अमृत कलश

Sunday, March 29, 2020

सात भाइयों की एक बहिन


  सात भाइयों की एक ही बहिन थी |सातों उससे बहुत प्यार करते थे |
वय  प्राप्ति के बाद उसका बिवाह उसी शहर में एक संपन्न परिवार में हुआ |ससुराल में कोई कमीं  न थी |पर भाई बहुत चिंता करते थे उसकी| 
    जब पहली करवा चतुर्थी आई बहन ने निर्जला व्रत रखा |
उसे व्रत चाँद देख कर ही खोलना था |भाई बहुत परेशान थे कि बिना जल के बहिन उपास कैसे रखेगी |उन्हों ने आपस में विचार विमर्श किया |कोई तरकीब निकाली जाए कि बहिन का व्रत जल्दी समाप्त हो जाए |
   आँगन में एक अखैवर का वृक्ष लगा था |भाइयों में से एक
शाम होते ही पेड़ की  सबसे ऊंची  डाल पर एक छलनी ले कर चढ़ गया |उसमें एक जलता हुआ दिया रख लिया |
  सबसे छोटा भाई  बहिन के पास जा कर बोला “चाँद निकल आया है”चलो बहिन व्रत खोलो | बहिन बहुत सीधी थी |उसने पानी पी कर
व्रत तोड़ा |इतने में उसकी ससुराल से समाचार आया कि न जाने उसके पति को क्या हो गया |वह खबर सुनते ही अपनी ससुराल चल दी |वहाँ  सब  हिचकियाँ ले कर रो रहे थे |आसपास के लोग ले जाने की तैयारी करने लगे |उससे रहा नहीं गया और पति की अर्थी को ठेले पर रख घर से निकली |
सबसे पहले घूरे के पास गई उससे कहा “घूरे मामा मैं तुम्हारे पास
आऊँ”|घूरे ने कहा “बेटी तेरे दिन भारी हैं मेरे पास न आ” उसे बुरा लगा और कहा “जाओ१२ वर्ष बाद भी तुम जैसे हो वैसे ही रहोगे”| थोड़ा और आगे चली|राह में एक गाय मिली उससे कहा “क्या मैं तेरे पास आऊँ”|गाय ने भी उसे अपने पास ठहराने से मना कर दिया और कहा “बेटी तेरे दिन भारी है मेरे पास कैसे रहेगी”|उसे बहुत दुःख हुआ और श्राप दिया जिस मुंह से गाय ने मना किया था उसी मुंह से गाय  विष्ठा पान करेगी |
हारी थकी वह एक गूलर के पास पहुंची “गूलर भैया मैं  तुम्हारे पास
रुक जाऊं”|पर गूलर से भी निराशा ही हाथ लगी |उसने गूलर को श्राप दिया की तुम्हारा फल कोई नहीं खाएगा उसमें कीड़े पड़ जाएंगे |
   आगे जा कर वह एक बरगद के नीचे बैठने लगी और पूंछा  “क्या मैं आपके आश्रय में रह सकती हूँ”|बरगद ने जबाब दिया “जहां इतने लोगों ने आश्रय लिया है तुम्हारे लिए क्या कमी है”|वह पेड़ के नीचे छाँव देख कर बैठ गई और प्रार्थना करने लगी  मेरी क्या भूल थी जो मुझे यह कष्ट दिया है|एक ने सलाह दी तुमसे कोई भूल हुई है
देवी की प्रार्थना करो और अपने सुहाग की भिक्षा मांगो |पूरा साल होने को आया जब बारहवी चतुर्थी आई उसने माँ के चरण पकड़ लिए और
कहा पहले मेरा  सुहाग लौटाओ तभी तुम्हारे पैर छोडूंगी |देवी का मन पसीजा और अपनी छोटी उंगली सेउसके पती को  छुआ |उसका पती राम राम कह कर उठ कर बैठ गया |वे दौनों खुशी खुशी घर आए और अपने परिवार के साथ रहने लगे |
आशा

   

  

   

Saturday, March 21, 2020

भाग २-(भूख ,प्यास, नींद .आस )


