अमृत कलश

Sunday, December 27, 2020

ओस की नन्हीं बूँदें

ओस की  नन्हीं बूँदें  

हरी दूब पर मचल रहीं  

धूप से उन्हें  बचालो

कह कर पैर पटक रहीं |

देखती नभ  की ओर हो भयाक्रांत  

फिर बहादुरी  का दिखावा कर

कहतीं उन्हें भय नहीं किसी का  

रश्मियाँ उनका  क्या कर लेंगी |

दूसरे ही क्षण वाष्प बन

अंतर्ध्यान होती दिखाई देतीं  

वे छिप जातीं दुर्वा की गोद में

मुंह चिढाती देखो हम  बच गए  |

पर यह क्षणिक प्रसन्नता

अधिक समय  टिक नहीं पाती

आदित्य की रश्मियों के वार से

उन्हें बचा नहीं पाती |

आशा

जान सांसत में




 

जान सांसत में

एक जंगल में एक पेड़ के नीचे बहुत से पशु पक्षी एक साथ रहते थे |उन में आपस में कभी भी तकरार नहीं होती थी |सब मिल जुल कर रहते थे |आपस में हर समस्या का हल खोजने की क्षमता थी उनमें |किसी बात पर बहस नहीं करते थे |यदि किसी ने कोई बात कही होती उस पर पहले मनन चिंतन करते फिर उस कार्य को अंजाम देते |

   एक दिन दो व्यक्ति भी उसी पेड़ के नीचे आकर रुके |थोड़ी देर तो शांती रही फिर बिनाबात बहस में उलझे रहे |धीरे धीरे बहस इतनी उग्र हो गई कि दौनो में हाथापाई होने लगी |कुछ देर तो पशुपक्षी मूक दर्शक हो कर यह नजारा देखते रहे |पर फिर एक गाय ने बीच बचाव करने की कोशिश की |वह बोली आपस में क्यूँ लड़ रहे हो हमको देखो हम तो अलग अलग जाति के लोग है पर फिर भी आपस में नहीं झगड़ते |तुम तो दोनो ही मनुष्य हो |फिर भी एक दूसरे  के खून के प्यासे हो रहे हो |संसद का नजारा दिखा रहे हो

      तुम यहाँ से चले जाओ नहीं तो तुम्हारी यह आदत हमारे ऊपर भी बुरा असर डालेगी |यदि यहाँ रहना चाहते हो पहले मिलजुल कर रहना सीखो |तुमसे तो हम ही अच्छे हैं |हम  किसी भी प्रकार का बैर मन में नहीं रखते |अब बिचारे मनुष्यों की जान सांसत में  आगई वे तो राजनीति के अखाड़े से आए थे ||वह या तो चले जाएं या अपने स्वभाव में परिवर्तन करलें |दोनो ही सोच में पड़ गए अपनी गलती का एहसास हुआ और मन में पश्च्याताप |करें तो क्या करें |वे थे आदतों से लाचार |मन मसोस कर रह गए |

आशा

Wednesday, November 11, 2020

 

 मन के दीप जलाओ कि आया 

दीपावली का त्यौहार 

यूं  तो दिए  बहुत जलाए पर

 मन के कपाट खोल न पाए |

जीवन भर प्रकाश के लिए तरसे 

अब  जागो मन का तम हरो 

दीप की रौशनी हो इतनी कि

तम का बहिष्कार हो  |

नवचेतना का हो संचार 

घर में  और दर से बाहर  भी 

सद्भावना और सदाचार का 

संचार हो आज के दूषित समाज में | 

|यही सन्देश देता दीपावली का त्यौहार |

दी जाती हैं  बैर भाव भूल सब को

 शुभ कामनाएं दिल से 

यही रहा दस्तूर इस त्यौहार का 

                                                            जिसे हमने भी आगे बढाया |

आशा




यात्रा विवरण (४)

