गुरू ने जो जो प्रश्न किये
पूरा न उन्हें बताला पाए
गुरू ने प्रश्न किया दुर्योधन
तुम्हें दीखता है क्या क्या
दुर्योधन ने ने कहा सभी कुछ
देख रहा पर इसमें है क्या
पेड़ और चिड़िया संग संग
और सभी कुछ देख रहा
गुरु बोले बस करो यह लक्ष्य
बिंध न सकेगा प्रगट रहा
इसी प्रकार और भी सबने
गुरु को उत्तर बतलाया
और गुरुने उनकी
असफलता का मान लगा पाया
फिर अर्जुन आगे आए
गुरु बोले अर्जुन बतलाओ
तुम्हें दीखता है क्या क्या
कह कर हमको जतलाओ
अर्जुन बोले गुरु देव कुछ
और नहीं है दिखलाता
चिड़िया का सिर मात्र दीखता
नहीं समझ में कुछ आता
ठीक लक्ष्य को बेध करो अब
तुम सच्चे हो धनुर्धारी
सब के ऊपर विजय प्राप्त
करने की करलो तैयारी
तब अर्जुन ने चिड़िया के
नयनों को बींध दिया क्षण में
पा गुरु का आशीष गर्व की
निधि उसने भरली मन में
यह सब कार्य देखता था
इक सूत निषाद का दूर खडा
उसको धनुष चलाने का
मन में उमढ़ा चाव बड़ा
आकार गुरू के पास कहा
गुरु देव मुझे भिक्षा दीजे
अर्जुन जैसा धनुष बाण
मै चला सकूँ शिक्षा दीजे
किन्तु कुमारों को उसकी
यह इच्छा रुची नहीं
राज कुमारों के संग अन्त्यज
शिक्षा ले जची नहीं
हो उदास वह सुत निषाद का
लौट आश्रम को आया
असफल आकांक्षा पा कर
अपना चैन गवा आया
(समापन किश्त अगले अंक में )
किरण
अर्जुन बोले गुरु देव कुछ
और नहीं है दिखलाता
चिड़िया का सिर मात्र दीखता
नहीं समझ में कुछ आता
ठीक लक्ष्य को बेध करो अब
तुम सच्चे हो धनुर्धारी
सब के ऊपर विजय प्राप्त
करने की करलो तैयारी
तब अर्जुन ने चिड़िया के
नयनों को बींध दिया क्षण में
पा गुरु का आशीष गर्व की
निधि उसने भरली मन में
यह सब कार्य देखता था
इक सूत निषाद का दूर खडा
उसको धनुष चलाने का
मन में उमढ़ा चाव बड़ा
आकार गुरू के पास कहा
गुरु देव मुझे भिक्षा दीजे
अर्जुन जैसा धनुष बाण
मै चला सकूँ शिक्षा दीजे
किन्तु कुमारों को उसकी
यह इच्छा रुची नहीं
राज कुमारों के संग अन्त्यज
शिक्षा ले जची नहीं
हो उदास वह सुत निषाद का
लौट आश्रम को आया
असफल आकांक्षा पा कर
अपना चैन गवा आया
(समापन किश्त अगले अंक में )
किरण
एकलव्य की कहानी का यह भाग बहुत दुःख देता है मन को ! स्वाभिमानी एकलव्य को कितनी चोट पहुँची होगी ! सुन्दर कथा है यह ! हज़ारों बार की सुनी है फिर भी अंतिम कड़ी की प्रतीक्षा है !
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