अमृत कलश

Sunday, March 18, 2012

उत्साही एकलव्य (समापन किश्त )

प्रातः उठ मिट्टी से 
गुरु प्रतिमा का निर्माण किया 
करी प्रतिष्ठा प्रेम भाव से 
भेट चढा सम्मान किया 
नित्य गुरु को कर प्रणाम 
अभ्यास सदा करता था वह 
लक्ष्य भेद कर नित्य नए
नव ज्ञान सदा वार्ता था वह 
इस भाँती बहुत दिन बीत गए 
इक दिन वह शुभ अवसर आया 
जब ऋषिवर ने नए शिष्य  का
था अपने परिचय पाया 
गुरु द्रौंण संग में शिकार को 
कौरव पाण्डव आए थे 
सब सामग्री साथ लिए 
कुत्ता भी संग लाए थे 
वह कुत्ता जब अकस्मात 
उस जंगल के भीतर आया 
देखा अभूत वेश वीर का 
वह जोरों से चिल्लाया 
लक्ष्य भंग हो गया क्रोध से 
एकलव्य ने तब देखा 
सात  तीर भर दिए कंठ में 
अभूत दृश्य गया लेता 
मुख में तीर भरे कुत्ता वह 
निज स्वामी के निकट गया 
उसकी दशा देख कर
 सबके उर में छाया क्रोध नया
उस कुत्ते के पीछे पीछे 
सब निषाद सुत तक आए 
कौन  गुरू का शिष्य अरे तू 
यह कह कर सब झल्लाए 
कर प्रणाम अति नम्र भाव से 
वह बोला मैं धीवर सुत 
सीख  रहा हूँ गुरु द्रौण  से
शास्त्र  अस्त्र विद्या संयुक्त
गुरु का नाम सुन अर्जुन को
बहुत ह्रदय में दुःख हुआ
हो उदास यूँ लौटा जैसे
घायल दिल का घाव छुआ
कहा गुरु से आ कर सब कुछ
गुरु अचंभित हो बोले
मेरा शिष्य न कोइ अंतज्य
व्यर्थ झूट वह क्यूँ बोले
अर्जुन बोले साथ चलें गुरु देव
तुम्हें बताऊँमैं
धीर वीर एकलव्य को
चल कर तुम्हें दिखाऊंमैं
किन्तु एक भिक्षा यह मुझको
गुरु देव देनी होगी
गुरु दक्षिणा मेरी इच्छा से
गुरु वर  लेनी होगी
द्रोणाचार्य गए देखा
अपनी  प्रतिमा का मान वहाँ
अद्भुद  गुरु भक्ति को लख कर
भूले सब वे मान वहाँ
हो कर गद् गद् कहा
पुत्र  हम  हैं तुमसे  प्रसन्न भारी
गुरु  दक्षिणा देने की भी
कर ली क्या कुछ तैयारी
उसने कहा गुरु की आज्ञा पर
सब कुछमैं भेट करू
यदि  इच्छा हो तो चरणों में
यह मस्तक भी काट धरूं
 दक्षिण कर का एक अंगूठा
ही  तुम मुझको दे जाओ
गुरु आज्ञा पर उसी समय
दी भेट ,अंगूठा काट वहाँ
ऐसे गुरु भक्त देखे हैं
 बोलो बच्चों और कहाँ
सच्ची निष्ठा जग में सब कुछ
करके हमें, बताती है
लग्न और उत्साह
हृदय में नई शक्ति उपजाती है
एकलव्य  से एक चित्त हो
लक्ष्य सिद्धि में निरत रहो
कोइ कारण नहीं कि
उससे तुम विरत रहो |

किरण














4 comments:

  1. हमेशा की तरह बहुत ही स्फूर्तिदायक एवं प्रेरणाप्रद कथा ! एकलव्य की की गुरुभक्ति को नमन ! मम्मी की यह काव्य कथा सदा से मेरी बहुत ही प्रिय रही है ! आपने इसे नये सिरे से पुन: पढ़ने का अवसर दिया ! बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका !

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    1. टिप्पणी हेतु धन्यवाद |

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  2. अप्रतिम प्रस्तुति जीवन में जोश भारती हुई काव्यात्मक कथा .बधाई .

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    1. मुझे बहुत प्रसन्नता होती है अपनी माता जी की रचनाओं पर आप लोगों की प्रतिक्रया देख कर |बहुत बहुत आभार टिप्पणी करने के लिए |
      आशा

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