अमृत कलश

Thursday, November 20, 2014

दूर दूर तक अपनी दृष्टि दौड़ाती सुनहरी धुप -- आशालता सक्सेना :)

सुनहरी धुप आशा जी का पाँचवा काव्य संग्रह है इस संग्रह में विभिन्न विषयों पर आशा जी के मन के भावो से जुडी अनेको कवितायेँ है श्री मति आशा जी को मैं चार वर्षों से जानता हूँ और अंतरजाल पर लगातार चार वर्षो से जुड़ा हुआ हूँ............!
आशा जी कि लेखन शैली वर्णात्मक है भाषा पर अधिकार उन्हें अपनी माता जी प्रसिद्ध कवित्री ( श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना ) जी से विरासत में मिला है | इसीलिए आशा जी के शब्द चयन बहुत ही सरल और सुंदर है !

.......इसी के साथ बहुत सी यादें भी जुडी हुई है !
आशा जी कि कलम से :--
कुछ तो ऐसा है तुम में
य़ुम्हारी हर बात निराली है
कोई भावना जाग्रत होती है
एक कविता बन जाती है !
लिखते लिखते कलम नहीं थकती
हर रचना कुछ कहती है
इसीलिए तुम्हारी याद मिटने न दूंगा
हर किताब को सहेज कर रखूँगा !!

....आशा जी कि भाषा शैली सरल होते हुए भी पाठक को गहराई तक ले जाती है मुझे ये कहते हुए बिलकुल भी संकोच नहीं है क्योंकि आशा जी मानसिक चेतना और अभिव्यक्ति को प्रस्तुत करने में हमेशा सफल रही है
प्रस्तुत कविता संग्रह में 132 कवितायेँ है कुछ कवितायेँ ऐसी है जो आम कविताओं से अलग है जो पाठको को अपनी और खींचती है सच पूछा जाए तो कवि कि यही मानसिकता ,क्षमता ,पाठक के लिए बहुत बड़ी सम्पति है और मैं ये आशा करता हूँ कि काव्य जगत में पाठक आशा सक्सेना जी कि अभियक्ति को समझेंगे और लेखक कि चेतना और अभिव्यक्ति के साथ जुड़े रहेंगे !
हिंदी के आधुनिक कविता संग्रह में इस संग्रह का अपना ही स्थान होगा ! .....मैं एक बार फिर आशा जी कि तारीफ करता हूँ क्योंकि मैं आशाजी के चारों काव्य संकलनो को देख व पढ़ चुका हूँ और अपने आप को बहुत ही भाग्यशाली मानता हूँ जो आशाजी के पांचवे  संग्रह में अपने विचार दे पाया हूँ ! मेरा ये विश्वास है कि ये संग्रह काव्य प्रेमियों के बीच अपनी अलग कि पहचान बनाएगा !
मेरी और से एक बार पुन: काव्य संग्रह " सुनहरी धुप " के लिए श्रीमती आशा लाता सक्सेना जी को बधाई व शुभकामनाएँ उनकी ये चमक दूर -दूर तक पहुचे इसके लिए आशा जी को ढेरों शुभ कामनाये ........!!!


पता - श्रीमती आशालता सक्सेना सी-47, एल.आई.जी, ऋषिनगर, उज्जैन-456010  पुस्तक प्राप्ति हेतु कवयित्री (आशा सक्सेना जी) से दूरभाष- 0734 - 2521377 से भी सीधा सम्पर्क किया जा सकता है।
आशा जी की सभी पुस्तको की समीक्षा आप यहाँ भी पढ़ सकते है
बहुमुखी प्रतिभा - आशालता सक्सेना :)

