अमृत कलश

Friday, February 26, 2021

शरारत बच्चों की


>पहले बच्चे पढ़ने गुरुकुल जाया करते थे |बच्चे वहीं रहकर अपनी पढाई करते थे |जब कोई भी त्यौहार आता था एक दूसरे से मिल बाँट कर उपयोग में आने वाली सामग्री इकठ्ठी कर लेते थे |एक बार कोई एसा त्यौहार आया कि दूध की आवश्यकता पडी | गुरूजी ने सब से कहा कि हर बच्चा एक एक लोटा दूध ले कर आएगा |बच्चों ने बात मान ली |पर एक बच्चे ने सोचा कि यदि वह दूध के स्थान पर पानी ला कर डाल देगा तो किसी को क्या पता चलेगा |यही विचार अधिकतर बच्चों के मन में आया |जब घड़ा भरने लगा गुरू जी ने झाँक कर उस में देखा |कलसे में केवल पानी था |दूध का नामोनिशान न था |वे समझ गए यह बच्चों की शरारत देखकर उन्होंने शिक्षा देने के लिए बच्चों से कहा कि जब तक खीर बनती है वे अपने पाठ याद करें |धीरे धीरे सुबह से शाम हो गई पर खीर नहीं बनी |उन्होंने कारण जानना चाहा |गुरू जी ने कहा क्या मालूम अभी तक क्यूँ नहीं बनी |बोले माधव से ज़रा उसे चलादों कहीं जल न जाए |माधव ने चलाने के लिए चमचा उठाया जब देखा बटलोई में तो पानी के सिवाय कुछ भी नहीं था |गुरूजी ने कहा जैसा दूध था वैसी ही खीर बनेगी इसमें मेरा क्या कसूर है | बेचारे बच्चे अपनी शरारत की सजा का मजा उठा रहे थे |बिना कुछ बोले भूखे ही सो गए | पर अपने आप से कसम खाई आगे से एसी शरारत कभी न करेंगे| आशा

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