अमृत कलश

Wednesday, January 25, 2012

अदभुद साहसी भागीरथ (भाग-३)

दे मंत्री को राज्य भार 
हिमगिरि  पर भागीरथ आए
गंगा को तप से प्रसन्न कर 
दिव्य  रूप दर्शन पाए 
गंगा बोली हे राजा अब -
अपनी  इच्छा प्रकट करो 
क्या  प्रिय  करू तुम्हारा कह दो
अधिक न तप का हट करो
कहा भागीरथ ने 'वरदायनी 
क्या  तुमको कुछ पता नहीं 
पितृ  देव की दुर्गति की अब 
छिपी  किसी से बात नहीं 
कपिल  मुनि  का श्राप 
मुक्ति  पथ में उनके बाधक भारी 
इसी  लिए अब मृत्यु लोक में 
करें  आने की तैयारी 
गंगा  ने यह कहा पुत्र से 
इच्छा  पूरण कर दूंगी 
तब  पितरों को तृप्त करूंगी 
पर  मेरा यह वेग असह्य
केवल शंकर ही सह सकते
वे ही ऐसे शक्तिवान हैं 
जो  निश्छल हो रह सकते
इसी  लिए तुम मुझ से पहले 
शिव  शंकर का ध्यान करो 
बांधें  मुझे जटा में जिससे 
कुछ ऐसा सम्मान करो
भागीरथ गंगा की वाणी सुन 
फिर  ताप में निरत हुए |
(शेष  अंश अगली बार )------
किरण 






















Thursday, January 5, 2012

अद्भुद साहसी भागीरथ (भाग २ )

भाग १ से आगे --
राजन  रानी एक तुम्हारी 
षट् सहस्त्र की माता हो 
वे सब विजई वीर बनेगे
वेड शास्त्र के ज्ञाता हो 
किन्तु किसी अविनय के कारण 
एक साथ सब होंगे नष्ट 
इन के इस वियोग का तुमको 
सहना होगा भीषण कष्ट 
और दूसरी रानी को 
कुल  पालक धीर वीर मतिवान 
नाम चलाने वाली सुन्दर होगी 
एक पुत्र संतान 
यह कह रूद्र हुए अन्तर्हित 
राजा लौट राज्य आए 
अवसर आने पर दौनों रानी ने 
सुन्दर सूत जाए 
बहुत काल बीता पढ़ लिख कर 
पुत्र  सभी विद्वान  हुए 
किन्तु  बड़ी रानी के सब सूत 
क्रूर धूर्त घृतिवान हुए
अश्वमेघ करने का
राजा ने  मन में संकल्प किया
यज्ञ पूत घोड़ा छोड़ा
रक्षक  पुत्रों को संग दिया
चलते चलते सागर के तट
आकार घोड़ा छिपा कहीं
खोज खोज हारे सब
उसका किन्तु चिन्ह भी मिला नहीं
हो उदास लौटे राजा ने
उन्हें बहुत अपशब्द कहे
चले खोजने अश्व
फटी धरती को देख ठिठक रहे
उसे खोदने पर उन सब ने
ऋषि आश्रम पाया सुन्दर
स्वच्छ सरोवर लहराटा  था
वायु बहा रही थी सुखकर |--------(अभी बाकी है )
किरण





अद्भुद साहसी भागीरथ(प्रथम भाग )

त्रेता युग इक्षवाकु वंश
बहुत विख्यात हुआ 
सगर नाम जिनमे थे राजा
यह ग्रंथों से ज्ञात हुआ 
परम प्रातापी,रूप शील ,
गुण अगर ,धीरवृती ज्ञानी 
थे राजा ,दो रानी जिनकी 
पति व्रता सब गुण कहानी 
पुत्र न कोइ था उनके 
राजा इससे चिंतित रहते 
सदा शोक में रहते 
दुःख की ज्वाला सहते 
ऋषि मुनियों ने कहा -
नृपति तुम शंकर जी का ध्यान धरो 
कठिन तपस्या में रत रह कर 
तुम उनका आव्हाहन करो 
आसुतोष थे अवधार दानी 
इच्छा पूरण कर देंगे 
दोनो कल्याणी रानी की 
सूनी  गोदी भर देगी 
राजा रानी सहित गए कैलाश 
महान तप किया वहाँ
हुए प्रसन्न भूत भावन तब 
दर्शन दे कृत कृत्य किया 
हो कर के प्रसन्न भक्ति से 
राजा को वर तुरंत दिया |
किरण