भाग २-(भूख ,प्यास ,नींद,आस )
संध्या हो चली थी राजकुमार चलते चलते थक गया था |वह एक बरगद के नीचे विश्राम करने के लिए रुक गया|न जाने कब नींद आ गई कब सुबह हुई पता ही नहीं चला |कुछ लोग बातें करने में व्यस्त थे |राजकुमार का ध्यान भी उनकी बातों में चला |वे लोग पास के राज्य में होने वाले स्वयंवर की बात कर रहे थे |राजा ने
एक शर्त रखी थी जो भी व्यक्ति घूमती हुई मछली की आँख का निशाना लगाएगा वही राजकुमारी का मंगेतर होगा |उस समारोह में भाग लेने के लिए ही वे लोग जा रहे थे | राज कुमार भी उन लोगों के साथ चल दिया|
      वहां पहुँच कर देखा की एक विशाल पंडाल के अन्दर वह आयोजन हो रहा था | बहुत गहमागह्मी थी|
प्रतिभागी अपना अपना भाग्य अजमा रहे थे |असफल होने पर पीछे के दरवाजे से बाहर जा रहे थे |बहुत समय तक यह खेल चलता रहा |राज कुमार ने सोचा क्यूँ  न अपना भाग्य अपनाए |उसने भी अपनी किस्मत अपनाई
वह एक सिद्धहस्त घनुर्धर  था |पहली बार में ही सही निशाना लगाया और स्पर्धा में जीत दर्ज कराई |
राजा ने खुशी खुशी अपनी बेटी का ब्याह राज कुमार से कर दिया |वह अपनी पत्नी के साथ पास के महल में रहने लगा |राजा बहुत प्रसन्न था की उसे अपनी बेटी से दूर नहीं होना पड़ा|
    पर समाज में खुसरफुसर होने लगी|व्याही बेटी ससुराल क्यूँ नहीं जाती |जब पहला करवा चौथ का  त्यौहार पड़ा |राज कुमारी बहुत खुशी से  पूजा करने लगी |जब बयाना देने की बारी आई एक धोबन ने ताना मारा
“तुम्हारे कोई भी तो नहीं है तभी मायके में पड़ी हुई हो मैं ऐसे लोगों से बयाना नहीं लेती”|
    यह बात राज कुमारी को बहुत बुरी लगी |वह उदासी में डूब गई |जब राजकुमार घर आया तब राजकुमारी ने सारी बात राज कुमार को बताई |वः कहने लगी अब तो मैं तभी पानी पियूंगी जब अपने ससुराल में कदम रखूंगी” |यह बात जबराजा को पता चली पहले तो बेटी को समझाने की कोशिश की पर जब वह जिद पर  
अड़ी रही तब उसके पिता ने  दान दहेज़ और चतुरंगी सेना के साथ अपने बेटी जमाई को विदा किया |
  जब राजकुमार अपने राज्य की सीमा तक पहुंचा लोगों को लगा कोई दूसरा राजा चढ़ाई करने आया है |
राजा अब तक बूढा हो चुका था  जैसे ही अपने बेटे को देखा उसे प्यार से गले लगाया |यह समाचार राज महल तक पहुंचा की राज कुमार अपनी पत्नी को लेकर आ गया है |रानी ने बहुत धूमधाम से अपनी बहू का  गृह्प्रवश कराया |
      कुछ समय पश्च्यात राजा ने राज्य की बागडोर अपने बेटे को सोंप दी आर तीर्थाटन को जाने लगा |
जाते समय एक ही बात बेटे को समझाई कि अपनी प्रजा को अपने बच्चों की तरह सम्हालना और सदा उनके
सुख दुःख में सम्मिलित होना |यही सफलता की कुंजी है |
आशा  

Friday, March 20, 2020

पहली किश्त (भूख ,प्यास ,नीद ,आस )


पहला भाग (भूख ,प्यास ,नींद ,और आस”) –
 एक राजा था| उसके एक इकलौता बेटा था |उसे इतना प्यार सबसे मिलता था की वह बहुत जिद्दी हो गया था |राजा उसके व्यवहार से बहुत दुखी था |वह सोचता था यदि इसके व्यवहार में परिवर्तन नहीं आया तब राज्य का क्या होगा |राजा ने अपने मंत्रीयों से सलाह मांगी |उन्हों ने बताया की अधिक लाड़ प्यार ने राज कुमार को बिगाड़ा है |यदि उसे अनुशासन में रखा जाए तो उसमें परिवर्तन की आशा की जा सकती है |
        एक दिन राजा ने उसे घर से निकाल दिया| नपहले तो राज कुमार बहुत परेशान हुआ पर क्या करता |धीरे धीरे जंगल की ओर चल दिया रास्ते में एक काँटा उसके पाँव में चुभ गया |वह उसे निकालने के लिए झुका |इतने  में उसने देखा चार बूढ़ी स्त्रियाँ आपस में बहस कर रहीं थी| उसने बहद का कारण जानने के लिए
प्रणाम कर उनसे पूंछा आप सब किस बात पर झगड़ रही है |पहली बोली कि झगड़ा इस बात का है कि तुमने किसे सलाम किया ?
राज कुमार बुद्धि का धनी था उसने पहली स्त्री का नाम पूंछा प्रतिउत्तर में बोली “मेरा नाम भूख  है “|
थोड़ा सोच कर राज कुमार ने कहा “भूख का क्या ?जब भूख लागे कुछ भी खा कर अपनी क्षुधा शांत की जा सकती है “|
दूसरी महिला ने अपना नाम “प्यास” बताया |राज कुमार ने जवाब दिया “जब प्यास लगे तब यह नहीं सोचा जा सकता की पानी स्वच्छ है या नहीं “
तीसरी ने अपना नाम बताया “नीद”|राज कुमार ने सर हिलाया और कहा “नीद रानी कहीं पर आ जाती हैं चाहे बिस्तर आरामदेह हो या धरती हो |
अब बारी चौथी की थी उसने बताया “मेरा नाम आस है” अपने सब के नाम तो पूंछे पर प्रश्न वहीं का वहीं रहा “आपने किसे सलाम किया”?
राज कुमार मुस्कुराया और बोला “आस रानी  मैंने तुम्हें ही  सलाम किया|जानती हो क्यों ?आस पर सारी दुनिया टिकी है”|  वे चारों देवियाँ थीं राज कुमार की परीक्षा लेने आईं थी |
उन सब ने राजकुमार को आशीष दिया और आगे बढ़ गईं |
आशा

