शुभाशंसा
श्रीमती आशा लता सक्सेना की नवीन कृति ' सिमटते स्वप्न 'प्रकाशन के द्वार पर खड़ी है |उनके अपने जीवन चिंतन से अनुस्यूत कविताओं के इस संकलन में भावावेश के स्थान पर वैचारिक धरातल पर उनकी लेखिनी ने अधिक प्रभावित किया |
तर्क और गंभीरता उनकी रचनाओं में सर्वत्र ही पाई जा सकती है |भाव जगत के यत्र तत्र मिलते रहने से कवि की वह प्रोढ़ता प्रगट होती है जो इस युग के सर्वथा उपयुक्त है |'मेघ अषाढ़ का 'में कवि ह्रदय की वे धड़कनें बोलती हैं जो मनुष्य की कभी तृप्त न होने वाली प्यास प्रेम के प्रति उसे मोहित करती रही है| 'तस्वीर उजड़े घर की 'नारी के स्वप्न और उसके रूबरू होते यथार्थ को प्रकाशित कर हमें आगाह भी करती है |प्रिय वियोग के पश्चात ,प्रियतम का मूल्यांकन 'सान्नीध्य ' में उजागर किया गया है | 'सिमटते स्वप्न . में -मानव मन के -वास्तविकता के धरातल पर आने की विवशता वर्णित है |मानव मन केवल शापग्रस्त ही नहीं है उसकी ,छटी इन्द्रिय भी उसे जगाती है यह सत्य 'अधोपतन ' में उद्घाटित है |'बदनाम हो गए' में सामाजिक विवशता और विषमता के पक्ष भी प्रस्तुत करते प्रतीत होते हैं |
श्रीमती आशा जी के सबल वैचारिक पक्ष पर लिखी रचनाएं निश्चय ही आपके मन मानस का स्पर्श कर सकेंगी ,इस आशा और विश्वास के साथ उनको मेरी शुभ कामनाएं |
नोट :- श्री प्रकाश उप्पल द्वारा लिखा गया
३१ अगस्त २०१४
(वरिष्ठ साहित्यकार पत्रकार एवं कवि )
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