Monday, November 17, 2014

पुस्तक समीक्षा (सिमटते स्वप्न ) रूप चन्द्र शास्त्री जी द्वारा


       पुस्तक समीक्षा( सिमटते स्वप्न )
  लगभग एक सप्ताह पूर्व श्रीमती आशा लता सक्सेना का पंचम काव्य संकलन मुझे प्राप्त हुआ। लेकिन आज समय मिला है अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का।
        पठनीय रचनाओं से सुसज्जित 186 पृष्ठों की इस पुस्तक को कवयित्री ने स्वयं प्रकाशित किया गया है। जिसका मूल्य मात्र रु.200/- रखा गया है। काव्य संग्रह "सिमटते स्वप्न" में कवयित्री ने 186 पृष्ठों में अपनी 155 रचनाओं को सिमेटकर अपनी मितव्यता का परिचय दिया है।
          श्रीमती आशा लता सक्सेना ने स्वगत कथन में लिखा है कि उनका लेखन स्वान्तःसुखाय है। इस काव्यसंग्रह की शीर्षक रचना में वे लिखतीं हैं-
“व्यस्त हो जाती हूँ
घर के काम-काज में
खाली कहा रहता है
मस्तिष्क मेरा छोटा सा
स्वप्न सिमट जाते हैं
व्यस्त दिनचर्या में”
         अपनी एक अन्य रचना “विचारों की श्रृंखला” में वह लिखती हैं-
“हूँ विचारों की पक्षधर
पर हाथ बँधें हैं
आजादी का अर्थ जानती हूँ
पर जीवन की हर साँस
किसी न किसी
परिपाटी में उलझी है
और संस्कारों के बोझ तले
दबी सहमी है”
        लेकिन भावनाओं का सैलाब कभी थमता नहीं है। जिसका उल्लेख कवयित्री ने बहत सहजता से अपनी रचना में किया भी है-
“भावनाओं का सैलाब
कहाँ ले जायेगा
भेद अपने-पराये में
कर न पायेगा”
         मँहगाई पर कलम चलाते हुए कवयित्री  लिखतीं है-
“मैं हूँ मँहगाई
अनन्त है विस्तार मेरा
एक ओर नियन्त्रण हो तो
दूसरी ओर विस्तार होता
मनुष्य आकंठ डूबा मुझ में
गहन वेदना सहता
फिर भी बच न पाता
मेरे पैने दंश से”
       अमूर्त स्वप्न कैसे होते हैं देखिए उनका रचना का यह अंश-
“सपनों में जीना
उनमें ही खोए रहना
आनन्द है ऐसा
गूँगे के गुड़ जैसा”
      बसन्त का स्वागत करते हुए कवयित्री ने लिखा है-
“पीले-लाल, रंग-बिरंगे
पुष्प सजे वृक्षों पर
रंग बसन्ती छाया
धरती की चूनर पर”
         चिराग की व्यथा को व्यक्त करते हुए अपने एक रचना में कवयित्री ने कुछ इस तरह व्यक्त किया है-
“रात भर चिराग जला
एक पल भी न सोया
फिर भी तरसा
एक प्यार भरी निगाह को”
         पराजय की पीड़ा को कवयित्री की लेखनी से देखिए-
“वह क्या जाने पीर हार की
जो कभी हारा ही नहीं
आहत मन ही जानता है
महत्व चोट के अहसास का”
         जिन्दगी की परिभाषा बताते हुए कवयित्री ने लिखा है-
“बोझ क्यों समझा है इसे
है नाम ज़िन्दग़ी इसका
सोचो-समझो विचार करो
फिर जीने की कोशिश करो”
       अपनी “फक्कड़” नामक रचना में बचपन को परिभाषीत करते हुए कवयित्री लिखती है-
“बहुत रोया जब जन्म लिया
माँ की गोद में सोया
सबको बाहों में झूला
लगा खुशियों का मेला
बचपन कब बीता याद नहीं
पर इतना अवश्य याद रहा
वो जीवन सीधा-सादा था
चिन्ताओं से था बहुत दूर”
        काव्य लोक में विचरण करने का अपना अलग ही सुख है। जिसको व्यक्त करते हुए कवयित्री लिखती है-
“विचरण कविता लोक में
स्वप्न लोक से कम नहीं
हर शब्द प्रभावित करता
निहित भावों की सुगन्ध से”
       लब्ध प्रतिष्ठित कवयित्री श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना की  कोख से विदिशा मध्यप्रदेश में जन्मी 2 मई, 1943 को आशा लता सक्सेना ने अर्थशास्त्र और अंग्रेजी में स्नातकोत्तर करने के उपरान्त जीवनपर्यन्त अध्यापन किया। यूँ तो आपने अंग्रेजी में भी कविता लेखन किया लेकिन देवनागरी के प्रेमपाश में बँधकर हिन्दी में अपनी कविता की सरिता को आज भी आगे बढ़ा रहीं है। जब भी अपने आस-पास या समाज में कुछ ऐसा घटित होता देखती है, जिसे देखकर उनका मन संवेदनशील हो उठता है तो वही उनको लिखने के लिए प्रेरित करता है।  सामाजिक परिवेश की घटनाओं, परिदृश्यों और मानव मन में उठने वाली सहज भावनाओं व विचारों को सरल शब्दावली में व्यक्त करना इनकी भाषा-शैली का एक प्रमुख अंग है।
       इस कविता संग्रह को आत्मसात् करते हुए मैंने महसूस किया है कि कवयित्री ने इसमें जीवन से जुड़े लगभग प्रत्येक विषय जैसे- मतदाता, मँहगाई, बाल दिवस, झूँठनामा, प्रत्याशी, तितलीरानी, बैलगाड़ी, पारखी नज़र, चिराग, गुलाब, फागुन, फुलवारी, गौरैया, बन्दर, पीड़ा, बिछोह पर अपनी लेखनी कुशलता से चलायी है। चाहे इनकी कलम से रचना निकले या मुँह से बात निकले वह अपने आप में कविता से कम नहीं होती है।
        अन्त में इतना ही कहूँगा कि इस पुस्तक के सृजनकर्त्री श्रीमती आशा लता सक्सेना महिला होते हुए भी बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। कुल मिलाकर यही कहूँगा कि “सिमटते स्वप्न” एक पठनीय और संग्रहणीय काव्यसंकलन है।
        मेरा विश्वास है कि “सिमटते स्वप्न” काव्यसंग्रह सभी वर्ग के पाठकों में चेतना जगाने में सक्षम सिद्ध होगा। इसके साथ ही मुझे आशा है कि यह काव्य संग्रह समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध होगा।
        यह काव्य संकलन श्रीमती आशा लता सक्सेनाके पते सी-47, एल.आई.जी. ऋषि नगर, उज्जैन (मध्यप्रदेश) से प्राप्त किया जा सकता है।
        इनके सम्पर्क नम्बर - (0734) 2521377 पर फोन करके आप विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
शुभकामनाओं के साथ!
समीक्षक
 (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
कवि एवं साहित्यकार 
टनकपुर-रोडखटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262 308
E-Mail .  roopchandrashastri@gmail.com
फोन-(05943) 250129 मोबाइल-09997996437

