अमृत कलश

Saturday, October 31, 2015

लद्दाख




लद्दाख

पिछले साल गर्मियों में लद्दाख जाने का मन बनाया |जम्मू से सुबह ८ बजे की फ्लाईट थी |जब हम एअर पोर्ट पहुंचे
कुछ मजदूर बड़ी बड़ी पोटलियां लिए हुए बैठे थे |अधिक ताज्जुब तो तब हुआ जब वे लोग भी हमारे साथ हवाईजहाज में लद्दाख जाने के लिए चढे |ऐसा लग रहा था जैसे हम किसी लोकल बस में सफर कर रहे हों |कुछ ने तो अपनी गठरी भी अपने ही साथ रख ली थीं |
हवाईजहाज बहुत छोटा था |अब हम रन वे से ऊपर आसमान मे थे |खिड़की से बाहर का दृश्य बहुत ही सुंदर दिख रहा था |बादलों पर पड़ती सूर्य की किरणे,बर्फ से ढके पहाड़ किसी परी के देश की सैर का मजा दे रहे थे |
लगभग एक घंटे बाद हम लेह हवाई अड्डे पर थे | कम दबाव वाले वायु मंडल से सामंजस्य स्थापित करने के लिए
(acclimatization )कुछ समय रुकने के बाद होटल की ओर रवाना हुए |होटल बहुत साफ सुथरा था |पर कमरे में न तो कोई पंखा था न ही ऐ.सी .|जून का महीना था पर ठण्ड ऐसी थी कि दांत कट कटाने लगे|
वहाँ जितने भी लोग ठहरे थे लगभग सभी विदेशी थे |कुछ यूरोपियन्स से बात हुई |वे भी हम से मिल कर बहुत खुश हुए| काफी देर तक लद्दाख की चर्चा होती रही |उन लोगों के घूमने की व खाने की अलग से ब्यवस्था थी |
सुबह नाश्ते के बाद कमरे के सामने गेलरी में जा बैठे |वहां धूप थी |धूप इतनी तेज थी कि बदन जलने लगा और छांव में कपकपा देने वाली ठण्ड |बड़ा अजीब सा अहसास हुआ |होटल मालिक ने इनर लाइन परमिट और घूमने के लिए टाटा
सूमो की ब्यवस्था करवा दी थी |
सुबह होते ही लेह के jokhang &Spitak बौद्ध गोम्फा देखने के लिए चल दिए |स्पितक बौद्ध गोम्फा एक पहाड़ी पर होने के कारण चढ़ते समय कुछ अधिक समय लगा | वहां भगवान बुद्ध की एक बहुत विशाल प्रतिमा देखी |इतनी सुंदर प्रतिमा थी
कि उस पर से नजर ही नहीं हटती थी |उसी परिसर में देवी तारा और उनके २३ अवतारों के भी दर्शन किये |वहां का रख रखाव करने वाले एक बौद्ध से कई बातें जानने को मिलीं |जब हमने उसे कुछ देना चाहा उसने लेने से इंकार कर दिया |हमने दान पेटी में अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये ,और सिंधु उदगम स्थल जाने के लिए नीचे उतरे | सिंधु नदी का उदगम स्थल देखना भी एक बहुत मन मोहक सपना सा था |वहां पर नदी बहुत तीब्र गति से बहती है |नदी पर बने पुल पर खड़े हो कर आसपास का नज़ारा देखना बहुत सुंदर अनुभव था |पुल पर असंख्य पताकाएं बंधी हुईं थीं |पूछने पर ड्राइवर ने बताया कि जब कोई मानता की जाती है तब लोग कपड़ों पर लिख कर उन पताकाओं को वहां बांध जाते है |और जब मानता पूरी हो जाती है ,उनको खोल कर नदी में प्रवाहित कर देते है |        रास्ते में एक हरे घास के मैदान में " याक और जो" को चरते देख हमने ड्राइवर से उनकी जानकारी ली |उसने बताया कि याक का उपयोग परिवहन के लिए किया जाता है तथा जो को दूध के लिए पाला जाता है |"जो" एक cross -breed चौपाया है |लौटते समय नाम्बियार राजा का ९मंजिला महल भी देखा | उसका रख रखाव बहुत अच्छे ढंग से किया गया है |शाम होते होते हम अपने आज के अंतिम पड़ाव शांती स्तूप पर थे | ऊपर से लेह का दृश्य बहुत सुंदर लग रहा था |जब हम वापस लौट रहे थे रास्ते में मिलने वाले कुछ लोगों ने"जुले" कह कर अभिवादन किया ,ड्राइवर ने बताया कि यहाँ पर अभिवादन के लिए जुले कहा जाता है | हमने भी नमस्ते की जगह लोगों का अभिवादन जुले कह कर किया |
अगले दिन सुबह नुब्रा घाटी जाने के लिए तैयार हुए |हमारे साथ चार अन्य यात्री भी थे उनमें से तीन बोम्बे से आई हुई शिक्षिकाएं थीं और एक तमिल सज्जन थे |जैस जैसे आगे बढने लगे अपने को चारों ओर से बर्फ के पहाड़ों से घिरा हुआ पाया |हरियाली का दूर दूर तक नामोंनिशान नहीं था |इसी लिए तो लद्दाख को बर्फ का रेगिस्तान कहा जाता है |
