अमृत कलश

Wednesday, November 11, 2020

  यात्रा विवरण (क्रमांक ३)

ऋषिकेश से जल्दी ही चल दिए क्यों कि अब बहुत लम्बी यात्रा करानी थी |रास्ता बहुत सकरा था |बेहद चढ़ाई थी |कभी तो ऊपर से आती बसों को पहले निकालने के लिए ऊपर जाती बसों को रुकना पड़ता था |जब वे बसे निकल जातीं तब नीचे रोके गए वाहनों को जाने दिया जाता था |पर दृश्य बहुत मनोरम होते थे|कहीं कहीं तो नीचे झांक कर देखते तो भय सा ने लगता था |कहीं ठण्ड  लगती तब स्वेटर का सहारा लेना पड़ता |

वेन की गति धीमी रखने को कहा तब ड्राइवर ने कहा की पहुँचते पहुंचते रात हो जाएगी |आपको कहीं रात में रुकना पडेगा |जैसेतैसे रात को ९ बजे रूद्र प्रयाग पहुंचे |अब समय अधिक हो जाने के कारण रात में कहाँ 

रुकें यह समस्या आई |खैर एक व्यक्ति ने बताया कि अलखनंदा नदी के किनारे एक नया मकान बना  है

वहां आप रुक सकते हैं |मैं आपको ठहराने की व्यवस्था कर देता हूँ |

हम लोग उसके साथ चल दिए |नदी के ठीक ऊपर एक कमरे में फर्श बिछा कर सभी लेट गए |पहले तो नदी के बहाने की तेज आवाज सुनते रहे फिर थकान के कारण नींद आने लगी पर हलकी सी झपकी लगी थी कि

खटमलों ने अटक करना प्रारम्भ कर दिया \मैंने तो रात भर जाग कर ही काट दी |सुबह ही वह स्थान छोड़ दिया और आगे  बढ़ चले |अब तक बहुत थकान होने लगी थी |जिधर नजर जाती थी उधर ही बर्फ दिखाई देती थी |ठण्ड भी अपना कमाल दिखा रही थी |बहुत ऊंचाई पर पहुँच गए थे |

एक ने हाथ दिखाया और पूंछा पीछे कितनी गाड़ी आ रही हैं |उनमें कितनी मूर्तियाँ हैं |हमारी समझ से परे थी उसकी बातें पर ड्राइवर समझ गया |उसने कहा एक आदि गाड़ी है और उसमें भी मूर्तियाँ कम ही हैं |वह व्यक्ति मुंह लटका कर चल दिया

शाम होते ही हम अपने गंतव्य के बस अड्डे पर थे |वहां भी जगह जगह पर बर्फ पड़ी हुई थी |वह व्यक्ति जो रास्ते में मिलाता हमारी वेंन  के निकट आ कर खड़ा हो गया और पूंछने लगाआप कहाँ जाएंगे |हमने कहा काली कमली वाले की धर्मशाला में |उसंने बताया ठीक मंदिर के पास ही एक रहने की व्यवस्था है |यदि आप को पसंद आए |हम इतने थक गए थे कि वहीं चल दिए |एक कमरे में ठहरे जिसके दरवाजे को भी बर्फ हटा कर खोला गया था |

प्रातःकाल जल्दी उठे |एक कनस्तर गर्म पानी मिल गया |झटपट नहाकर तैयार हुए |और दर्शन के लिए निकले |थोड़ी दूरी पार करने के बाद एक पुल को पार  किया नीचे अलखनंदा बहुत तीब्र गति से बह रही थी |पुल पार  करते ही मंदिर की ओर जाने वाला रास्ता दिखने लगा |चेहरा प्रसन्नता से  खिल उठा | उस दिन भीड़ नहीं थी इस कारण बहुत सरलता से दर्शन हो गए |फिर दोपहर और शाम को भी दर्शन किये और दूसरे दिन की जाने की तैयारी में जुट गए |अब अगला पड़ाव था केदार नाथ का |

(क्रमशः)

आशा

 


 

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