अमृत कलश

Saturday, July 2, 2022

एक हादसा होते होते बचा

 

एक हादसा होते होते बचा-

बात बहुत  पुरानी है एक दिन रोज की तरह हम तैरने निकले |हम से ज्यादा बच्चे उत्साहित थे| वे अभी थोड़ा थोड़ा ही सीखे थे| पर उन्हें बहुत भरोसा था खुद पर |रोज की तरह हम कपड़े बदल कर तरणताल में पानी में उतरे बच्चों ने भी तैरना प्रारम्भ किया जैसे ही सात फिट पानी में क्रोस करने लगे मेरी छोटी बहन के छोटे बेटे ने हाथ पैर चलाना बंद कर दिये और मम्मी को आवाज देने लगा |वह  भी बहुत घबरा गई और उसे पकड़ने को पलटी |वह  इतना डर गया था कि उससे लिपट गया|दोनो डुबकी खाने लगे | मेरी छोटी बेटी ने कूदने के लिएबनी सीडियों के  ऊपर से यह दृश्य देखा और उनको बचाने पहुंची |वे उससे ऐसा लिपटे कि वह भी घबरा गई अब तीनों आपस में लिपटने लगे और मेरे पीछे से मेरी शर्ट पकडली |मुझे इस बात की तो खबर ही नहीं थी कि इतना बजन कैसे हो गया मेरे पीछे | मेरी तैराकी में बाधा पड़ने लगी और मैं सीधी हो गई यही अच्छा था कि सीड़ी से हाथ भर की दूरी थी |मैंने अपनी विध्यार्थी रौनक को आवाज दी कि मेरा हाथ पकड़ कर खींचे |तभी एक बंबई से आई महिला ने यह नजारा देखा|वह  बहुत अच्छी तैराक थी|उसने पानी में उतर कर सब को एक एक

पीठ पर थप्पड़ लगाया और सब को अलग अलग किया |मेरी तो उस दिन बापिस पानी में उतरने की हिम्मत ही नहीं हुई |पर बच्चों ने फिर से तैरना शुरू कर दिया |एक  हादसा होते होते टल गया |आज भी जब उस दिन की याद आती है मन भय से कांपने लगता है

आशा