अमृत कलश

Friday, September 16, 2011

बच्चों से

बच्चों सुबह हुआ है न्यारा
छोड़ो अपना बिस्तर प्यारा
सभी बड़ों को शीष झुकाओ
उनसे अच्छी शिक्षा पाओ |
दाँत माँज कर मुँह को धोलो
करो कलेवा बस्ता खोलो
पाठ पढ़ो फिर चित्त लगा कर
जाओ पढ़ने रोटी खा कर |
सादर करो प्रणाम गुरू को
याद करो जो कहें उसी को
यदि ऐसा तुम नित्य करोगे
किसी न दुःख से कभी डरोगे |
सभी करेंगे मान तुम्हारा
जग में होगा नाम तुम्हारा |

किरण

10 comments:

  1. बालोपयोगी बहुत ही सुन्दर रचना ! इसकी गेयता बेमिसाल है ! मम्मी हम लोगों को गाकर सुनाया करती थीं ! याद है ना ?

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  2. कल 19/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  3. शिक्षाप्रद और बहुत प्यारा बालगीत

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  4. वन्दना जी इसी प्रकार इस ब्लॉग पर आ कर उत्साह वर्धन करती रहें |
    ब्लॉग पर आने के लिए आभार |
    आशा

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  5. यशवंत जी आज नई पुरानी हलचल में यह लिंक देख कर बहुत अच्छा लगा |इसी प्रकार स्नेह बनाए रखें |
    आशा

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  6. संगीता जी आभार इस ब्लॉग पर आने के लिए |
    आशा

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  7. आंटी मुझे भी ये कविता बहुत अच्छी लगी...इससे मिलते-जुलते भाव की एक कविता..'उठो लाल अब आँखें खोलो..." मुझे याद है और अब मैं इसे भी याद कर लूँगी...इतनी प्यारी कविता के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!!!

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  8. aapki post par rachna abhivyakti prabhavit karti hai, mera naman swikaar karen.

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  9. बहुत ही प्यारी बाल कविता ....

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