दे मंत्री को राज्य भार
हिमगिरि पर भागीरथ आए
गंगा को तप से प्रसन्न कर
दिव्य रूप दर्शन पाए
गंगा बोली हे राजा अब -
अपनी इच्छा प्रकट करो
क्या प्रिय करू तुम्हारा कह दो
अधिक न तप का हट करो
कहा भागीरथ ने 'वरदायनी
क्या तुमको कुछ पता नहीं
पितृ देव की दुर्गति की अब
छिपी किसी से बात नहीं
कपिल मुनि का श्राप
मुक्ति पथ में उनके बाधक भारी
इसी लिए अब मृत्यु लोक में
करें आने की तैयारी
गंगा ने यह कहा पुत्र से
इच्छा पूरण कर दूंगी
तब पितरों को तृप्त करूंगी
पर मेरा यह वेग असह्य
केवल शंकर ही सह सकते
वे ही ऐसे शक्तिवान हैं
जो निश्छल हो रह सकते
इसी लिए तुम मुझ से पहले
शिव शंकर का ध्यान करो
बांधें मुझे जटा में जिससे
कुछ ऐसा सम्मान करो
भागीरथ गंगा की वाणी सुन
फिर ताप में निरत हुए |
(शेष अंश अगली बार )------
किरण
भागीरथ की यह कहानी बहुत रोचक एवं प्रेरक है ! लेकिन यह कड़ी आपने कई दिनों के बाद दी ! अगली समापन वाली कड़ी जल्दी दीजियेगा ! इंतज़ार रहेगा !
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