प्रातः काल प्रभु को  एक बार फिर से नमन कर अगले पड़ाव पर जाने के लिए प्रस्थान किया |अब अगला गंतव्य केदार नाथ था |केदार नाथ का धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्व है वह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है |चार धाम में भी इसका महत्वपूर्ण  स्थान है |बद्रीनाथ से अधिक दूर नहीं है पर मार्ग बहुत दुर्गम है |हम तो अपनी वैन से जारहे थे |प्रातःकालीन दृश्य राह के इतने सुन्दर थे कि हर जगह रुकने का मन होता था| लगभग दो घंटे बाद रुक कर स्नान ध्यान किया |हमारे साथ ही राह के समकक्ष नदी कल कल करती आगे बढ़ रही थी |नदी किनारे जहां रुके वहां बहुत सुन्दर दृश्य था |मन हुआ क्यूँ न कपडे धो लिए जाएं |जल्दी से कपड़ों को निकाला और धोबीघाट लगा लिया |हवा में बहुत जल्दी वे सूख भी गए |जल्दी जल्दी खाना खाया और आगे की और रवाना हुए |

गौरी कुंड पहुंचाते शाम हो गई |हमने एक दिन वहीं रुकने का प्रोग्राम बनाया और वहां से कुंड देखने चले गए |मौसम कुछ अधिक ही ठंडा था |दूसरे दिन सुबह हम स्टेंड पर पहुंचे तब तक बहुत से लोग तो रवाना भी हो चुके थे |वहां से एक और नए अनुभव के लिए घोड़ों पर सवारी करनी थी |घोड़ो पर सवारी का भी पहला ही तजुर्वा था |वहां पहुँच कर अलग अलग घोड़ों पर सवार हुए |रास्ते में दो घंटे बाद राम चट्टी पर पर रुके वहां

नाश्ता किया |तब तक  घोड़ों ने भी आराम कर लिया |

जब पुल के इस पार ही थे हलकी बारिश प्रारम्भ होगई थी साथ में रुई के सामान बर्फ भी गिरने लगी थी |

 |सब  ने बरसाती से अपने को ढांक रखा था इस कारण गीले नहीं हुए | जाते ही दर्शन सरलता  से हो गए और जल्दी ही बापिस लौटने की जरूरत को समझ अपने अपने घोड़ों पर सवार हुए और रवाना हुए |पर इतने अधिक थके कि उस थकान को अभी भी भूल नहीं पाए हैं |जाते समय सब जोर जोर से नारे लगा रहे थे

“जय केदार नाथ की “ |जोश भरपूर था पर जब लौटे आवाज इतनी कम थी कि पास वाले भी बहुत कठिनाई से सुन पा रहे थे |

४-५ घंटे का पौनी घोड़ों का सफर कोई मजाक नहीं था |शाम होते होते हम बापिस गौरी कुंड पहुँच गए थे |पर यह यात्रा भी  यादगार  रही |जैसे ही हरिद्वार आया |होटल की राह पकड़ी |रात भर ऐसे सोए कि सुबह कब हो गई पता ही नहीं चला |सीधे स्टेशन का रुख लिया और उज्जैन के लिए रवाना होगए |

यह हुआ अंत हमारी पहली यात्रा का |

आशा

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

  यात्रा विवरण (क्रमांक ३)

ऋषिकेश से जल्दी ही चल दिए क्यों कि अब बहुत लम्बी यात्रा करानी थी |रास्ता बहुत सकरा था |बेहद चढ़ाई थी |कभी तो ऊपर से आती बसों को पहले निकालने के लिए ऊपर जाती बसों को रुकना पड़ता था |जब वे बसे निकल जातीं तब नीचे रोके गए वाहनों को जाने दिया जाता था |पर दृश्य बहुत मनोरम होते थे|कहीं कहीं तो नीचे झांक कर देखते तो भय सा ने लगता था |कहीं ठण्ड  लगती तब स्वेटर का सहारा लेना पड़ता |

