अमृत कलश

Sunday, March 11, 2012

उत्साही एकलव्य (भाग २ )

भीष्म पितामह को आकार के 
उननें यह सब बतलाया
कैसा अद्भुद भेद ज्ञान है उनका 
कह कर जतलाया 
भीष्म  पितामह जान गए 
यह महारथी योद्धा भारी 
उनसे मिलाने को जाने की 
करली सारी तैयारी
कर सम्मान उन्हें घर लाए 
बहुत बहुत सत्कार किया 
बच्चों का शिक्षक बनाने को 
फिर उनसे इसरार किया 
इस प्रकार कौरव पाण्डव के 
गुरु वर द्रोणाचार्य हुए 
अस्त्र शास्त्र की शिक्षा ले कर 
जिनसे वे विद्वान हुए 
नित्य खुले मैदान में 
करते थे अभ्यास सदा 
कल्पित विजय प्राप्त करने को 
करते सदा प्रयास सदा 
अर्जुन बहुत ध्यान से 
इन शास्त्रों की शिक्षा लेते
उसकी लग्न देख गुरु भी 
सदा ध्यान उन पर रखते
एक समय  कठिन परिक्षा
 लेने की गुरु ने ठानी
बाँध पेड़ से पक्षी बोले 
शिष्यों  से ऐसी वाणी 
बहुत दिनों से सीख रहे हो 
आज परिक्षा है इसकी 
जो चिड़िया का नेत्र बीध देगा 
है जीत यहाँ उसकी 
तब कौरव पाण्डव दौनों ही
लक्ष्य भेदन को आए |
(शेष कहानी अगले भाग में )----
किरण




1 comment:

  1. बड़ी रोमांचकारी कथा है एकलव्य की ! जब भी इसे पढती हूँ अद्भुत अनुभव के अहसास से गुज़रती हूँ ! अगली कड़ी जल्दी दीजियेगा !

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