अमृत कलश

Saturday, March 21, 2020

भाग २-(भूख ,प्यास, नींद .आस )


भाग २-(भूख ,प्यास ,नींद,आस )
संध्या हो चली थी राजकुमार चलते चलते थक गया था |वह एक बरगद के नीचे विश्राम करने के लिए रुक गया|न जाने कब नींद आ गई कब सुबह हुई पता ही नहीं चला |कुछ लोग बातें करने में व्यस्त थे |राजकुमार का ध्यान भी उनकी बातों में चला |वे लोग पास के राज्य में होने वाले स्वयंवर की बात कर रहे थे |राजा ने
एक शर्त रखी थी जो भी व्यक्ति घूमती हुई मछली की आँख का निशाना लगाएगा वही राजकुमारी का मंगेतर होगा |उस समारोह में भाग लेने के लिए ही वे लोग जा रहे थे | राज कुमार भी उन लोगों के साथ चल दिया|
      वहां पहुँच कर देखा की एक विशाल पंडाल के अन्दर वह आयोजन हो रहा था | बहुत गहमागह्मी थी|
प्रतिभागी अपना अपना भाग्य अजमा रहे थे |असफल होने पर पीछे के दरवाजे से बाहर जा रहे थे |बहुत समय तक यह खेल चलता रहा |राज कुमार ने सोचा क्यूँ  न अपना भाग्य अपनाए |उसने भी अपनी किस्मत अपनाई
वह एक सिद्धहस्त घनुर्धर  था |पहली बार में ही सही निशाना लगाया और स्पर्धा में जीत दर्ज कराई |
राजा ने खुशी खुशी अपनी बेटी का ब्याह राज कुमार से कर दिया |वह अपनी पत्नी के साथ पास के महल में रहने लगा |राजा बहुत प्रसन्न था की उसे अपनी बेटी से दूर नहीं होना पड़ा|
    पर समाज में खुसरफुसर होने लगी|व्याही बेटी ससुराल क्यूँ नहीं जाती |जब पहला करवा चौथ का  त्यौहार पड़ा |राज कुमारी बहुत खुशी से  पूजा करने लगी |जब बयाना देने की बारी आई एक धोबन ने ताना मारा
“तुम्हारे कोई भी तो नहीं है तभी मायके में पड़ी हुई हो मैं ऐसे लोगों से बयाना नहीं लेती”|
    यह बात राज कुमारी को बहुत बुरी लगी |वह उदासी में डूब गई |जब राजकुमार घर आया तब राजकुमारी ने सारी बात राज कुमार को बताई |वः कहने लगी अब तो मैं तभी पानी पियूंगी जब अपने ससुराल में कदम रखूंगी” |यह बात जबराजा को पता चली पहले तो बेटी को समझाने की कोशिश की पर जब वह जिद पर  
अड़ी रही तब उसके पिता ने  दान दहेज़ और चतुरंगी सेना के साथ अपने बेटी जमाई को विदा किया |
  जब राजकुमार अपने राज्य की सीमा तक पहुंचा लोगों को लगा कोई दूसरा राजा चढ़ाई करने आया है |
राजा अब तक बूढा हो चुका था  जैसे ही अपने बेटे को देखा उसे प्यार से गले लगाया |यह समाचार राज महल तक पहुंचा की राज कुमार अपनी पत्नी को लेकर आ गया है |रानी ने बहुत धूमधाम से अपनी बहू का  गृह्प्रवश कराया |
      कुछ समय पश्च्यात राजा ने राज्य की बागडोर अपने बेटे को सोंप दी आर तीर्थाटन को जाने लगा |
जाते समय एक ही बात बेटे को समझाई कि अपनी प्रजा को अपने बच्चों की तरह सम्हालना और सदा उनके
सुख दुःख में सम्मिलित होना |यही सफलता की कुंजी है |
आशा  

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