शिव प्रसन्न हो प्रगटे बोले
राजन तुम कृत कृत्य हुए
तुम जा गंगा को ले आओ
मैं उसका भार सम्हालूँगा
अवतरित स्वर्ग से जब होगी
मैं निज केशों में बांधूंगा
भागीरथ ने सावधान हो
गंगा का आव्हान किया
उतरी स्वर्ग लोक से
शिव के केशों में स्थान लिया
ध्रीरे धीरे फिर वह
भागीरथ राजा के पीछे आई
इसी लिए इस भू पर आकार
भागीरथी कहलाई
कपिल मुनी के आश्रम भेजा
सगरों का उद्धार किया
और जीव जो पड़े मार्ग में
उनको भी था तार दिया
इस प्रकार कर पितृ तृप्त
भागीरथ बडभागी आए
छाया सुयश तीनों लोकों में
कुल्तारक वे कहलाए
हों सहस्त्र सूत किन्तु मूर्ख हों
तो कुल का उद्धार नहीं
एक सुकर्मी पुत्र मिला
माता को होगा भार नहीं
जैसे एक सूर्य ही
सारे जग को है प्रकाश देता
अनगिनत तारों को भी
वह आँखों से ओझिल कर देता
यदि त्यागी भागीरत से
दो चार पुत्र हों भारत में
तो होवे सब पुन्य उदय
फैले सुकृत्य इस भारत में
देव हमारा देश साहसी
युवकों का भण्डार रहे
भागीरथ से सभी वीर हों
देश धर्म का प्यार रहे |
किरण
भागीरथ प्रयास की कथा कविता के रूप मे पढ़ना अच्छा लगा
ReplyDeleteभागीरथ की यह कथा बहुत ही प्रेरक और शिक्षाप्रद है ! पढ़ कर आनंद आया ! मम्मी की ये रचनाएं सचमुच अनमोल हैं ! इन्हें पाठकों तक पहुंचाने के लिये आपका धन्यवाद !
ReplyDeleteअकेला चना ही भाड़ फोड़ता है!
ReplyDeleteराजीव जी आपका इस ब्लॉग पर स्वागत है |
ReplyDeleteटिप्पणी के लिए धन्यवाद |
आशा
आपका इस ब्लॉग पर स्वागत है |टिप्पणी के लिए धन्यवाद |
ReplyDeleteआशा
ओम नमः शिवाय ... बहुत ही सुन्दर रचना ... और देवगणों से देश तक की इतनी सुन्दर सोच .. धन्य हुवी.. सादर
ReplyDeleteधन्यवाद नूतन जी इस ब्लॉग पर आने के लिए |
Deleteआशा
bahut hi sundar rachna
ReplyDeleteसंध्या जी आपकी टिप्पणी इस ब्लॉग पर देख कर बहुत अच्छा लग रहा है |आप ब्लॉग आकांक्षा पर भी आइये
Deletehttp://akanksha-ashablogspot.com