एक बार कौरव पाण्डव सब
गेंद खेलते मिलजुल
वहीँ पास में एक कुआ था
ध्यान नहीं इसका बिलकुल
गेंद जा गिरी उसमें
बहुत वे घबराए
दुर्बल ब्राह्मण देख एक
दौड़े वे उन तक आए
धीरे धीरे उनको
सारी कथा सुनाई
कैसे गेंद कुए में पहुची
सब कुछ बात बताई
सुन कर सारा हाल ब्राह्मण
मन ही मन मुस्काया
कैसे गेंद बाहर हो सकती
यह बतलाया
हंस कर बोले 'बच्चों
क्षत्री हो कर गेंद ना ला सकते
फिर कैसे तुम निज क्षत्रु को
जीत हमें दिखला सकते
देखो तुम्हें बाण विद्या का
मैं अद्भुद परिचय दूंगा
बस सींकों के द्वारा ही
मैं गेंद तुम्हारी ला दूंगा
पर पहले तुम सब मिल कर
मुझको भोजन ला करवाओ
मैं दूंगा आशीष तुम्हें
यश कीर्ति जग में पाओ
दुर्योधन ने कहा
कृपाचारी को सब बतला दूंगा
आजीवन भोजन छादन की
सब सुविधा करवा दूंगा
सुन कर सारी बात उनहोंने
दाल कुए में मुंदरी दी
और कुए से बाहर करने
को सींकों की मुठ्ठी ली
सींक सींक से बींध गेंद
बाहर पानी से ले आए
इसी प्रकार अंगूठी को भी
कूप गर्भ से ले आए |
इसी प्रकार अंगूठी को भी
कूप गर्भ से ले आए |
(शेष अगले भाग में )----
किरण
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteब्लॉग पर आने के लिए आभार |
Deleteआशा
सुन्दर वृत्तांत!
ReplyDeleteअपनी माताजी की रचनाएँ इस माध्यम से प्रेषित करती हूँ |यह वृत्तान्त
Deleteउनकी पुस्तक अमृत कलश से लिया है |ब्लॉग पर आने के लिए आभार |
आशा
एकलव्य की कथा सदैव बहुत प्रेरित करती है ! विशेष रूप से मम्मी ने इसे लिखा भी अद्भुत तरीके से है ! अगली कड़ी के लिये बहुत प्रतीक्षा मत करवाइयेगा ! इंतज़ार रहेगा !
ReplyDeleteमम्मी की कवितायेँ इतनी रोचक हैं कि पढते २ मन नहीं भरता |इसका
Deleteअगला भाग जल्दी ही पोस्ट करूंगी|
आशा
बहुत सुन्दर सृजन, आभार.
ReplyDeleteआप तक यह कथा पहुंचा रही हूँ बहुत अच्छा लगा आपकी टिप्पणी देख कर |आशा
Deleteअच्छी कथा रोचक बुनावट लिए .
ReplyDeleteइसका अगला भाग जल्दी ही पोस्ट करूंगी |
Deleteआशा
यह रचना मेरी माता जी ज्ञानवती किरण के द्वारा बाल साहित्य के लिए लिखी गयी थी जिसे मैं आप लोगों तक पहुंचाने की कोशिश कर रही हूँ इस ब्लॉग पर आने के लिए आभार |
ReplyDeleteआशा
umda rachna!
ReplyDeleteब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद |
Deleteआशा