वेन की गति धीमी रखने को कहा तब ड्राइवर ने कहा की पहुँचते पहुंचते रात हो जाएगी |आपको कहीं रात में रुकना पडेगा |जैसेतैसे रात को ९ बजे रूद्र प्रयाग पहुंचे |अब समय अधिक हो जाने के कारण रात में कहाँ 

रुकें यह समस्या आई |खैर एक व्यक्ति ने बताया कि अलखनंदा नदी के किनारे एक नया मकान बना  है

वहां आप रुक सकते हैं |मैं आपको ठहराने की व्यवस्था कर देता हूँ |

हम लोग उसके साथ चल दिए |नदी के ठीक ऊपर एक कमरे में फर्श बिछा कर सभी लेट गए |पहले तो नदी के बहाने की तेज आवाज सुनते रहे फिर थकान के कारण नींद आने लगी पर हलकी सी झपकी लगी थी कि

खटमलों ने अटक करना प्रारम्भ कर दिया \मैंने तो रात भर जाग कर ही काट दी |सुबह ही वह स्थान छोड़ दिया और आगे  बढ़ चले |अब तक बहुत थकान होने लगी थी |जिधर नजर जाती थी उधर ही बर्फ दिखाई देती थी |ठण्ड भी अपना कमाल दिखा रही थी |बहुत ऊंचाई पर पहुँच गए थे |

एक ने हाथ दिखाया और पूंछा पीछे कितनी गाड़ी आ रही हैं |उनमें कितनी मूर्तियाँ हैं |हमारी समझ से परे थी उसकी बातें पर ड्राइवर समझ गया |उसने कहा एक आदि गाड़ी है और उसमें भी मूर्तियाँ कम ही हैं |वह व्यक्ति मुंह लटका कर चल दिया

शाम होते ही हम अपने गंतव्य के बस अड्डे पर थे |वहां भी जगह जगह पर बर्फ पड़ी हुई थी |वह व्यक्ति जो रास्ते में मिलाता हमारी वेंन  के निकट आ कर खड़ा हो गया और पूंछने लगाआप कहाँ जाएंगे |हमने कहा काली कमली वाले की धर्मशाला में |उसंने बताया ठीक मंदिर के पास ही एक रहने की व्यवस्था है |यदि आप को पसंद आए |हम इतने थक गए थे कि वहीं चल दिए |एक कमरे में ठहरे जिसके दरवाजे को भी बर्फ हटा कर खोला गया था |

प्रातःकाल जल्दी उठे |एक कनस्तर गर्म पानी मिल गया |झटपट नहाकर तैयार हुए |और दर्शन के लिए निकले |थोड़ी दूरी पार करने के बाद एक पुल को पार  किया नीचे अलखनंदा बहुत तीब्र गति से बह रही थी |पुल पार  करते ही मंदिर की ओर जाने वाला रास्ता दिखने लगा |चेहरा प्रसन्नता से  खिल उठा | उस दिन भीड़ नहीं थी इस कारण बहुत सरलता से दर्शन हो गए |फिर दोपहर और शाम को भी दर्शन किये और दूसरे दिन की जाने की तैयारी में जुट गए |अब अगला पड़ाव था केदार नाथ का |

(क्रमशः)

आशा

 


 

Thursday, November 5, 2020

सब्र का फल मीठा - ख्याल वही सब से ज्यादा रख सकता है जो सबसे अधिक प्यार करता हो |दिखावे से दूर हो | नफरत की कोई सीमा नहीं है| यह जड़ से कभी समाप्त नहीं होती| कहीं इसके अंश छिपे रह ही जाते हैं |समय असमय उभार कर आ ही जाते है |दिल से इसे कभी मिटाया नहीं जा सकता |पर इससे दूरी बनाकर चला जाए यही इसका सरल उपाय है |जिस रास्ते जाना न हो उस ओर का रुख ही क्यों किया जाए |जब प्यार से जंग जीती जा सकती है तब इधर उधर क्यूं मन डोले | पर हर कार्य समय माँगता है |समय से पहले कुछ भी नहीं मिलता |तभी कहा जाता है सब्र का फल मीठा होता है |