एक समय था ऋषि वशिष्ट से
शापित वासु गण हो कर के
गंगा को आ कथा सुनाई
निज पापों को रो कर के |
गंगा ने तब कहा, "शोक को
छोड़ो ऐ वसु विज्ञानी
गर्भ धारिणी मृत्यु लोक में
बनूँ तुम्हारी मैं मानी |
फिर मैं तुमको श्राप ताप से
मुक्त उसी क्षण कर दूँगी
तुम निज गौरव लौटा पाओ
ऐसा साहस भर दूँगी |"
यह कह गंगा मृत्यु लोक में
निज आश्रम को लौट गई|
पौरव पति प्रतीप की भक्ति
देख हर्ष से चकित हुई
बोली, "राजन हो प्रसन्न
घर जाओ, सुत वर पाओगे |
मैं उसकी पत्नी होऊँगी
तुम सब सुख भर पाओगे |"
किरण
शापित वासु गण हो कर के
गंगा को आ कथा सुनाई
निज पापों को रो कर के |
गंगा ने तब कहा, "शोक को
छोड़ो ऐ वसु विज्ञानी
गर्भ धारिणी मृत्यु लोक में
बनूँ तुम्हारी मैं मानी |
फिर मैं तुमको श्राप ताप से
मुक्त उसी क्षण कर दूँगी
तुम निज गौरव लौटा पाओ
ऐसा साहस भर दूँगी |"
यह कह गंगा मृत्यु लोक में
निज आश्रम को लौट गई|
पौरव पति प्रतीप की भक्ति
देख हर्ष से चकित हुई
बोली, "राजन हो प्रसन्न
घर जाओ, सुत वर पाओगे |
मैं उसकी पत्नी होऊँगी
तुम सब सुख भर पाओगे |"
किरण
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति । मेर नए पोस्ट पर आकर मेरा मनोबल बढ़एं । धन्यवाद ।
ReplyDeleteसंगीता जी इसके आगे की कहानी बाद मैं भेजने की कोशिश रहेगी ऐसा ही स्नेह बनाए रखें |
ReplyDeleteदेवव्रत की यह बहुत ही रोचक कथा है ! मम्मी के खजाने से बड़े नायाब मोती ढूँढ कर प्रस्तुत कर रही हैं आप ! आपको बधाई इस पुण्य कार्य के लिये ! कथा अभी जारी है इसलिए रचना के अंत में 'continued' या 'क्रमश:' लिख दिया करिये ताकि पाठकों की उत्सुकता बनी रहे और वो अगली कड़ी के लिये प्रतीक्षारत रहें !
ReplyDeleteसाधना जी आपको ब्लॉग पर पा कर बहुत प्रसन्नता होती है |
ReplyDeleteमैं क्रमशःलिखना भूल गयी थी आगे से ध्यान रखूँगी |
आशा
वाह बहुत सुन्दर अन्दाज़्।
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