Monday, September 1, 2014

शुभाशंसा

                                                  शुभाशंसा
श्रीमती आशा लता सक्सेना की नवीन कृति ' सिमटते स्वप्न  'प्रकाशन  के द्वार पर खड़ी है |उनके अपने जीवन चिंतन से अनुस्यूत कविताओं के इस संकलन में भावावेश के स्थान पर वैचारिक धरातल पर उनकी लेखिनी ने अधिक प्रभावित किया |
         तर्क और गंभीरता उनकी रचनाओं में सर्वत्र ही पाई जा सकती है |भाव जगत के यत्र तत्र मिलते रहने से कवि  की वह प्रोढ़ता प्रगट होती है जो इस युग के सर्वथा उपयुक्त है |'मेघ अषाढ़ का 'में कवि  ह्रदय की वे धड़कनें बोलती हैं जो मनुष्य की कभी तृप्त  न होने वाली प्यास प्रेम के प्रति उसे मोहित करती रही है| 'तस्वीर उजड़े घर की 'नारी के स्वप्न और उसके रूबरू होते यथार्थ को प्रकाशित कर हमें आगाह भी करती है |प्रिय वियोग के पश्चात ,प्रियतम का मूल्यांकन 'सान्नीध्य ' में उजागर किया गया है | 'सिमटते स्वप्न . में -मानव मन के -वास्तविकता के धरातल पर आने की विवशता वर्णित है |मानव मन केवल शापग्रस्त  ही नहीं है उसकी ,छटी  इन्द्रिय भी उसे जगाती है यह सत्य 'अधोपतन ' में उद्घाटित है |'बदनाम हो गए' में सामाजिक विवशता और विषमता के पक्ष भी प्रस्तुत करते प्रतीत होते हैं |
         श्रीमती आशा जी के सबल वैचारिक  पक्ष पर लिखी रचनाएं निश्चय ही आपके मन मानस का स्पर्श कर सकेंगी ,इस आशा और विश्वास के साथ उनको मेरी शुभ कामनाएं |
                                                                नोट :-   श्री प्रकाश उप्पल द्वारा लिखा गया
           
                                                                           ३१ अगस्त २०१४                                                                
                                                            (वरिष्ठ साहित्यकार पत्रकार एवं कवि )



Thursday, June 5, 2014




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वट सावित्री अमावस्या के पूजन की प्रचलित कहानी के अनुसार सावित्री अश्वपति की कन्या थी, उसने सत्यवान को पति रूप में स्वीकार किया था। सत्यवान लकड़ियां काटने के लिए जंगल में जाया करता था। सावित्री अपने अंधे सास-ससुर की सेवा करके सत्यवान के पीछे जंगल में चली जाती थी।

एक दिन सत्यवान को लकड़ियां काटते समय चक्कर आ गया और वह पेड़ से उतरकर नीचे बैठ गया। उसी समय भैंसे पर सवार होकर यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए। सावित्री ने उन्हें पहचाना और सावित्री ने कहा कि आप मेरे सत्यवान के प्राण न लें।

यम ने मना किया, मगर वह वापस नहीं लौटी। सावित्री के पतिव्रत धर्म से प्रसन्न होकर यमराज ने वरदान के रूप में अंधे सास-ससुर की सेवा में आंखें दीं और सावित्री को सौ पुत्र होने का आशीर्वाद दिया और सत्यवान को छोड़ दिया।

इसी वट वृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पतिव्रत धर्म से मृत पति को पुन: जीवित कराया था. तभी से यह व्रत ‘वट सावित्री व्रत’ के नाम से जाना जाता हैवट पूजा से जुड़ी धार्मिक मान्यता के अनुसार तभी से महिलाएं इस दिन को वट अमावस्या के रूप में पूजती हैं।