अंतिम किश्त :-
पर यह प्रण करना होगा राजन इसके सूत सारे
पावेगे राज्य अधिकार ,कोइ न और पग धारे |
चिंतित हो राजा घर लौटे ,खान पान सब ही छोड़े
राज काज सब छूट गए ,सुख चैन गए मुख को मोड़े|
देख पिटा की दशा ,देव ब्रत आ कर उनसे यह बोले
कौन कष्ट है पिता बताएं ,निज सूत की शक्ति तोलें |
सुन कर सूत के वचन ,लाज से राजा कुछ न कह सके
और देवव्रत उनकी दशा देख कर ,चुप हो रह न सके |
कुछ मंत्री से हाल सुना ,फिर दौड़े जमुना तट पर आए
राजा की चिंता का कारण जान हृदय में सकुचाए |
तब कुमार ने कहा "बात यह नहीं बड़ी भारी
कुछ भी पितृ देव से नहीं अधिक है ,और वास्तु प्यारी कुछ भी "|
मैंने राज पाठ सब छोड़ा ,जाओ कन्या को ले आओ
राजा को कर भेट जगत में ,शान्ति ,कीर्ति ,यश ,सुख पाओ |
है इतनी ही नहीं बात ,इससे भी आगे है राजा
पुत्र करेंगे राज तुम्हारे ,रोकोगे कैसे राजा |
सुन निषाद के वचन ,देवव्रत ने माता का ध्यान किया
और स्वस्थ हो शांत चित्त से ,सब शंका का ट्रां किया |
देव गंधर्व और मनुज ,पशु पक्षी सब आज सुनें
यह गंगा सूत प्रण करता है ,इसे ध्यान से सभी सुनें |
जब तक सूर्य चंद्र ज्योति हैं ,गंगा जमुना जल धारा
हो अस्तित्व धरा का जब तक ,देव राज्य जग पर प्यारा |
साक्षी हों वे देव पितृ सब ,साक्श्री हो गंगा मैया
राज्य करेंगे इस पृथ्वी पर ,सत्य वती के सुत मैया |
मैं आजन्म ब्रह्मचारी रह ,सेवक भर कहलाऊंगा
उनकी रक्षा में अपना तन मन भी भेट चढाऊंगा |
धन्य धन्य सब कह उठे सभी ,फूलों की फिर बरसात हुई
भीष्म प्रतिज्ञा भीष्म देव की ,थी घर घ की बात हुई |
यही नहीं जब भीष्म पितामह शर शैया पर सोए थे
उनके शव पर वासुदेव भी ,हिचकी भर भर रोए थे |
अब ऐसे सुत कहाँ मिलेंगे ,पितृ भक्त पंडित ज्ञानी
दृढ प्रतिज्ञ सर्वज्ञ वेद विद ,निज कुल रक्षा के मानी |
धन्य भाग्य थे भारत भू के ,ऐसे वीर यहाँ आए ,
धन्य भाग्य थे उस जननी के ,ऐसे सुत जिसने पाए |
किरण
पर यह प्रण करना होगा राजन इसके सूत सारे
पावेगे राज्य अधिकार ,कोइ न और पग धारे |
चिंतित हो राजा घर लौटे ,खान पान सब ही छोड़े
राज काज सब छूट गए ,सुख चैन गए मुख को मोड़े|
देख पिटा की दशा ,देव ब्रत आ कर उनसे यह बोले
कौन कष्ट है पिता बताएं ,निज सूत की शक्ति तोलें |
सुन कर सूत के वचन ,लाज से राजा कुछ न कह सके
और देवव्रत उनकी दशा देख कर ,चुप हो रह न सके |
कुछ मंत्री से हाल सुना ,फिर दौड़े जमुना तट पर आए
राजा की चिंता का कारण जान हृदय में सकुचाए |
तब कुमार ने कहा "बात यह नहीं बड़ी भारी
कुछ भी पितृ देव से नहीं अधिक है ,और वास्तु प्यारी कुछ भी "|
मैंने राज पाठ सब छोड़ा ,जाओ कन्या को ले आओ
राजा को कर भेट जगत में ,शान्ति ,कीर्ति ,यश ,सुख पाओ |
है इतनी ही नहीं बात ,इससे भी आगे है राजा
पुत्र करेंगे राज तुम्हारे ,रोकोगे कैसे राजा |
सुन निषाद के वचन ,देवव्रत ने माता का ध्यान किया
और स्वस्थ हो शांत चित्त से ,सब शंका का ट्रां किया |
देव गंधर्व और मनुज ,पशु पक्षी सब आज सुनें
यह गंगा सूत प्रण करता है ,इसे ध्यान से सभी सुनें |
जब तक सूर्य चंद्र ज्योति हैं ,गंगा जमुना जल धारा
हो अस्तित्व धरा का जब तक ,देव राज्य जग पर प्यारा |
साक्षी हों वे देव पितृ सब ,साक्श्री हो गंगा मैया
राज्य करेंगे इस पृथ्वी पर ,सत्य वती के सुत मैया |
मैं आजन्म ब्रह्मचारी रह ,सेवक भर कहलाऊंगा
उनकी रक्षा में अपना तन मन भी भेट चढाऊंगा |
धन्य धन्य सब कह उठे सभी ,फूलों की फिर बरसात हुई
भीष्म प्रतिज्ञा भीष्म देव की ,थी घर घ की बात हुई |
यही नहीं जब भीष्म पितामह शर शैया पर सोए थे
उनके शव पर वासुदेव भी ,हिचकी भर भर रोए थे |
अब ऐसे सुत कहाँ मिलेंगे ,पितृ भक्त पंडित ज्ञानी
दृढ प्रतिज्ञ सर्वज्ञ वेद विद ,निज कुल रक्षा के मानी |
धन्य भाग्य थे भारत भू के ,ऐसे वीर यहाँ आए ,
धन्य भाग्य थे उस जननी के ,ऐसे सुत जिसने पाए |
किरण
बहुत ही रोचकता से प्रसंग का समापन किया है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर समापन प्रस्तुति|
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगता है जब अपनी मम्मी की बहुत पुरानी रचनाएँ आप लोगों तक पहुंचाती हूँ |वंदनाजी और ऋताजी आप दोनों को धन्यवाद टिप्पणी करने के लिए |
ReplyDeleteआशा
देवव्रत की यह कथा बहुत ही रोचक एवं प्रेरक थी ! मम्मी के खजाने में एक से बढ़ कर एक मोती पड़े हुए हैं ! अगली कथा कब सुनाने वाली हैं ! उत्सुकता से प्रतीक्षा है !
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