Thursday, March 12, 2020

शुभकामनाएं


शुभ कामनाएं
श्रीमती आशा लता सक्सेना की कविताओं की विशेषता  उनके स्वभाव की सहजता है| वे ऐसे विषयों को कविता में ढाल देतीं हैं जो  आसपास धटित होती हैं या उनकी जिन्दगी में समाहित हैं |
उनके आतंरिक भाव जीवन की सत्यता का भास् कराते हैं |भाषा की  सरलता कविताओं की विशेषता है |कविता संग्रह “आकांक्षा “उनकी कल्पना शीलता  की परिचायक  है |
इन कविताओं में कहीं आंसू तो कहीं आक्रोश तो कहीं व्यंग निहित हैं |जो हमारे अंतर्मन को झझकोर देतीं हैं |कविता रम्य सुबोध और लालित्य पूर्ण और पठनीय हैं |
तस्वीर भारत की –
धीरे धीरे कल्पना के पंख लगे
बनाने लगी तस्वीर अखंड भारत की |
सोच की इन्तहा –
अब तो बात फैल गई
चर्चा सरेआम हो गई
गैरत ने किया मजबूर
 पलट वार ना करने को |
हथकड़ी –बंधे हाथ दोनो
समाज के नियमों से
है बंधन इतना सशक्त
 कोई बच नहीं पाता इससे |
मेरी ओर से बहुत बहुत शुभ कामनाएं नवीन काव्य संग्रह " आकंक्षा " के लिये  |                                                 

श्री मती स्मिता श्रीवास्तव

एक और मील का पत्थर {भूमिका पुस्तक"आकांक्षा" )


एक और मील का पत्थर
मन आत्म विभोर है की मती दीदी आदरणीय आशा लता सक्सेना जी जा एक और नवीन कविता
संग्रह”आकांक्षा “ शीघ्र ही प्रकाशित होने जा रहा है |यह उनका ग्यारहवा कविता संग्रह है |
लेखन की गजब की क्षमता है दीदी में और वे जो भी लिखती हैं वह पाठकों के हृदय पर अपनी अमित छाप छोड़ जाता है |
समय के साथ दीदी के लेखन में दिन व् दिन निखार आया है रचनाओं में संवेदना सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होती जा  रही है भावों में अतुलनीय गहराई आई है और वैचारिक स्तर पर भी रचनाएं चिंतनीय ,गंभीर एवं सम्प्रेशानीय होती ही  है|विषयानुरूप शब्दों के चयन में भी उन्हें महारत हांसील है |उनके मन में मस्तिष्क में विचारों का
अविरल निर्झर सतत प्रवाहमान रहता है विषय सुझा ते ही उनकी रचना पलों में अपना मनोहारी रूप और आकार लेलेती है |
यह उनकी अद्भुद सृजन शीलता का परिचायक है |उनकी लेखनी हर विषार पर खूब चलती है |
हमारे आसपास की कोई भी घटना कोई भी पात्र या कोई भी प्रसंग उनकी रचना का कथ्य बन जाता है |
हर विषय के विश्लेषण करने  की  उनकी दृष्टि विरल है और सहज ही प्रभावित कर लेती हैं
इस काव्य की सभी रचनाएं बहुर सुन्दर  एव् प्रभावी हैं  |
पंखुड़ी ,बयार ,मन बचपन का ,दुआ बद्दुआ ,मुझे न्याय चाहिए आदि अनेक रचनाएं हैं जिनकी भाव भूमि  अत्यन्त सशक्त है और लेखिका ने बड़ी दक्षता के साथ अपनी भावनाओं को उनपर उकेरा है |
दीदी की रचना धर्मिता को मैं हृदय से नमन करती हूँ एवं आशा करती हूँ कि उनका यह काव्यसंकलन “आकांक्षा” पाठकों के मन को निश्चित रूप से मोहित करेगा |
इस आलेख के माध्यम से अपनी अशेष शुभकामनाएं और शुभिच्छाएं दीदी के लिए प्रेषित कर रही हूँ |
उनकी लेखनी अबाध गति से चलतीरहे एवं हमलोगों के लिए प्रेरणा का  स्त्रोत बनी रहे यही मनोकामना है |
इस काव्य संकलन के प्रकाशन अधीरता से प्रतीक्षा है |
ढेर सारी अग्रिम बधाई और अनंत अशेष शुभ कामनाओं के साथ |
साधना वैद