Amrit kalash

अमृत कलश

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Saturday, February 27, 2016

कमरा नंबर २०४

  न जाने क्यूँ मन बहुत खिन्न था |बड़े अजीब अजीब सपने आ रहे थे | कभी अपने को भीड़ से घिरा पाती तो कभी ऐसा प्रतीत होता मानो कोइ बहुत बड़ा जश्न मनाया जा रहा है और मुझे बहुत से तोहफे मिल रहे हैं |
कुछ दिन बाद मुझे एक यात्रा पर भी जाना था पर उत्साह नाम मात्र को न था बहुत बेमन से अपना सामान ज़माना प्रारम्भ किया |सामान जमाते जमाते लगबग ११ बज गए |
थकान भी अपना सर उठा रही थी |सोचा पहले नहा कर पूजा करलूं |फिर फलाहार की व्यवस्था करू थके कदमों से स्नानागार की  ओर चल दी |
नहाने के बाद कुछ अच्छा लगा पर पैर साफ न हुआ था |सोचा क्यूं न पैर भी रगड़ लूं |
न जाने कैसे पैर फिसला और गिर गई |
काफी समय बीत गया और उठना संभव न हो पाया |आवाज ने भी मेरा साथ छोड़ दिया बहुत मुश्किल से दरवाजा खटखटाया और बाहर निकालने को कह पाया |एक व्यक्ति से तो उठाया जाना संभव न था |पास के लोगों को एकत्र कर जैसे तैसे निकाला जा सका |
फ्रेक्चर के कारण पैर उठ ही नहीं रहा था |पोर्टेबल एक्सरे से पता चला की ३४ हड्डी टूटी थीं |बिना ऑपरेशन के जुड़ने की कोई संभावना न थी |
हॉस्पिटल में तावड़तोड़ भरती किया गया |ईश्वर की कृपा थी कि जनरल रिपोर्ट ठीकठाक निकली दाईबिटीज के सिवाय |दूसरे दिन ऑपरेशन के लिए जब जाने लगे सोचा जल्दी ही हो जाएगा |

पर भगवान जो सोचते हैं उसका उलटा ही करता है |हद्दी इतनी कमजोर थीं की ऑपरेशन में ही ५ घंटे लग गए |
अब बारी थी रूम में शिफ्ट करने की |रूम तो डीसेंट था पर नंबर था २०४ |शाम होते होते मिलाने वालों का तांता लगा गया |वेदना सम्वेदना में खोने लगी |लगभग ८ बजा होगा अचानक एक महानुभाव का आगमन हुआ |
पहले ही शब्द थे अरे वही कमरा वही बिस्तर |आपको देख कर मुझे मेरी माँ की याद आ गई आज तक वे बिस्तर नहीं छोड़ पाई हैं अपने अंतिम पलों की प्रतीक्षा कर रही हैं |यह कैसा इत्फाक है |अनजाने में मुझे बहुत जोर का झटका लगा |सोचा क्या मेरी भी यही नियती होगी |पर भगवान को शायद कुछ और ही मंजूर था |
मुझे १० वे दिन घर आने की अनुमति मिल गई और सकुशल घर आ गई |पर दो दिन बाद फिर भरती होना पड़ाऔर १० दिन फिर वहां की हवा खानी  पडी |पर ईश्वर की कृपा से इसबार कमरा नंबर बदल गया था और मन में उपगी शंका से भी छुटकारा मिल गया था |अब कमरा नंबर २०४ मेरा पीछा नहीं कर रहा था |
आशा



Posted by Asha Lata Saxena at 6:09 PM
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श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना 'किरण'

श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना 'किरण'
हमारी माँ डॉ. श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना ' किरण' साहित्यलंकार, साहित्यरत्न, एम.ए., एल.एल.बी.! एक अत्यंत विदुषी, संवेदनशील तथा सामाजिक सरोकारों के प्रति पूर्णत: समर्पित एवं सजग रचनाकार जिन्होंने साहित्य की हर विधा पर सफलतापूर्वक अपनी कलम चलाई !

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