर आती है
जो द्वापर युग से अब तक
सत्पथ हमें बताती है |
यमुना के तट पर एक दिवस
शांतनु मृगया को गये जभी
एक विचित्र गंघ उनके
मानस में आ भर गयी तभी |
इसका कारण खोज रहे थे
तभी देखी सुन्दर बाला
जिसकी रूप राशि ने
नृप को मोहित कर डाला |
राजा बोले ए कल्याणी
तुम किसकी कन्या प्यारी
कौन तुम्हारा पिता
धन्य वह कौन तुम्हारी महतारी |
वह बोली यमुना तटवासी
धींवर की कन्या हूँ मैं
धर्म हेतु हूँ नाव चलाती
पार तुम्हें क्या कर दूं मैं |
नृप बोले मैं पास तुम्हारे
पितृ देव के जाता हूँ
तुम रानी बन जाओ हमारी
यह आज्ञा ले आता हूँ |
यह कह कुटिया पर आकर
धींवर से सब बात कही
वह प्रसन्न हो बोला राजन
बात तुम्हारी सही सभी |
क्रमशः-------

किरण



Wednesday, December 7, 2011

पितृ भक्त देवव्रत (भाग २)

महा प्रतापी शांतनु उस
राजा के पुत्र हुए ज्ञानी
कुरु कुल श्रेष्ठ कहाये
जिनकी सत्ता देवों ने मानी |
देखा जब चौथा पन आते
नृप प्रतीप सुत से बोले
राज्य करो तुम हे सुत ज्ञानी
देव मनुज भय से डोलें |
कर राज्याभिषेक नृपति
निज सुत का जंगल को आये
तप में रत रह प्राण त्याग कर
स्वर्गलोक में जा छाये !
एक दिवस आखेट खेलने
आये शांतनु गंगा तट |
देख पूर्व पति गंगा सन्मुख
आई नारी बन झटपट !
उसका सुन्दर रूप देख
शांतनु का मन था रीझ गया
यूँ न मुझे पाओगे राजा
यह कह हँसती रही जया !
मैं जो चाहूँ वही करूँगी
रोक नहीं पाओगे तुम
यदि रोकोगे चली जाऊँगी
फिर न मुझे पाओगे तुम |
दे सकते हो अगर वचन यह
तो यह शुभ संस्कार करो
मैं पत्नी हूँ देव तुम्हारी
चाहो तो स्वीकार करो !
दिया वचन राजा ने सुख से
ब्याह उसे फिर घर लाया
राज भवन मैं रौनक आई
जनता में आनंद छाया |
गंगा ने बरसों राजा की
सेवा में तनमन वारा
इसी समय में सात बार
वसुओं को गर्भ बीच धारा |
किन्तु जनमते ही उन सब का
था उसने उद्धार किया
निज वचनों को पूर्ण किया
उन सबको पार उतार दिया |
पुत्र आठवाँ होते ही
राजा बोले "अब न्याय करो
इसे मुझे अब देदो देवी
अब न अधिक अन्याय करो |"
"राजा तुमने वचन दिया था
मैं चाहूँ जो कर सकती हूँ
रोक न पाओगे तुम मुझ को
चाहूँ तो मैं मर सकती हूँ |
किन्तु तुम्हारे पास नहीं मैं
बिलकुल रहने पाऊँगी
निज सुत को भी पालन हित
अपने संग ले जाऊँगी |"
यह कह गंगा सुत का कर गह
गृह त्यागी बन चली गयी
शांतनु जैसे ज्ञानी की भी
यहाँ बुद्धि थी छली गयी |
-------क्रमशः








Sunday, December 4, 2011

पितृ भक्त देवव्रत (भाग एक )

एक समय था ऋषि वशिष्ट से
शापित वासु गण हो कर के
गंगा को आ कथा सुनाई
निज पापों को रो कर के |
गंगा ने तब कहा, "शोक को
छोड़ो ऐ वसु विज्ञानी
गर्भ धारिणी मृत्यु लोक में
बनूँ तुम्हारी मैं मानी |
फिर मैं तुमको श्राप ताप से
मुक्त उसी क्षण कर दूँगी
तुम निज गौरव लौटा पाओ
ऐसा साहस भर दूँगी |"
यह कह गंगा मृत्यु लोक में
निज आश्रम को लौट गई|
पौरव पति प्रतीप की भक्ति
देख हर्ष से चकित हुई
बोली, "राजन हो प्रसन्न
घर जाओ, सुत वर पाओगे |
मैं उसकी पत्नी होऊँगी
तुम सब सुख भर पाओगे |"


किरण