भाग १ से आगे --
राजन रानी एक तुम्हारी
षट् सहस्त्र की माता हो
वे सब विजई वीर बनेगे
वेड शास्त्र के ज्ञाता हो
किन्तु किसी अविनय के कारण
एक साथ सब होंगे नष्ट
इन के इस वियोग का तुमको
सहना होगा भीषण कष्ट
और दूसरी रानी को
कुल पालक धीर वीर मतिवान
नाम चलाने वाली सुन्दर होगी
एक पुत्र संतान
यह कह रूद्र हुए अन्तर्हित
राजा लौट राज्य आए
अवसर आने पर दौनों रानी ने
सुन्दर सूत जाए
बहुत काल बीता पढ़ लिख कर
पुत्र सभी विद्वान हुए
किन्तु बड़ी रानी के सब सूत
क्रूर धूर्त घृतिवान हुए
अश्वमेघ करने का
राजा ने मन में संकल्प किया
यज्ञ पूत घोड़ा छोड़ा
रक्षक पुत्रों को संग दिया
चलते चलते सागर के तट
आकार घोड़ा छिपा कहीं
खोज खोज हारे सब
उसका किन्तु चिन्ह भी मिला नहीं
हो उदास लौटे राजा ने
उन्हें बहुत अपशब्द कहे
चले खोजने अश्व
फटी धरती को देख ठिठक रहे
उसे खोदने पर उन सब ने
ऋषि आश्रम पाया सुन्दर
स्वच्छ सरोवर लहराटा था
वायु बहा रही थी सुखकर |--------(अभी बाकी है )
किरण
अश्वमेघ करने का
राजा ने मन में संकल्प किया
यज्ञ पूत घोड़ा छोड़ा
रक्षक पुत्रों को संग दिया
चलते चलते सागर के तट
आकार घोड़ा छिपा कहीं
खोज खोज हारे सब
उसका किन्तु चिन्ह भी मिला नहीं
हो उदास लौटे राजा ने
उन्हें बहुत अपशब्द कहे
चले खोजने अश्व
फटी धरती को देख ठिठक रहे
उसे खोदने पर उन सब ने
ऋषि आश्रम पाया सुन्दर
स्वच्छ सरोवर लहराटा था
वायु बहा रही थी सुखकर |--------(अभी बाकी है )
किरण
बहुत सुंदर कथा...अगली कड़ी के इन्तज़ार में|
ReplyDeleteआनंद आ रहा है ! बहुत रोचक कथा चल रही है !
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा आपने,बढ़िया प्रस्तुति,....
ReplyDeleteNEW POST.... बोतल का दूध...