अमृत कलश

Friday, October 16, 2015

संजा




संजा

एक राजा के दो बेटी थीं|एक का नाम चंचल और छोटी का नाम संजा था |रोज उन्हें पढाने एक
शिक्षक आते थे |वे चंचल को नेक वक्त और संजा को कम वक्त कहते थे |जब भी रानी यह सुनती
उसे बहुत बुरा लगता |आखिर उसने गुरूजी से पूँछ ही लिया की वे ऐसा क्यों कहते है | वे बोले संजा बहुत
भाग्य हीन है |यह सुन कर माँ को बहुत बुरा लगा |उसने संजा की बुरी छाया से सब को बचाने के लिए
जंगल में अपनी बेटी के साथ रहने का निश्चय किया |रात के अँधेरे में ,संजा को ले कर वह जंगल की और
चल पड़ी | थोड़ी दूर जाने पर भयंकर काली रात में जंगली जानवरों की आवाज ,उबड खाबड़ रास्ते पर चलना
दूभर हो गया |संजा को जोर से प्यास लगी |माँ बेटी पानी की तलाश में इधर उधर भटकने लगीं |
काफी दूर उन्हें एक बड़ा दरवाजा नजर आया |संजा ने माँ से कहा की वह अभी पानी ले कर आती है |
संजा ने जैसे ही उस घर में प्रवेश किया ,दरवाजा अपनेआप बंद हो गया |
बहुत कोशिश करने पर भी दरवाजा नहीं खुला |हार थक कर माता उसे अपनी किस्मत के भरोसे छोड़ कर
घर लौट गई |
संजा ने देखा की वहां कोई नहीं था |उसने धीरे धीरे एक कक्षा में कदम रखे |वहां एक पलंग पर सुइयों से
भरी हुई एक व्यक्ति की लाश पड़ी थी |वह पलंग के नजदीक बैठ कर धीरे धीरे उन सुइयों को निकलने लगी |
एक दिन राह पर चलते किसी कीआवाज सुन वह ऊपर बरामदे में गई |बेचने वाला एक दासी को बेच रहा था |
अपने अकेले पन से तंग आकर संजा ने उसे खरीद लिया |बांदी का नाम रानी था |वह भी संजा की मदद करने लगी |एक सुबह संजा नहाने जाने के पहिले बोली की अब तुम कोई सी भी सुई न निकलना |बांदी को उत्सुकता हुई और
उसने आँखों पर लगी दोनो सुई भी निकल दीं |वह राजकुमार राम राम कर उठ बैठा |सामने एक लड़की को देख
उसका नाम जानना चाहा | बांदी थी बहुत चालक |वह राजकुमारी बन बैठी और संजा को अपनी नौकरानी बताया |
एक और करिश्मा हुआ |जैसे ही राज कुमार ने ताली बजाई ,सारे महल में चहलपहल हो गई |पर संजा नौकरानी ही बन कर रह गई |एक दिन राज कुमार मेले में जा रहा था |उसने सबसे अपनी अपनी पसंद की चीज मंगाने को कहा |रानी बनी बांदी ने अपने लिए छल्ले व् चुटील लाने को कहा | |पर संजा ने कठपुतली मंगाई |
अब रोज रात को कठपुतली का नाच होता |संजा कभी हंसती कभीं रोती और गाती "रानी थी सो बांदी हुई ,
बांदी थी सो रानी हुई "|संजा की आवाज बहुत मीठी थी |लोगों ने राजकुमार से पूंछा "इतनी रात गए कौन
गाता है |राजकुमार ने नींद से बचे रह कर अपनी ऊँगली काट ली और जाग कर गाने की राह देखने लगा
कुछ समय भी न बीता था कि उसे संजा की मधुर आवाज सुनाई दी| वह नीचे आया और इस गाने का रहस्य
जानना चाहा |संजा ने सारा राज उजागर कर दिया|राजकुमार को बहुत गुस्सा आया |उसने दरवाजे के ठीकसामने एक गड्ढा खुदवाया |नकली बनी राजकुमारी को उसमें जिन्दा गढ़वा दिया |
संजा के साथ शादी कर सुख से रहने लगा |
संजा के पिता को जब पता चला ,वे अपने आप को रोक न सके और बहुतसे उपहार ले कर अपनी बेटी से
मिलने आए | उसकी सम्पन्नता देख कर उनकी आँखे ख़ुशी से भीग गई |बच्चे का कोई भी नाम
लिया जाए ,जरुरी नहीं कि उसका प्रभाव जीवन पर होता है |
आशा

2 comments:

  1. संजा की कहानी बहुत मन भाई ! यद्यपि यह पहले भी कई बार सुनी है लेकिन हर बार नयी सी लगती है ! बहुत मज़ा आया !

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