कुछ समय बाद हम दुनिया की highest motorable road पर से गुजर रहे थे |सड़क की कुल ऊंचाई १८300 फीट
है |इसे खारडुंग-ळा के नाम से जाना जाता है |एक तरफ ऊंची बर्फ से ढकी पहाड़ी और सड़क के दूसरी ओर बर्फ से ढकी खाई |यहां तक कि सडक पर भी हल्की सी बर्फ की परत थी |जगह जगह मिलिट्री की चौकियां बनी हुई थीं |मिलिट्री के लोगों का ब्यवहार बहुत आत्मीयता से भरा हुआ था |मन उनके प्रति श्रद्धा से भर गया |
एकाएक हमारी गाड़ी पीछे की ओर स्किट होने लगी |ड्राइवर जल्दी से नीचे उतरा और पहियों पर रोक लगाई |सावधानी से हमारे साथ के लोग भी उतरे |तमिल राम स्वामी तो फिसल ही गए ,और बर्फ की दीवार से टिक कर खड़े हो गये |
पीछे से एक मिलिट्री की जीप आरही थी |उसकी मदद से सड़क पार कर पाए और खाई में गिरते गिरते बचे |एक बहुत बड़ा हादसा होते होते बचा |
जब नुब्रा घाटी पहुचे दिन के १२ बज रहे थे |दो नदियों शायोक और नुब्रा की छोटी छोटी सी धाराओं से बनी यह घाटी बहुत हरी भरी है |वहां का बौद्ध गोम्फा और मंदिर देखे |फिर एह फार्म हाउस पर दो कुब्ब वाला ऊँट भी देखा |क्यों कि शाम हो गई थी, हम एक विश्राम गृह में रुक गए |वहां दो भाई बहन उस विश्रामगृह की देख रेख करते थे |वे इतने स्नेह से मिले कि घर सा लगने लगा |रात को हमारे साथ के लोगों ने वहां के लोकल पेय "छंग" का भी रसास्वादन किया |
अगले दिन सुबह होते ही लेह के लिए यात्रा शुरू की |थकान इतनी होगई थी कि सारे दिन होटल में आराम किया |
शाम को वहां के छोटे से मार्केट में कुछ खरीदारी की |उस समय एक बहुत बड़ा बौद्ध लोगों का जुलुस भी देखा |
फिर सुबह होते ही Pangong lake जाने के लिए जीप में सबार हुए |सोचा कुछ खाने के लिए ले लिया जाए |एक होटल पर बन रहे पराठों को पेक करवा लिया| यह रास्ता बहुत ऊबड़ खाबड़ होने के कारण रास्ते में बहुत कठिनाई हुई |जाते समय सेनडूल्स भी देखने को मिले |पर जब झील पर पहुंचे ,सारी थकान चारों ओर बर्फ से ढंकी पहाड़ियों से घिरी झील देख कर एक दम तिरोहित हो गई |इस झील कि लम्बाई १३० किलोमीटर है |अघिकांश भाग चींन के अधिकार में है तथा शेष भाग भारत में है|यह १४००० फीट की ऊंचाई पर स्थित है |इतना साफ पानी इससे पहले कभी न देखा था |कचरे का तो नामो निशान तक नहीं था |सच पृथ्वी पर स्वर्ग नजर आ गया | वहां बने बंकरों में मिलिट्री के लोग सुरक्षा हेतु रहते है |
बादल घिर आए थे अतः लेह लौटना ही उचित समझा |समयाभाव के कारण चुम्बकीय घाटी नहीं जा पाए |जब कोई वाहन इससे से गुजरता है ,वाहन की गति अपने ही आप धीमी हो जाती है | मौसम खराब होने के कारण उस दिन की फ्लाईट रद्द हो गई थी |कुछ लोग तो सड़क मार्ग से कारगिल होते हुए श्री नगर चले गऐ |पर हम दूसरे दिन अपनी फ्लाईट का इंतजार करते रहे |हमारी फ्लाईट तीन घंटे लेट थी |एरोड्रम पर समय काटने के लिए लोगों से बातें करने लगे |
बातों ही बातों में बहुत सी और जानकारियाँ मिलीं |जुलाई माह में सिन्धु महोत्सव में वहां के लोग अपनी अपनीं पारंपरिक
वेश भूषा में आते हैं और उस समय वहां तरह तरह के सांस्कृतिक आयोजन और खेल होते हैं |लद्दाख के प्रत्येक गांव में पोलो खेला जाता है पर हर जगह अपने अपने नियम होते हैं|हमने उनलोगों से "जुले" कह कर अभिवादन किया और कुछ समय बाद हम अपने २ गंतव्य की ओर चल दिए |उस यात्रा में बहुत अच्छा लगा |सोचती हूं एक बार वहां जाने का और प्लान बना लें तो कितना अच्छा हो |
आशा

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