अमृत कलश

Monday, February 14, 2022

 


 एक चिड़िया –

एक डाल पर चिड़िया बैठी  थी बहुत उदास कहीं दाना देखने को भी  नहीं था अब क्या करती |चूजों  को क्या खिलाती |सोचते सोचते उसे नींद आ गई |अचानक झटका लगा और गिरते गिरते बची |उसकी बगल में एक और चिड़िया बैठी थी |बहन चिंता क्यों करती ही कभी प्रयत्न विफल नहीं होते |कोशिश करो कुछ तो मिल ही जाएगा|

वह  और ऊंची ड़ाल पर चढी और उसे एक  अनाज का ढेर दिखाई दिया |बह खुशी से नाच उठी और दाना लेने चल दी |वहां पहुँच कर देखा वहां बहुत कडा पहरा था |उसने जुगत लगाई और मीठी आवाज में एक गीत गाने लगी |पहरेदार इतने मुग्ध हुए किवः भूल गए क्या करने आए थे |धीरे से वःह गोदाम में घुस् गई और आवश्यकता के लायक अनाज  चौच में दाना भरा और अपने घोंसले की ओर चल दी |उसने लालच नहीं किया |

बच्चों इससे यह शिक्षा मिलाती है कि कोई काम यदि मन से चित्त लगा कर करोगे कोई देर नही होगी

उसे पूरा करने में |

आशा 

Saturday, February 5, 2022

मेरे मन की

 


मैं आशा लता सक्सेना अपने पंद्रहवे काव्य संग्रह ”मधु मालती ” के साथ आपके समक्ष  उपस्थित हूँ 

न जाने आप को यह काव्य संग्रह कितना  पसंद आएगा  |मुझे मेरी बहन साधना वैद और मेरे घर से पूरा सहयोग मिला है लेखन  मे | मुझे पूर्ण विश्वास है की आप मुझे पूर्व की तरह  प्रोत्साहन देते रहेंगे  और  मूल्यांकन  करेंगे मेरी पुस्तक का |मैं आज तक  किसी एक विधा में लिखने का प्रयत्न नहीं कर पाई |मुझे सरल बोधगम्य भाषा का उपयोग कर लिखने में बहुत आनंद आता है| मेरा  सोच है कि भाषा इतनी सरल हो कि जन जन तक पहुँच पाए और सब उसका आनन्द उठा पाएं |

किसी एक विषय पर लिखने का प्रयास नहीं किया है | नारी सशक्तिकरण पर देखिये -

मुझे गंतव्य तक पहुंचाया 

कोई तो है मददगार मेरा 

वही मेरा हमराज हुआ

 बोझ मन का कम हुआ |

आसपास का सामाजिक वातावरण और पर्यावरण ही पर्याप्त  है लिखने के लिए |कभी आज की राजनीति पर भी लिखा है-

      १- जंगल में दंगल हुआ

        वर्चस्व की छिड़ी लड़ाई

         एक भी सही ढंग से न रख सका

           अपना पक्ष को |

      २-किया जब इकरार किसी से

  उसे पूरा करना है तन मन से

       यही सीखा है अपने  अनुभवों से

         किसी पर बोझ न बनना |

 आध्यात्म की और भी मेरा रुझान है |

पञ्च तत्व से बनाया पिंजरा

द्वार बंद करना था शेष

तभी जीव ने कदम रखा

पीछे से आए माया मोह मद लोभ |

 आम जन मानस की समस्याओं पर लिखना अच्छा  लगता है |

      हंस कर काटें पल दो पल

       जीवन में और क्या रखा है |

मन का मंथन कर अपनी की गई भूलों पर भी  विचार व्यक्त किये हैं | जीवन भर व्यक्ति विद्द्यार्थी ही रहता है |सब से कुछ न कुछ सीखने को मिलता है -

१-तुमसे सीखा कठिन परिश्रम

 दृढ निश्चई  होना सीखा |

२-जीवन की समस्याओं के बीच

खिला फूल कमल का |

३-कोई तो हो मददगार मेरा

जब वक्त पर आ खड़ा हुआ

बैशाखी बन सहारा दिया

मुझ में साहस का संचार हुआ  |

४-हूँ कितनी अकेली

 अब तक जान न पाई

मेरे मन में क्या है

खुद पहचान न पाई |

      मैं क्या हूँ और  क्या सोचती हूँ यह तो मेरे पाठकगण ही आकलन कर पाएंगे |बहुत बहुत धन्यवाद आप सब का  |


आशा लता सक्सेना

रिटायर्ड व्याख्याता, “अंग्रेजी”

सरकारी उच्चतर माद्यमिक विद्यालय 

उज्जैन,  मध्य प्रदेश